कजरी तीज आज, जानें पूजा विधि

पढ़ें इस दिन गौ माता और चंद्र पूजा का महत्व! आज यानि 29 अगस्त को मनाई जाने वाली कजरी तीज व्रत का धार्मिक महत्व और पूजा विधि।


हिन्दू धर्म में सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए हर साल आने वाले कई व्रत रखती हैं। इनमें करवा चौथ, हरतालिका तीज, हरियाली तीज, वट सावित्री और कजरी तीज प्रमुख व्रत हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज का व्रत रखा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर में यह व्रत जुलाई या अगस्त के महीने में आता है। इस वर्ष यह व्रत 29 अगस्त को मनाया जा रहा है। यह व्रत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार समेत देश के अन्य हिन्दी भाषी राज्यों में प्रमुख रूप से मनाया जाता है। इस व्रत को कजली तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन नीमड़ी माता की पूजा की जाती है। सुहागन महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए व्रत रखती हैं। वहीं अविवाहित लड़कियां भी सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत रख सकती हैं।

कजरी तीज व्रत के नियम


  • करवा चौथ की तरह यह व्रत भी निर्जल रहकर किया जाता है। हालांकि वे महिलाएँ जो गर्भवती हैं इस दिन फलाहार कर सकती हैं।
  • चूंकि यह व्रत चांद को देखकर खोला जाता है। यदि रात्रि में चंद्रमा नहीं दिखाई दे तो रात 11.30 बजे आसमान की ओर मुख करके चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोल लें।
  • यदि एक बार व्रत का उद्यापन कर लिया है तो आने वाले वर्षों में संपूर्ण उपवास संभव न तो, फलाहार लेकर व्रत रख सकते हैं।


चंद्रमा को अर्घ्य देने की विधि


  • कजरी तीज पर चंद्र देव को अर्घ्य देने की परंपरा है। रात्रि में आसामन की ओर चंद्रमा को जल के छींटे देकर रोली और अक्षत चढ़ाएँ। इसके बाद उन्हें भोग अर्पित करें।
  • चांदी की अंगूठी व गेहूं के दाने हाथ में लेकर जल का अर्घ्य दें और उसी स्थान पर चार बार घुमकर परिक्रमा करें।

कजरी तीज पर गौ माता के पूजन का महत्व


हिन्दू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। वेद और पुराणों में गाय को संसार का सबसे पवित्र प्राणी माना गया है। गौ माता के शरीर में समस्त देवी-देवताओं का वास होता है, इसलिए गाय को कामधेनु कहा गया है। जिसके पूजन से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। कजरी तीज के दिन विशेष रूप से गाय की पूजा की जाती है। आटे की 7 लोइयां बनाकर उन पर घी और गुड़ रखकर गाय को खिलाने के बाद ही भोजन किया जाता है। 

कजरी तीज से जुड़ी परंपराएँ


  • कजरी तीज के अवसर पर जौ, गेहूं, चने और चावल के सत्तू में घी व मेवा मिलाकर तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं। 
  • इस दिन खेत और उद्यान में झूले डाले जाते हैं और महिलाएँ एकत्रित होकर नाच-गाकर उत्सव मनाती हैं।
  • यूपी और बिहार के इलाकों में इस दिन नाव में सवार होकर कजरी गीत गाने की परंपरा भी निभाई जाती है।

हरियाली तीज, हरतालिका तीज की तरह कजरी तीज भी सुहागन महिलाएँ पूरे उत्साह के साथ मनाती है। यह व्रत भी भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है।

एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को कजरी तीज की शुभकामनाएँ!

Related Articles:

No comments:

Post a Comment