रक्षाबंधन का त्यौहार आज

जानें राखी बांधने का शुभ मुहूर्त! पढ़ें रक्षाबंधन के त्यौहार का धार्मिक और सामाजिक महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथाएँ।



भारत वर्ष धर्म, त्यौहार और तीर्थों की तपोभूमि है। हिन्दू धर्म में हर साल कई व्रत और त्यौहार मनाये जाते हैं। इनमें से रक्षाबंधन भी एक प्रमुख त्यौहार है। यह पर्व भाई और बहन के प्रति असीम स्नेह और लगाव को दर्शाता है। हर भाई-बहन को इस पर्व का बेसब्री से इंतज़ार रहता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र यानि राखी बांधती हैं और उनके खुशहाल जीवन की कामना करती हैं। वहीं भाई भी अपनी बहन के सम्मान और रक्षा के लिए वचनबद्ध होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन का त्यौहार हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। 

रक्षाबंधन मुहूर्त 2018
राखी बांधने का मुहूर्त05:55:48 से 17:27:57 तक
अवधि11 घंटे 32 मिनट
राखी बांधने का अपराह्न मुहूर्त13:40:16 से 16:15:05 तक

विशेष: यह मुहूर्त नई दिल्ली के लिए प्रभावी है। जानें अपने शहर में राखी बांधने का मुहूर्त और शास्त्रीय विधान

राखी बांधने का मुहूर्त और पूजा विधि


रक्षाबंधन के अवसर पर बहन अपनी भाई की कलाई पर राखी बांधती है। इस दिन विधिवत तरीके से राखी बांधने का विशेष महत्व है। 
  • राखी की थाली तैयार करें। इसमें रोली, कुमकुम, अक्षत और राखी रखें।
  • भाई को आसन पर बिठाएँ और तिलक लगाकर दाहिने हाथ में राखी बांधें।
  • मिठाई खिलाने के बाद भाई की आरती करें।
  • भाइयों का कर्तव्य है कि वे अपनी बहन का चरण स्पर्श करें और अपने सामर्थ्य अनुसार उन्हें उपहार स्वरुप कोई वस्तु भेंट करें।

रक्षाबंधन का महत्व और पौराणिक कथाएँ


हिन्दू धर्म में रक्षाबंधन का पर्व युगों-युगों से मनाया जा रहा है। महाभारत काल से लेकर मध्यकालीन भारत के इतिहास में राखी के त्यौहार का उल्लेख मिलता है। 

द्रौपदी और श्री कृष्ण की कथा- महाभारत काल में राखी का एक अनूठा प्रसंग सुनने को मिलता है। भगवान कृष्ण ने जब शिशुपाल का वध किया था तब उनकी अगुंली में चोट आ गई थी। उस समय सभी लोग रक्त को रोकने के लिए वस्त्र तलाश रहे थे लेकिन उसी समय द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक भाग फाड़कर उससे भगवान की अंगुली पर पट्टी बांध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। द्रौपदी के इसी त्याग और स्नेह का कर्ज भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी के चीर हरण के समय उनकी लाज बचाकर निभाया था।

सिकंदर और पुरु की कथा- सम्राट सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के शत्रु पुरुवास यानि राजा पोरस को राखी बांधकर अपना मुंहबोला भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन मांगा था। इसके बाद पोरस ने युद्ध के समय सिकंदर को जीवन दान दिया। यही नहीं युद्ध में पोरस ने सिकंदर पर प्रहार किये लेकिन राखी की लाज रखने के लिए उसके हाथ रुक गए और वह बंदी बन गया। सिकंदर ने भी पोरस की इस उदारता को देखते हुए उसे उसका राज्य लौटा दिया।

इन कहानियों से रक्षाबंधन के त्यौहार की पवित्रता और महत्व का बोध होता है। हर युग और काल में भाई और बहनों ने एक-दूसरे के लिए त्याग और प्रेम की कई मिसालें कायम की हैं।

एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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