क्या होती है शनि साढ़े साती?

पढ़ें और समझें इसका ज्योतिषीय महत्व! पढ़ें शनि साढ़े साती और ढैय्या किसे कहते हैं। इसका मानव जीवन पर क्या प्रभाव होता है, साथ ही जानें इससे संबंधित उपाय।


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शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का नाम सुनते ही लोग भयभीत होने लगते हैं। वैदिक ज्योतिष में शनि को क्रूर ग्रह कहने की वजह से शायद लोगों में यह धारणा है कि शनि एक कष्टकारी ग्रह है लेकिन ऐसा नहीं है। समस्त ग्रहों में शनि देव को दण्डनायक का पद प्राप्त है, इसलिए उन्हें कलियुग का न्यायाधीश कहा गया है। वे संसार के प्रत्येक व्यक्ति को उसके द्वारा किये गये शुभ और अशुभ कर्मों का फल देने का कार्य करते हैं। शनि की दृष्टि में पद, स्थिति और प्रतिष्ठा कोई बात मायने नहीं रखती है। वे समान रूप से हर व्यक्ति को दंडित और उसके साथ न्याय करते हैं। 

अपने अपराधों की क्षमा याचना और शुभ कर्मों का संकल्प करने वाले व्यक्ति पर शनि देव प्रसन्न होते हैं। वहीं मनुष्य के पापों का दण्ड देने में शनि अत्यंत क्रूर ग्रह है। क्योंकि शनि जब सजा देते हैं तो धन, मान, प्रतिष्ठा और समस्त सुख-सुविधाओं से वंचित कर देते हैं। 

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शनि की साढ़े साती क्या होती है?


जब कुंडली में जन्म राशि अर्थात चंद्र राशि से बारहवें स्थान पर शनि का गोचर प्रारंभ होता है तो इसी समय से जीवन में साढ़ेसाती का आरंभ होता है। जब शनि का गोचर जन्म राशि अर्थात जन्म-कालीन चंद्रमा पर होता है तो यह साढ़ेसाती का मध्य भाग माना जाता है और जब शनि जन्म राशि से द्वितीय भाव में प्रवेश करता है तब से साढ़ेसाती का अंतिम भाग प्रारंभ माना जाता है। क्योंकि शनि एक राशि में ढाई वर्ष तक स्थित रहता है इसलिए 3 भावों को कुल मिलाकर 7.5 वर्षों के समय अंतराल में पूर्ण करता है इसी कारण शनि के इस विशेष गोचर को साढ़ेसाती कहा जाता है। साढ़ेसाती के अलावा शनि जब जन्म राशि यानि जन्म कुंडली में स्थित चंद्रमा से चतुर्थ भाव, अष्टम भाव में भ्रमण करता है तो उसे छोटी साढ़ेसाती या ढैय्या कहते हैं। इसकी अवधि ढाई साल की होती है। साढ़ेसाती के अलावा शनि जब जन्म राशि यानि जन्म कुंडली में स्थित चंद्रमा से चतुर्थ भाव, अष्टम भाव में भ्रमण करता है तो उसे छोटी साढ़ेसाती या ढैय्या कहते हैं। इसकी अवधि ढाई साल की होती है।



शनि साढ़े साती के सरल उपाय


शनि की साढ़े साती के अशुभ प्रभाव से बचने का सबसे सरल उपाय है शुभ कर्म करना और अपने समस्त बुरे कर्मों का पश्चताप करना। इसके अतिरिक्त धार्मिक और वैदिक उपायों के जरिये भी शनि की साढ़े साती से बचा जा सकता है।

  • शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार को शनिदेव का पूजन करें, साथ ही सरसों के तेल से निर्मित कोई भोज्य पदार्थ, गरीब, मजदूर और कुत्ते को अवश्य दें।
  • शनि देव के पूजन में सरसों का तेल, काला नमक, सुरमा, कपूर से निर्मित काजल, काले तिल, काली उड़द, लोहे की कील, इत्र आदि का उपयोग करें और साथ ही इनका दान करें।
  • शनि देव की कृपा पाने के लिए प्रत्येक शनिवार को शनि चालीसा, हनुमान चालीसा या दशरथकृत शनि स्त्रोत का पाठ करना लाभदायक होता है।
  • एक लोहे के पात्र में सरसों का तेल डालकर उसमें अपना चेहरा देखकर दान करना चाहिए, इसे ही छाया पात्र दान कहा जाता है।
  • मामा एवं बुजुर्ग लोगों का सम्मान करें। कर्मचारिओं अथवा नौकरों को हमेशा ख़ुश रखें।
  • शनि दोष निवारण के लिए शनि बीज मंत्र का जाप करें। मंत्र - “ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः”
  • शनि ग्रह को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं- “ॐ शं शनिश्चरायै नमः”
वैदिक ज्योतिष में शनि को क्रूर ग्रह कहा गया है लेकिन शनि शत्रु नहीं मित्र हैं। वे हर मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार दंडित करते हैं, इसलिए अगर शनि से बचना है तो शुभ और सतकर्म करते रहें।


हम आशा करते हैं कि शनि साढ़े साती पर आधारित यह लेख आपको पसंद आया होगा। एस्ट्रोसेज की ओर से उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ!

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