क्यों जरूरी है लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए गणेश पूजन

 
आर्थिक रूप से सम्पन्नता प्रदान करने में हम मुख्यत: मां लक्ष्मी और कुबेर महराज को प्राथमिकता देते हैं। वास्तव में इन्हें ही धन का देवी-देवता माना भी गया है लेकिन धन वैभव के स्थायित्त्व के मामले में भगवान विष्णु और गणेश को अनदेखा नहीं करना चाहिए। लक्ष्मी पति भगवान विष्णु की पूजा उपासना से लक्ष्मी चिरकाल तक उपासक के घर में निवास करती हैं अन्यथा अपने चंचल स्वभाव के कारण वह एक जगह पर लम्बे समय तक निवास नहीं कर पातीं।


भगवान गणेश विघ्न विनाशक हैं और विघ्नों को दूर करने के साथ-साथ मां लक्ष्मी से भी इनका अटूट नाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार गणेश जी मां लक्ष्मी के दत्तक पुत्र भी माने गए हैं। जिसप्रकार मां लक्ष्मी अपने पति विष्णु को छोडकर नहीं जाती उसी प्रकार अपने पुत्र मोह के कारण भी वह लम्बे समय तक गणेश उपासक के घर में ठहरती हैं। कहते हैं कि एक बार किसी विषय पर भगवान विष्णु से घमंड के वशीभूत होकर स्वयं की बहुत अधिक प्रसंसा कर बैठीं। उनके घमंड को दूर करने के लिए भगवान ने उनसे कहा कि सर्वसम्पन्नता तभी मानी जाती है जब एक स्त्री संतान से युक्त हों। दु:खी लक्ष्मी मां पार्वती की शरण में गईं और गणेश जी को दत्तक पुत्र के रूप में मांग लिया और गणेश जी को सभी सिद्धियां और सुख का दाता बना दिया। जिस घर में गणेश जी का निरादर होता है उस घर से लक्ष्मी रूठ जाती हैं। इस संदर्भ में एक कथा का वर्णन भी मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है-

एक तपस्वी ने अपनी कडी तपस्या से मां लक्ष्मी को प्रसन्न कर सदैव कृपा प्राप्ति का वरदान मांग लिया। एक दिन वह व्यक्ति एक राजा के यहां पहुंचा और एक झटके में राजा का मुकुट गिरा दिया। राजा गुस्से से भर गया लेकिन मां लक्ष्मी की कृपा देखिए कि राजा के मुकुट से एक बिच्छू निकल कर बाहर भागा। राजा को लगा कि इस आदमी ने उसे बिच्छू से बचाया है अत: उसे मंत्री मे रूप में नियुक्त कर लिया। एक दिन सन्यासी ने सबको राज दरवार से बाहर निकल जाने को कहा। सारे लोगों के बाहर निकलते ही महल की दीवारें गिर पडीं। अब क्या था राज्य का सारा कार्य उस मंत्री के इशारे से चलने लगा। समय के साथ उस व्यक्ति पर घमंड सवार होने लगा। घमंड में चूर उस व्यक्ति में एक दिन राज महल में स्थापित एक गणेश जी की मूर्ति को महल से बाहर फेंकवा दिया। उसके इस कृत्य से मां लक्ष्मी नाराज हो गईं। और अगले की दिन उस मंत्री पर दु:खों का पहाड टूट पडा। उस मद में चूर उसने घोषणा कर दी कि राजा अपनी पोषाक उतार कर फेंक दे क्योंकि उसमें सांप है। राजा ने ऐसा ही किया लेकिन मां लक्ष्मी की दुष्कृपा के चलते उस व्यक्ति की बात झूठ निकली और राजा ने नाराज होकर उसे कारागार में डाल दिया। तब उस व्यक्ति को अपनी भूल का अनुभव हुआ और पश्चाताप करते हुए उसने जेल में ही मां लक्ष्मी की आराधना शुरू की। मां लक्ष्मी ने स्वप्न में दर्शन देते हुए उसे बताया कि गणेश का अपमान करने के कारण ही उसकी यह दशा हुई है। क्योंकि गणेश बुद्धि के देवता हैं उनका अपमान करने से तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हुई और ये सब भ्रष्ट बुद्धि का ही परिणाम है। पश्चाताप करते हुए उस व्यक्ति ने गणेश भगवान से क्षमा मांगी और गणेश कृपा से अगले दिन राजा ने उसे आजाद कर पुन: मंत्री बना दिया।

इन तमाम कथाओं से यह पता चलता है कि हम सबके लिए मां लक्ष्मी को प्रसन्न कर लेना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि लक्ष्मी के स्थायित्व के लिए भगवान विष्णु और गणेश की भी पूजा आराधना करनी चाहिए। अत: इस दीपावली हम सभी को मां लक्ष्मी, कुबेर, विष्णु और गणेश की पूजा करनी है। साथ ही अपनी कुल परम्परा और लोक परम्परा के अनुसार अन्य देवी देवताओं का पूजन भी करना होगा। इसी में सुख और समृद्धि समाहित है। आप सबको "एस्ट्रोसेज" परिवार की ओर से दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं !!

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