पंडित हनुमान मिश्रा
वर्तमान में राजनीति केवल समाज सेवा का एक माध्यम न रह कर एक पेशा भी बन चुकी है। देश और दुनिया का एक बडा वर्ग सत्तापक्ष या राजनीति से जुडना चाहता है। कुण्डली में कौन सी ग्रहीय स्थिति व्यक्ति को राजनीतिज्ञ बनाती है। जो लोग राजनीति से जुडने की इच्छुक हैं क्या उनकी कुण्डली में कौन-कौन से योग होने चाहिए? इन्ही तमाम बातों पर हमने चर्चा की प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पं हनुमान मिश्रा जी से। आशा है उनके जबाबों को पढकर आप लाभान्वित होंगे।
वर्तमान में राजनीति केवल समाज सेवा का एक माध्यम न रह कर एक पेशा भी बन चुकी है। देश और दुनिया का एक बडा वर्ग सत्तापक्ष या राजनीति से जुडना चाहता है। कुण्डली में कौन सी ग्रहीय स्थिति व्यक्ति को राजनीतिज्ञ बनाती है। जो लोग राजनीति से जुडने की इच्छुक हैं क्या उनकी कुण्डली में कौन-कौन से योग होने चाहिए? इन्ही तमाम बातों पर हमने चर्चा की प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पं हनुमान मिश्रा जी से। आशा है उनके जबाबों को पढकर आप लाभान्वित होंगे।
पंडित जी किसी राजनीतिज्ञ की कुण्डली का परीक्षण करने के लिए कुण्डली के कौन-कौन से भाव विचारणीय होते हैं?
राजनीतिज्ञ बनने या बनाने वाले योगों, ग्रहों या भावों पर चर्चा करने से पहले एक बात स्पष्ट करना चाहूंगा कि राजनीतिज्ञ से हमारा अभिप्राय राजनीति को अच्छी तरह से जानने वालों से है या राजनीति से जुडकर समाज सेवा और देश सेवा करने वालों से है। हो सकता है कि किसी अन्य माध्यम से राजनीतिक लाभ पाने वालों की कुण्डली में ये ग्रहीय स्थितियां उपस्थित न हों। सबसे पहले चर्चा कुण्डली के उन भावों की जो राजनीति में अहम भूमिका निभाते हैं या विचारणीय होते हैं। मुख्यरूप से कुण्डली का छठा, सांतवा, दसवां व ग्यारहवां भाव राजनीति के लिए विचारणीय होते हैं। यद्यपि इनमें से सबसे प्रमुख दशम भाव ही होता है। यदि दशमेश उच्च का हो या दशम भाव में कोई ग्रह उच्च का हो तो सत्ता से जुडना आसान रहता है।
पंडित जी कौन-कौन से ग्रह राजनीतिज्ञ बनाने में अग्रणी माने गए हैं?
राजपक्ष, राजसत्ता या राजनीति से जोडने में सूर्य, चन्द्र, मंगल, राहु और शनि मुख्य माने गए हैं लेकिन कुछ मामलों में बृहस्पति की भूमिका भी सामने आती है। क्योंकि वह गुरू है, सही मंत्रणा देता है और मंत्री बनाने में योगदान देता है। लेकिन आधुनिक राजनीति के लिए राहु को सभी ग्रहों की तुलना में अधिक वरीयता देनी चाहिए। आधुनिक सफल राजनेताओं की कुण्डली में राजनीति के भावों यानी कि छठे, सांतवें, दसवें व ग्यारहवें भाव से राहू का सम्बंध देखने को मिल जाता है। सूर्य को राजा तो चन्द्रमा को राजमाता की उपाधि दी गई है अत: यदि दशम भाव में सूर्य उच्च का हो साथ ही राहू का सम्बंध छठे, सांतवें, दसवें व ग्यारहवें भाव से हो तो राजनीति में सफलता मिलती है। वहीं राजमाता चंद्रमा कि लग्न या राशि में जन्में लोगों का सम्बंध राजनीति से सरलता से जुड जाता है।
शनि को जनता का ग्रह माना गया है। कुण्डली या गोचर में शनि की स्थिति जनता के मूड का संकेत करती है। यदि शनि दशम भाव में हो अथवा दशम भाव से सम्बंध बना रहा हो तो व्यक्ति जनता की सेवा या राजनीति करता है लेकिन यदि इसी स्थिति में मंगल दशम में स्थित हो तो व्यक्ति समाज के लोगों के हितों के लिये काम करने के लिये राजनीति में आता है। ऐसे व्यक्ति का उद्देश्य राजनीति के माध्यम से जनता की भलाई करना होता है। मंगल सेनापति है और शनि जनता का हितैषी, जब दोनों दशम में स्थित होते हैं व्यक्ति के भीतर नेतृ्त्व के गुण आ जाते हैं और जातक या जातिका को राजनेता या राजनेत्री बना देते हैं।
पंडित जी जहां तक मुझे जानकारी है एक राजनेता के लिए अच्छा वक्ता होना भी जरूरी होता जिन ग्रहों की चर्चा अभी तक आपने की उनमें से कोई भी अच्छा वक्ता नहीं बनाता को क्या बुध और बृहस्पति की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया जाय?
नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है कि राजनीति के मामलों में बुध और बृहस्पति की भूमिका को नजरअंदाज किया जाय मैनें अभी कुछ देर पहले बृहस्पति के सम्बंध में चर्चा भी की है। लेकिन जिन अन्य ग्रहों की चर्चा मैंने अभी की हैं वो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। केवल अधिक बोलने से कोई राजनीतिज्ञ नहीं हो जाता अथवा न बोलने वाले को यह मान लिया जाय कि इसे राजनीति नहीं आती तो ये गलत हो जाएगा। कई ऐसे लोग आपको मिल जाएंगे जो बडी-बडी बातें करते हैं। अच्छा भाषण देते हैं लेकिन जरूरी नहीं को वो अच्छे राजनेता हैं। वहीं कई लोग या राजनेता ऐसे मिल जाएंगे जो हमेशा शान्त और गंभीर रहते हैं। बुध से प्रभावित कुछ राजनेता ऐसे भी मिलेंगें जो हमेशा ऐसी बातें करेंगे जो लोंगों को हंसाती हैं। यद्यपि बुध ग्रह हाजिरजबाबी और तर्कशक्ति के लिए बडा महत्त्वपूर्ण होता है। उसका मजबूत होना एक प्लस प्वाइंट होता है। लेकिन राजनेता उपरोक्त ग्रह ही बनाते है। कुल मिलाकर यहीं कहना चाहूंगा कि जनता उन्हीं को अपनी सेवा का मौका देती है जो अच्छी सेवा करते हैं न कि अच्छा भाषण देने वाले को। अत: बुध की बजाय मैं बृहस्पति को अधिक महत्त्व देना चाहूंगा।
जैसा कि मैंने पहले भी बताया कि राजनीति बृहस्पति की भूमिका भी सामने आती है। क्योंकि वह गुरू है, सही मंत्रणा देता है और मंत्री बनाने में योगदान देता है। राजनीति में सही व्यवस्थापन भी बृहस्पति के जिम्मे ही होता है। किसी प्रदेश या देश के विकाश में अर्थव्यवस्था का बहुत बडा योगदान होता है। यह विभाग यानी कि वित्त मंत्रालय भी बृहस्पति के जिम्मे होता है। यानी सहीं मंत्रणा, सही, व्यवस्थापन और सही अर्थव्यवस्था बिना बृहस्पति के योगदान के असम्भव है अत: जिन राजनेताओं को बृहस्पति के द्वारा यह उपहार मिलता है सत्ता में आने पर वो इन विभागों को सम्भालते हैं। वहीं आपके पिछले सवाल को ध्यान में रखते हुए आपको बताना चाहूंगा कि बुध मीडिया प्रभारी या प्रवक्ता बना देता है। यानी कि एक बात आप समझ लें कि बुध और बृहस्पति आपको विभाग दिलाते हैं लेकिन कब? जब आप राजनेता बन जाते हैं। यानी राजनेता बनाने में सूर्य, चन्द्र, मंगल, राहु और शनि ही मुख्य हैं बुध और बृहस्पति राजनेता बनने के बाद विशेषण के रूप में काम करते हैं। बृहस्पति से सम्बंधित एक बात और कि यदि व्यक्ति राजनेता हो और बृहस्पति नवम भाव में शुभ प्रभाव में स्थिति हो तो ऐसा व्यक्ति राजनैतिक गुरू बनता है। बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जो प्रत्यक्षत: राजनीति में नहीं होते लेकिन उनकी बनाई गई नीतियों कर राजनीतिज्ञ अमल करते हैं। सारांश यही कि बृहस्पति राजनेता बनाए या न बनाए राजनीतिज्ञ जरूर बनाता है।
पंडित जी और कौन-कौन सी ग्रहीय स्थितियां या कारकत्त्व हैं जो राजनीति के क्षेत्र में ले जाते हैं।
अन्य ग्रहीय स्थितियों पर चर्चा करने से पहले मैं ज्योतिष की एक खास विधा पर चर्चा करना चाहूंगा। ज्योतिष की एक विधा है जैमिनीपद्धति, उसमें कारकों के आधार पर फलादेश किया जाता है। इन कारकों का निर्धारण इस प्रकार किया जाता है कि जिस ग्रह की डिग्री सबसे अधिक होती है उसे आत्मकारक कहते हैं। इसके बाद जिसकी डिग्री होती है उसे आमात्य कारक कहते हैं, उसके बाद क्रमश: भ्रातृ, मातृ, पितृ, ज्ञाति और दारा कारक का निर्धारण किया जाता है। हमारे आज के मुद्दे के लिए सबसे जरूरी आमात्य कारक यानी दूसरे नम्बर की डिग्री वाला ग्रह है। यदि सूर्य या राहू आमत्य कारक हों और व्यक्ति की रुचि राजनीति में हो तो यह स्थिति राजनीति के क्षेत्र में सफलता देती है। राहु के आमात्य कारक होने की स्थिति में व्यक्ति नीतियों का निर्माण कर उन्हें लागू करने के योग्य बनता है और स्थिति और परिस्थिति के अनुसार बात करने की योग्यता वाला बनता है। वहीं ग्रहों के राजा सूर्य के आमात्य कारक होने की स्थिति में व्यक्ति को राजनीति या समाज में उच्च पद की प्राप्ति होती है।
पंडित जी क्या केवल लग्न कुण्डली मात्र से राजनीतिक करिअर का निर्धारण होता है या अन्य वर्ग कुण्डलियां भी इसमें सहायक होती हैं?
इस मामलें में लग्न कूण्डली के साथ-साथ कुछ वर्ग कुण्डलियां भी महत्त्व की होती हैं। जैसे कि लग्न कुण्डली में यह देखा जाता है कि दशम भाव अथवा दशम भाव के स्वामी ग्रह का सप्तम से सम्बंध होने पर जातक सफल राजनेता बनता है। क्योंकि सांतवा घर दशम से दशम है इसलिये इसे विशेष रुप से देखा जाता है साथ ही यह भाव राजनैतिक पद दिलाने में सहायक माना गया है। छठवा घर नौकरी या सेवा का घर होता है यदि इस घर का संबंध दशम भाव या दशमेश से होता है तो व्यक्ति जनता की सेवा करते हुए बडा नेता बनता है या नेता बन कर जनता की सेवा करता है। अब यही संकेत वर्ग कुण्डलियां भी दे रहीं हों तो समझों कि व्यक्ति राजनेता जरूर बनेगा। इसमें नवांश और दशमांश नामक वर्ग कुण्डलियां मुख्य रूप से विचारणीय होती हैं। यदि जन्म कुण्डली के राजयोगों के सहायक ग्रहों की स्थिति नवाशं कुण्डली में भी अच्छी हो तो परिणाम की पुष्टि हो जाती है। वहीं दशमाशं कुण्डली को सूक्ष्म अध्ययन के लिये देखा जाता है। यदि लग्न, नवांश और दशमाशं तीनों कुण्डलियों में समान या अच्छे योग हों तो व्यक्ति बडी राजनीतिक उंचाइयां छूता है।
पंडित जी क्या कुछ ऐसी खास लग्न या राशियां भी हैं तो राजनेता बनने की संकेतक होती हों? यदि हैं तो उन पर प्रकाश डालें!!
जी बिल्कुल, सबसे पहले में कर्क लग्र की चर्चा करना चाहूंगा। कर्क लग्र में उत्पन्न जातक अधिकांशत: नेतृत्व गुण वाले होते हैं हमारे देश में शासन करके वाले अधिकांश शासक इसी लग्न या राशि के हुए हैं। इसलिए इस पर थोडा विस्तार से चर्चा करना जरूरी है। कर्कलग्र में प्रथम भाव में गुरु हंस नामक पंचमहापुरुष योग देगा। चतुर्थ भाव में शुक्र मालव्य और शनि शश नामक पंचमहापुरुष योग देगा. सप्तम में शनि शश और मंगल रूचक नामक पंचमहापुरुष योग बनाएगा। वहीं दशम में मंगल हो तो भी रूचक नामक पंचमहापुरुष योग बनेगा। यह राजमाता चंद्रमा की राशि है अत: राजघराने में इसका जबरदस्त अधिकार होता है। कर्क लग्न की कुण्डली में दशमेश मंगल दूसरे भाव में हो, शनि लग्न में, राहु छठे भाव में, तथा लग्नेश की दृष्टि के साथ ही सूर्य-बुध पंचम या ग्यारहवें घर में हो तो व्यक्ति बहुत बडा सफल राजनेता बनकर यशस्वी होता है।
भगवान श्रीराम, महात्मा बुद्ध, महाराजा विक्रमादित्य, महाराजा युधिष्ठिर आदि की कर्क लग्न ही मानी गई है। पं. जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, के.आर. नारायणन, श्री इन्द्र कुमार गुजराल, श्रीमती सोनिया गांधी, श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, श्री एच.डी.देवेगौड़ा आदि अनेकों ऐसे उदाहरण हैं जो कर्क लग्न के रहे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की राशि कर्क है।
नेतृ्त्व के लिये सिंह लग्न को भी अच्छा माना गया है। सूर्य, चन्द्र, बुध व गुरु धन भाव में हों व छठे भाव में मंगल, ग्यारहवे घर में शनि, बारहवें घर में राहु व छठे घर में केतु हो तो एसे व्यक्ति को राजनीति विरासत में मिलती है। यह योग व्यक्ति को लम्बे समय तक शासन में रखता है। जिसके दौरान उसे लोकप्रियता व वैभव की प्राप्ति होती है। वहीं वृ्श्चिक लग्न की कुण्डली में लग्नेश बारहवे में गुरु से दृ्ष्ट हो शनि लाभ भाव में हो, राहु -चन्द्र चौथे घर में हो, स्वराशि का शुक्र सप्तम में लग्नेश से दृ्ष्ट हो तथा सूर्य ग्यारहवे घर के स्वामी के साथ युति कर शुभ स्थान में हो और साथ ही गुरु की दशम व दूसरे घर पर दृ्ष्टि हो तो व्यक्ति प्रखर व तेज नेता बनता है। सारांश यह कि कर्क, सिंह और वृश्चिक लग्न या चंद्र राशि होने पर राजनीतिक सफलता मिलने की सम्भावनाएं मजबूत होती हैं।
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