सुशील कुमार में देश का नाम रोशन किया है। देश के तमाम समाचार चैनल्स और अखबार अपने-अपने तरीके से उनकी सफलता और असफलता का विश्लेषण कर रहे हैं। आइए ज्योतिष के नजरिए से जानते हैं कि उन्होंने इतना बडा कारनामा कैसे कर दिखाया? साथ की वो एक श्रेष्ठतम उपलब्धि प्राप्त करते-करते कैसे रह गए। सुशील कुमार का जन्म सिंह लग्न और वृश्चिक राशि में हुआ। लग्नेश सूर्य योगकारी ग्रह मंगल के साथ दशम भाव में स्थित है। दोनो ही ग्रहों की दशम भाव में स्थिति उत्तम मानी गई है। यह युति भी उत्तम फल, सरकार से लाभ, बडा सम्मान और बडी प्रसिद्धि देने वाली कही गई है। कुण्डली में अनेक राजयोग उपस्थित हैं जिनमें से गजकेसरी, सफल अमल कीर्ति योग, पर्वत योग, अखण्ड सम्राज्य योग, अमर योग और केन्द्र त्रिकोण योग जैसे राजयोग उल्लेखनीय हैं।
इनका लग्नेश सूर्य जो प्रसिद्धि, मान सम्मान और सरकार और देश का कारक भी है वह नवांश कुण्डली में उच्च का हो गया है जो यहां भी सूर्य ग्रह मंगल के साथ है। यह स्थिति जीवन में विशेष उपलब्धियों को दर्शा रही है।
आइए वर्तमान संदर्भ में चर्चा कर ली जाय। सुशील कुमार की वर्तमान दशाएं हैं बुध में बृहस्पति की। बुध इनकी कुण्डली में द्वितीयेश और लाभेश है जो लाभ और आर्थिक समृद्धि की का संकेत कर रहा है। कुण्डली में यह भाग्य स्थान पर स्थित है जो भाग्य का समर्थन दिला रहा है। बृहस्पति इनकी कुण्डली में पंचमेश और अष्टमेश है। पंचम में बृहस्पति की मूल त्रिकोण राशि है अत: बृहस्पति द्वारा पंचमेश का अधिक फल दिया जाएगा। बृहस्पति कुण्डली में चतुर्थ भाव में स्थित है। कर्म स्थान पर दृष्टि के कारण बृहस्पति मान-सम्मान, पुरस्कार और पदक जैसी उपलब्धियां दिलाने में यह सहायक ग्रह है। यही कारण है कि सुशील कुमार ने 66 किलोग्राम के फ्रीस्टाइल वर्ग में रजत पदक जीत कर लंदन ओलिंपिक में भारत को बडी सफलता दिलाई।
उन्होंने अपने पहले ही मैच में बीजिंग ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता तुर्की के रमजान शाहीन को हराया। दूसरे मैच में उन्होंने उज्बेकिस्तान के इख्तियोर नवरुज़ोव को पटखनी दी। रजत पदक को सुनिश्चित करने के लिए ओलंपिक के उद्घाटन में भारत का झंडा ले कर चलने वाले पहलवान सुशील कुमार ने कज़ाकिस्तान के तानातारोव को धूल चटाई। लेकिन बीजिंग ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता को पटखनी देने वाला स्वर्ण पदक हासिल नहीं कर पाया क्यों? ज्योतिष के माध्यम से इस बात की चर्चा बेहद जरूरी होगी। वर्तमान में सुशील कुमार पर बृहस्पति की अंतरदशा का प्रभाव है। बृहस्पति का सीधा सम्बंध सोने से होता है अत: सुशील कुमार को स्वर्ण पदक जीतकर आना चाहिए था, इसकी उम्मीद भी खूब थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस बात को समझने के लिए ज्योतिष की गहराई में जाना पडेगा। बृहस्पति की वादा खिलाफी के कारण को समझना होगा। आइए समझते हैं ऐसा क्यों हुआ।
सुशील कुमार की जन्म कुण्डली में बृहस्पति चंद्रमा के साथ है। शनि के नक्षत्र में हैं और नवांश में शुक्र की राशि में है। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि सुशील कुमार कभी स्वर्ण पदक नहीं जीत पाएंगे। यहां हमारा उद्देश सिर्फ यह जानना है कि इस बार ऐसा नहीं हुआ क्यों? इसका जवाब उपरोक्त कारणों और गोचर में छिपा है। वर्तमान में बृहस्पति शुक्र की राशि में है शुक्र का सोने की बजाय चांदी पर अधिक अधिकार है। वर्तमान में बृहस्पति चंद्रमा के नक्षत्र में है। चंद्रमा की प्रिय धातु चांदी है। जिस दिन सुशील कुमार पाते-पाते रह गए उस दिन बृहस्पति और चंद्रमा साथ साथ थे। अत: बृहस्पति अपनी प्रिय धातु स्वर्ण देने में समर्थ नहीं हो पाया हांलाकि वह सुशील कुमार को स्वर्ण के कारीब ले गया फिर भी शुक्र और चंद्रमा के यहां शरण लिए हुए बृहस्पति सुशील कुमार को स्वर्ण पदक नहीं दिला पाया और सुशील कुमार को रजत पदक से ही संतुष्ट होना पडा ।
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