पं0 पुनीत पाण्डे
आजकल मीडिया का जमाना है। हर क्षेत्र में हमें नई-नई बातें सुनने और जानने को मिलती हैं। ज्योतिष भी इससे कुछ अलग नहीं है। कोई ज्योतिषी नाड़ी की बात करता है, तो कोई भृगु संहिता की। कोई कृष्णमूर्ती पद्धति का ज़िक्र करता है, तो कोई लाल किताब का। ऐसे में आम आदमी के लिए यह समझना बेहद मुश्किल हो जाता है कि आख़िर ये सब हैं क्या और इन सबका वे अपने दैनिक जीवन में क्या फायदा उठा सकते हैं? आइए, इस लेख में बात करते हैं कृष्णमूर्ति पद्धति के बारे में और समझने की कोशिश करते हैं कि यह ज्योतिष की पारम्परिक पद्धति से किस तरह भिन्न है।
कृष्णमूर्ति पद्धति की सबसे बड़ी ख़ासियत है इसका सटीक फलकथन। इस पद्धति के आधार पर निश्चित तौर पर यह बताया जा सकता है कि कोई घटना ठीक कितने बजे घटित होगी, यहाँ तक कि उसके घटित होने के समय का ब्यौरा सटीकता से सेकेण्डों में भी बताना संभव है। उदाहरण के लिए कृष्णमूर्ति पद्धति यह बताने में सक्षम है कि कोई हवाई जहाज़ हवाई-पट्टी पर कब उतरेगा, बिजली कितने बजकर कितने मिनट पर आएगी और कोई खोई हुई वस्तु कब मिलेगी। केपी के आश्चर्यजनक फलकथन इस पद्धति को ज्योतिष की दुनिया में न सिर्फ़ एक विशेष स्थान दिलाते हैं, बल्कि स्वयं ज्योतिष को एक ठोस वैज्ञानिक आधार भी मुहैया कराते हैं।
कृष्णमूर्ति पद्धति को संक्षेप में “केपी” भी कहते हैं। इस पद्धति की खोज या आविष्कार का श्रेय दक्षिण भारत के श्री के. एस. कृष्णमूर्ति को जाता है। उन्होंने पारम्परिक और विदेशी अनेक ज्योतिष की शाखाओं का अध्ययन किया और पाया की वे बहुत ही भ्रमित करने वाली और मुश्किल हैं। पुराने लेखकों की बातों में भी काफ़ी मतभेद हैं। लाखों या करोड़ों की संख्या में लिखे गए श्लोकों को याद रखना सामान्य व्यक्ति के लिए बड़ा मुश्किल है। सबसे मुख्य बात यह है कि दो अलग-अलग ज्योतिषियों के पास जाएँ तो वे दो अलग-अलग और परस्पर विरोधी बातें बता देते हैं। इन सभी वजहों से ज्योतिषी सही भविष्यवाणी नहीं कर पाते, जनता भ्रमित होती है और अन्त में ज्योतिष का नाम भी बदनाम होता है।
श्री के. एस. कृष्णमूर्ति ने ज्योतिष की विभिन्न शाखाओं के बेहतरीन विचारों को एकत्रित करके और उनमें अपने नवीन शोधों का समन्वयन करके इस पद्धति का नामकरण किया “कृष्णामूर्ति पद्धति”। यह पद्धति आज के समय में ज्योतिष की सबसे सटीक पद्धतियों में से एक मानी जाती है। यह पद्धति सीखने और प्रयोग में लाने में बहुत आसान है। पारम्परिक पद्धति के विपरीत यह सुनियोजित है और दो केपी ज्योतिषी आपको विरोधी भविष्यकथन करते भी नहीं मिलेंगे।
पारम्परिक पद्धति और कृष्णमूर्ति पद्धति में मुख्य फ़र्क इस प्रकार हैं -
जिस तरह बारह राशियाँ और सत्ताईस नक्षत्र होते हैं, उसी तरह केपी में हर नक्षत्र के भी नौ विभाजन किए जाते हैं जिसे उप-नक्षत्र या “सब” कहते हैं। कुल मिलाकर 249 उपनक्षत्र होते हैं, जो ज्योतिष फलकथन की सूक्ष्मता में वृद्धि करते हैं। उप-नक्षत्र की वजह से ही केपी में दिन की ही नहीं, बल्कि घण्टे, मिनट और सेकन्ड की सूक्ष्मता से भी भविष्यवाणी की जा सकती है।
“सब” की सूक्ष्मता और स्पष्ट सिद्धान्तों की वजह से केपी ज्योतिषी सूक्ष्म और दैनिक जीवन के बहुत सटीक फलकथन भी कर सकता है, जैसे - बिजली कितने बजे आएगी, कोई फोन कॉल कितने बजे आएगा, बारिश कितने बजे तक होगी और कब रुकेगी इत्यादि। पारम्परिक ज्योतिष से इतनी सटीकता से फलकथन बहुत मुश्किल या यूँ कहें कि असम्भव-सा लगता है।
केपी नक्षत्रों के प्रयोग पर विशेष जोर देती है। पारम्परिक ज्योतिष में नक्षत्रों का प्रयोग सीमित है।
पारम्परिक भारतीय ज्योतिष में भाव की गणना भाव चलित के आधान पर होती है। केपी पाश्चात्य पद्धिति के भाव चलित को मान्यता देता है, जिसे प्लेसीडस कस्प चार्ट या ‘निरयन भाव चलित’ भी कहते हैं। इस वजह से केपी की कुण्डली और पारम्परिक राशिचक्र में ग्रहों की स्थिति में कभी-कभी फ़र्क आ जाता है।
केपी में फलकथन का मुख्य आधार यह है कि कोई ग्रह न सिर्फ अपना फल देता है, परन्तु अपने नक्षत्र-स्वामी का भी फल देता है। पारम्परिक ज्योतिष का भुलाया हुआ यह सूत्र केपी में अति महत्ववपूर्ण है।
पारम्परिक ज्योतिषी में कई दशाओं का प्रयोग होता है, जैसे विशोंत्तरी दशा, अष्टोत्तरी दशा और योगिनी दशा इत्यादि। केपी सिर्फ विशोंत्तरी दशा को मानती है। सिर्फ एक दशा होने की वजह से ज्योतिषी के लिए केपी का प्रयोग आसान हो जाता है।
केपी में शासक ग्रहों के सिद्धान्त का प्रयोग होता है जिसके अनुसार प्रश्न के समय और उत्तर के समय शासक ग्रह समान होते हैं। जैसे किसी व्यक्ति को यह जानना है कि उसका विवाह कब होगा। केपी के अनुसार जिस वक्त यह प्रश्न पूछा जाएगा उस वक्त के शासक ग्रह और जब उस व्यक्ति का विवाह होगा उस वक्त के शासक ग्रह एक ही होंगे।
केपी में हजारों योगों का प्रयोग नहीं होता अत: ज्योतिषी को लाखों करोडों श्लोक याद रखने की जरूरत नहीं है। जरूरत है तो बस मुख्य नियमों को याद रखने की। इसी लिए में हमेशा कहता हूं कि केपी 21वीं सदी के ज्योतिषियों के मस्तिष्क के लिए बनाई गई पद्धति है।
केपी पारम्परिक ज्योतिष के अन्य कई सिद्धान्तों जैसे अष्टकवर्ग, योग जैसे कालसर्प, साढ़ेसाती, मंगल दोष आदि को भी मान्यता नहीं देती है।
केपी में प्रश्न ज्योतिष पर विस्तार से चर्चा की गई है। अगर किसी व्यक्ति को अपना जन्म-दिन और जन्म-समय नहीं पता, तो उसका जन्म समय न सिर्फ निकाला जा सकता है परन्तु बिना जन्म-समय आदि के भी उस व्यक्ति के प्रश्न का उत्तर दिया जा सकता है।
अन्त में सिर्फ इतना कहूंगा कि “केपी” 21वीं सदी की, कम्प्यूटर के जमाने के ज्योतिषी के लिए बनाई गई पद्धति है जो किसी व्यक्ति के जीवन के छोटे-से-छोटे पहलू का भी सटीकता से फलकथन करती है।
आजकल मीडिया का जमाना है। हर क्षेत्र में हमें नई-नई बातें सुनने और जानने को मिलती हैं। ज्योतिष भी इससे कुछ अलग नहीं है। कोई ज्योतिषी नाड़ी की बात करता है, तो कोई भृगु संहिता की। कोई कृष्णमूर्ती पद्धति का ज़िक्र करता है, तो कोई लाल किताब का। ऐसे में आम आदमी के लिए यह समझना बेहद मुश्किल हो जाता है कि आख़िर ये सब हैं क्या और इन सबका वे अपने दैनिक जीवन में क्या फायदा उठा सकते हैं? आइए, इस लेख में बात करते हैं कृष्णमूर्ति पद्धति के बारे में और समझने की कोशिश करते हैं कि यह ज्योतिष की पारम्परिक पद्धति से किस तरह भिन्न है।
कृष्णमूर्ति पद्धति की सबसे बड़ी ख़ासियत है इसका सटीक फलकथन। इस पद्धति के आधार पर निश्चित तौर पर यह बताया जा सकता है कि कोई घटना ठीक कितने बजे घटित होगी, यहाँ तक कि उसके घटित होने के समय का ब्यौरा सटीकता से सेकेण्डों में भी बताना संभव है। उदाहरण के लिए कृष्णमूर्ति पद्धति यह बताने में सक्षम है कि कोई हवाई जहाज़ हवाई-पट्टी पर कब उतरेगा, बिजली कितने बजकर कितने मिनट पर आएगी और कोई खोई हुई वस्तु कब मिलेगी। केपी के आश्चर्यजनक फलकथन इस पद्धति को ज्योतिष की दुनिया में न सिर्फ़ एक विशेष स्थान दिलाते हैं, बल्कि स्वयं ज्योतिष को एक ठोस वैज्ञानिक आधार भी मुहैया कराते हैं।
कृष्णमूर्ति पद्धति को संक्षेप में “केपी” भी कहते हैं। इस पद्धति की खोज या आविष्कार का श्रेय दक्षिण भारत के श्री के. एस. कृष्णमूर्ति को जाता है। उन्होंने पारम्परिक और विदेशी अनेक ज्योतिष की शाखाओं का अध्ययन किया और पाया की वे बहुत ही भ्रमित करने वाली और मुश्किल हैं। पुराने लेखकों की बातों में भी काफ़ी मतभेद हैं। लाखों या करोड़ों की संख्या में लिखे गए श्लोकों को याद रखना सामान्य व्यक्ति के लिए बड़ा मुश्किल है। सबसे मुख्य बात यह है कि दो अलग-अलग ज्योतिषियों के पास जाएँ तो वे दो अलग-अलग और परस्पर विरोधी बातें बता देते हैं। इन सभी वजहों से ज्योतिषी सही भविष्यवाणी नहीं कर पाते, जनता भ्रमित होती है और अन्त में ज्योतिष का नाम भी बदनाम होता है।
श्री के. एस. कृष्णमूर्ति ने ज्योतिष की विभिन्न शाखाओं के बेहतरीन विचारों को एकत्रित करके और उनमें अपने नवीन शोधों का समन्वयन करके इस पद्धति का नामकरण किया “कृष्णामूर्ति पद्धति”। यह पद्धति आज के समय में ज्योतिष की सबसे सटीक पद्धतियों में से एक मानी जाती है। यह पद्धति सीखने और प्रयोग में लाने में बहुत आसान है। पारम्परिक पद्धति के विपरीत यह सुनियोजित है और दो केपी ज्योतिषी आपको विरोधी भविष्यकथन करते भी नहीं मिलेंगे।
पारम्परिक पद्धति और कृष्णमूर्ति पद्धति में मुख्य फ़र्क इस प्रकार हैं -
जिस तरह बारह राशियाँ और सत्ताईस नक्षत्र होते हैं, उसी तरह केपी में हर नक्षत्र के भी नौ विभाजन किए जाते हैं जिसे उप-नक्षत्र या “सब” कहते हैं। कुल मिलाकर 249 उपनक्षत्र होते हैं, जो ज्योतिष फलकथन की सूक्ष्मता में वृद्धि करते हैं। उप-नक्षत्र की वजह से ही केपी में दिन की ही नहीं, बल्कि घण्टे, मिनट और सेकन्ड की सूक्ष्मता से भी भविष्यवाणी की जा सकती है।
“सब” की सूक्ष्मता और स्पष्ट सिद्धान्तों की वजह से केपी ज्योतिषी सूक्ष्म और दैनिक जीवन के बहुत सटीक फलकथन भी कर सकता है, जैसे - बिजली कितने बजे आएगी, कोई फोन कॉल कितने बजे आएगा, बारिश कितने बजे तक होगी और कब रुकेगी इत्यादि। पारम्परिक ज्योतिष से इतनी सटीकता से फलकथन बहुत मुश्किल या यूँ कहें कि असम्भव-सा लगता है।
केपी नक्षत्रों के प्रयोग पर विशेष जोर देती है। पारम्परिक ज्योतिष में नक्षत्रों का प्रयोग सीमित है।
पारम्परिक भारतीय ज्योतिष में भाव की गणना भाव चलित के आधान पर होती है। केपी पाश्चात्य पद्धिति के भाव चलित को मान्यता देता है, जिसे प्लेसीडस कस्प चार्ट या ‘निरयन भाव चलित’ भी कहते हैं। इस वजह से केपी की कुण्डली और पारम्परिक राशिचक्र में ग्रहों की स्थिति में कभी-कभी फ़र्क आ जाता है।
केपी में फलकथन का मुख्य आधार यह है कि कोई ग्रह न सिर्फ अपना फल देता है, परन्तु अपने नक्षत्र-स्वामी का भी फल देता है। पारम्परिक ज्योतिष का भुलाया हुआ यह सूत्र केपी में अति महत्ववपूर्ण है।
पारम्परिक ज्योतिषी में कई दशाओं का प्रयोग होता है, जैसे विशोंत्तरी दशा, अष्टोत्तरी दशा और योगिनी दशा इत्यादि। केपी सिर्फ विशोंत्तरी दशा को मानती है। सिर्फ एक दशा होने की वजह से ज्योतिषी के लिए केपी का प्रयोग आसान हो जाता है।
केपी में शासक ग्रहों के सिद्धान्त का प्रयोग होता है जिसके अनुसार प्रश्न के समय और उत्तर के समय शासक ग्रह समान होते हैं। जैसे किसी व्यक्ति को यह जानना है कि उसका विवाह कब होगा। केपी के अनुसार जिस वक्त यह प्रश्न पूछा जाएगा उस वक्त के शासक ग्रह और जब उस व्यक्ति का विवाह होगा उस वक्त के शासक ग्रह एक ही होंगे।
केपी में हजारों योगों का प्रयोग नहीं होता अत: ज्योतिषी को लाखों करोडों श्लोक याद रखने की जरूरत नहीं है। जरूरत है तो बस मुख्य नियमों को याद रखने की। इसी लिए में हमेशा कहता हूं कि केपी 21वीं सदी के ज्योतिषियों के मस्तिष्क के लिए बनाई गई पद्धति है।
केपी पारम्परिक ज्योतिष के अन्य कई सिद्धान्तों जैसे अष्टकवर्ग, योग जैसे कालसर्प, साढ़ेसाती, मंगल दोष आदि को भी मान्यता नहीं देती है।
केपी में प्रश्न ज्योतिष पर विस्तार से चर्चा की गई है। अगर किसी व्यक्ति को अपना जन्म-दिन और जन्म-समय नहीं पता, तो उसका जन्म समय न सिर्फ निकाला जा सकता है परन्तु बिना जन्म-समय आदि के भी उस व्यक्ति के प्रश्न का उत्तर दिया जा सकता है।
अन्त में सिर्फ इतना कहूंगा कि “केपी” 21वीं सदी की, कम्प्यूटर के जमाने के ज्योतिषी के लिए बनाई गई पद्धति है जो किसी व्यक्ति के जीवन के छोटे-से-छोटे पहलू का भी सटीकता से फलकथन करती है।
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