आज यानि 22 नवंबर 2015 को देवउठनी एकादशी है। इसे प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। प्रबोधिनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास समाप्त होता है और मंगलकार्य शुरू किए जाते हैं, क्योंकि चातुर्मास में मंगलकार्य करना वर्जित है। तो आइए जानते हैं इस दिन के बारे में और विस्तार से।
हिन्दू पंचांग के अनुसार देवउठनी या प्रबोधनी एकादशी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। भगवान श्री कृष्ण ने देवउठनी एकादशी का वर्णन करते हुए कहा है कि जो व्यक्ति देवउठनी एकादशी के दिन उपवास करता है उसके सभी पापों का नाश हो जाता है।
नई दिल्ली के लिए देवउठनी एकादशी के पारण का समय: प्रातः 06:50 से 08:57 (23 नवंबर, 2015)
ऐसी मान्यता है कि आज ही के दिन भगवान विष्णु चातुर्मास के 4 महीने बाद सोकर उठते हैं। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानि देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी के बीच की अवधि को चातुर्मास कहा गया है। देवउठनी एकादशी बड़े ही जोश और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाती है, क्योंकि आज के बाद शादी-विवाह, गृह-प्रवेश जैसे शुभकार्यों का आरंभ हो जाता है। निर्णय सिन्धू की मानें तो एकादशी के अगले दिन यानि द्वादशी के दिन तुलसी विवाह करना चाहिए और इस द्वादशी को सुधा द्वादशी कहा जाता है।
नई दिल्ली में कार्तिक सुधा द्वादशी 23 नवंबर 2015 को दोपहर 01:19 तक ही है।
यदि धार्मिक मान्यताओं से थोड़ा हटकर बात करें तो वर्ष में जितनी भी एकादशियाँ होती हैं वह हमारी मानसिक एकाग्रता को बढ़ाने में मदद करती हैं। यदि महीने में दोनों एकादशियों के दिन साधना की जाए तो हमारी स्मरण शक्ति और एकाग्रता वास्तव में बढ़ सकती है, इसमें कोई संदेह नहीं है। एकादशी के दिन की गई साधना से हमें मानसिक शांति मिलती है और सोचने-समझने की क्षमता में वृद्धि होती है।
प्रबोधिनी एकादशी यानि कार्तिक पूर्णिमा के दिन कई जगह धूम-धाम से तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है।
आप सभी को एस्ट्रोसेज की ओर से देवउठनी एकादशी और तुलसी विवाह की ढेरों शुभकामनाएँ।
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