देवोत्थनी या देव प्रबोधिनी एकादशी

पंडित हनुमान मिश्रा

विष्णु पुराण के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी जिसे हरिशयनी एकादशी कहा जाता है को भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं। चार मास के बाद भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इस कारण से देशभर में कार्तिक एकादशी को देवोत्थान अर्थात देवताओं के जागने की तिथि के रूप में मनाने का प्रचलन पौराणिक काल से ही चला आ रहा है। इस एकादशी को तुलसी एकादश भी कहा जाता है। इस दिन तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है। तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से कराया जाता है। मान्यता है कि इस प्रकार के आयोजन से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि तुलसी शालिग्राम का विवाह करने से वही पुण्य प्राप्त होता है जो माता-पिता अपनी पुत्री का कन्यादान करके पाते हैं। इस वर्ष यह एकादशी 24 नवम्बर 2012 के दिन है।


एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस का संहार लम्बे युद्ध के बाद समाप्त किया था और थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर में जाकर सो गए थे और चार मास पश्चात फिर जब वे उठे तो वह दिन देवोत्थनी एकादशी कहलाया। इस दिन भगवान विष्णु का सपत्नीक आह्वान कर विधि विधान से पूजन करना चाहिए। इस दिन उपवास करने का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार इस एकादशी तिथि का उपवास बुद्धिमान, शांति प्रदाता व संततिदायक होता है। विष्णुपुराण में कहा गया है कि किसी भी कारण से चाहे लोभ के वशीभूत होकर, चाहे मोह के वशीभूत होकर ही जो लोग एकादशी तिथि को भगवान विष्णु का पूजन अभिवंदन करते हैं वे समस्त दुखों से मुक्त होकर जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। वहीं सनत कुमार इस एकादशी की महत्त्ता का वर्णन करते हुए ने लिखा है कि जो व्यक्ति एकादशी व्रत या स्तुति नहीं करता वह नरक का भागी होता है। महर्षि कात्यायन के अनुसार जो व्यक्ति संतति, सुख सम्पदा, धन धान्य व मुक्ति चाहता है तो उसे देवोत्थनी एकादशी के दिन विष्णु स्तुति, शालिग्राम व तुलसी महिमा के पाठ व व्रत रखना चाहिए।

भागवतपुराण के अनुसार विष्णु के शयन काल के चार माह में मांगलिक कार्यों का आयोजन निषेध होता है। शास्त्रों के अनुसार श्रीहरि विष्णु इस समय क्षीरसागर में शयन अवस्था में होते हैं तथा पृथ्वी इस काल में रजस्वला रहती है। धर्म शास्त्रीय मान्यताओं एवं सिद्धांतों के अनुसार इस समय किसी भी मांगलिक कार्य में स्त्री सहभागी नहीं बन पाती है। पृथ्वी भगवान विष्णु की पांच पत्नियों में से एक है। प्रत्येक मांगलिक कार्यो में भगवान विष्णु का सपत्नीक आह्वान किया जाता है। इस समय पृथ्वी पर वर्षा काल रहता है और यहां जल अधिकता रहती है। अत: इस अवधि में मांगलिक कृत्यों का आयोजन नहीं होता लेकिन देवोत्थनी (देवउठनी) एकादशी के बाद से सभी मांगलिक विवाहादि कार्य आरम्भ होने का विधान है। इस वर्ष 24 नवम्बर 2012 से 6 फ़रवरी 2013 के बीच में विवाह के केवल 20 मुहूर्त हैं, जो कि बहुत कम हैं। क्योंकि 15 दिसम्बर 2012 से 31 जनवरी 2013 के बीच मध्य पौष धनु संक्रांति का दोष रहेगा जबकि 11 फ़रवरी 2013 के बाद शुक्र का वृद्धत्त्व प्रारम्भ हो जाएगा। वही 14 फ़रवरी 2013 से 22 अप्रैल 2013 तक शुक्र अस्त रहेगा। इन कारणों से इस इस वर्ष विवाह मुहूर्त कम रहेंगे।

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जाने आपके लिए कैसा रहेगा शुक्र का तुला में गोचर

पंडित हनुमान मिश्रा
सौन्दर्य और एशो आराम के दाता ग्रह शुक्र ने 17 नवम्बर को अपनी नीच राशि का त्याग किया है। वह 11 दिसम्बर 2012 तक इसी राशि में रहेगा। शुक्र के नीच राशि से हटने से उन लोगों को खास फायदा होने वाला है जिनके दाम्पत्य जीवन में परेशानियां चल रही हैं। महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों में कमी आएगी। फ़िल्म उद्योग और कास्मेटिक्स उत्पादकों को भी फायदा होने वाला है। इसका विभिन्न राशियों पर क्या असर होगा इसकी चर्चा हम आप से कर लेते हैं-

मेष राशि:

इस अवधि में आपका व्यवहार सरस रहेगा और आपसी मनमुटाव दूर होंगे। कोई आनन्द दायक यात्रा हो सकती है। स्त्री वर्ग की संगति से लाभ मिलेगा। संगीत व अन्य ललित कलाओं सुगंध एवम् सौन्दर्य की वस्तुओं की ओर आपका झुकाव रहेगा। अपने व्यवसाय और व्यापार में आप बहुत अच्छा करेंगे। आमदनी में बढोत्तरी होगी। पारिवारिक जीवन सुखद रहेगा। आपका मिलनसार स्वभाव आपको बहुत सारे लोगों से जोडने में मददगार सिद्द होगा। लेकिन छोटी मोटी बीमारियां रह सकती हैं।


वृषभ राशि:

इस अवधि में आपको वासनात्मक विचारों से बचना चाहिए साथ ही अपने स्वास्थ्य का खयाल भी रखना चाहिए। यद्यपि काम का बोझ थकाने वाला रह सकता है लेकिन नौकरी के हालात अच्छे रहेंगे। विरोधी प्रबल हो सकते हैं अत: अपने बचाव को लेकर चिंतन करते रहें। खर्चों पर नियंत्रण रखते हुए स्त्री वर्ग से संबंध बिगडने न दें।

मिथुन राशि:

आपकी राशि पर यह परिवर्तन शुभ प्रभाव डालेगा। इस अवधि में आप स्त्रीवर्ग की ओर आकर्षित रहेंगे। आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा और खुशहाली बढे़गी। पारिवारिक जीवन सुखद रहेगा। बहु प्रतीक्षित अभिलाषाओं की सम्पूर्ति होगी। यदि आप में सृजनात्मक क्षमता है तो इस अवधि के दौरान आपकी कला संगीत इत्यादि में आपकी गति सफलदायक रहेगी। सामाजिक क्षेत्र बढे़गा और पुराने मित्रों सहयोगियों से मुलाकात होगी। संचार के माध्यम से भी आपको कोई अच्छी खबर मिल सकती है। यानी कि इस अवधि में आपके कार्य सफलता प्राप्त करते रहेंगे।

कर्क राशि:

इस अवधि में आपके पद प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी और आमदनी भी बढे़गी। पारिवारिक जीवन सुखद रहेगा। कोई फायदे का सौदा हाथ लग सकता है। परिवार में कोई आयोजन हो सकता है। यात्राओं से भी लाभ मिलेगा। विरोधी नुकसान नहीं पहुंचा पायेंगे। परिवार में सदस्यों की संख्या में बढोत्तरी की संभावना है। प्रयत्नों में सफलता मिलेगी। यानी कि यह समय हर लिहाज से अच्छा है।

सिंह राशि:

इस अवधि के दौरान आप अत्यधिक उत्साही और स्फूर्तिवान बनें रहेंगे। छोटी यात्राओं एवं पारिवारिक जीवन में सब सुखद होगा। लोगों से आपके सम्पर्क बढेंगे। नौकरी के हालात में भी इजाफा होगा। सौभाग्यशाली समय होने के कारण मनचाहा काम होता रहेगा।

कन्या राशि:

इस अवधि में आप परिवारजनों के साथ आप अच्छा निबाह कर सकेंगे। आप परिस्थितियों का बड़ी चतुरता से सामना करेंगे। आय में वृद्धि होगी। किसी संक्षिप्त मार्ग से भी आपके पास पैसा आ सकता है। परिवार में किसी शुभ कृत्य का आयोजन होगा। स्त्री वर्ग का साथ आपको रूचिकर लगेगा। महंगे और स्वादिष्ट भोजन के लिये आपका स्वाद जागृत होगा। घरेलू चीजों के लिये भी आप खर्च कर सकते हैं।

तुला राशि:

इस अवधि में आप सुखी व सानन्द रहेंगे। आपके चारों ओर का वातावरण सुखद होगा। स्त्री वर्ग की ओर आपका झुकाव रहेगा। वैवाहिक या प्रणय सुख के लिए भी समय अनुकूल रहेगा। अगर थोड़ी मेहनत करें तो अपनी आय को आप काफी बढ़ा सकते हैं। ललितकला, संगीत व साहित्य में आपकी रूचि रहेगी। लेकिन छोटी मोटी बीमारियों से आपको कुछ परेशानी रह सकती है। यदि वृश्चिक राशि की बात की जाय तो इस अवधि में आप सुविधा और विलास के साधनों पर खर्च करेंगे। उच्च कोटि का वैवाहिक या प्रणय सुख भोगेंगे। लेकिन अच्छा होगा कि आप अपनी भोग वृती पर अंकुश लगायें अन्यथा इस वजह से कुछ परेशानियां भी हो सकती हैं। विरोधीयों और प्रतिद्वन्दीयों से सावधान रहने की जरूरत है आर्थिक रूप से समय सामान्य रहेगा।


धनु राशि:

इस अवधि में आपको हर प्रयास में सफलता मिलेगी। मित्र और सहयोगी आपको पूरा सहयोग देंगे। बहु प्रतीक्षित अभिलाषाओं और इच्छाओं की सम्पूर्ति होगी। भाई बहिन भी अपने अपने क्षेत्र में अच्छा करेंगे। यात्राओं से लाभ होगा। उच्च कोटि का पारिवारिक सुख मिलेगा। परिवार में सदस्यों की बढो़त्तरी होने की संभावना है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में मिलने वाले मित्रों और सहयोगियों से सम्बंध अच्छे रहेंगे। यद्यपि खर्चे अधिक होंगे लेकिन आमदनी भी होती रहेगी।


मकर राशि:

अपने कार्य क्षेत्र में आप महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त करेंगे। प्रतिष्ठा और सम्मान में प्रचुर वृद्धि होगी। इस अवधि में विपरीत परिस्थितियों से भी आप कुशलता से निपट सकेंगे। व्यापारी सहयोगियों या व्यवसायकि लोगों व ग्राहकों के साथ आपके संबंध सुधरेंगे। समय के साथ साथ आप संग्रहशील होते जायेंगे और विलास सामग्री पर भी व्यय करेंगे। परिवार जनों का बर्ताव बहुत अच्छा रहेगा। व्यापारिक यात्राओं की संभावना है।


कुम्भ राशि:

इस अवधि में उच्च पदस्थ लोगों से आप सम्मान और उनकी कृपा प्राप्त करेंगे। माता पिता और गुरूजनों से संबंध मधुर रहेंगे। इस अवधि के दौरान आप सुदूर प्रदेशों की यात्रा भी कर सकते हैं। पारिवारिक जीवन आपके लिये सुखद एवम् अनुकूल रहेगा। आप के थोड़े प्रयत्न करने पर भी आपकी आमदनी बढ जायेगी। इस अवधि के दौरान विपरीत परिस्थितियों से सही तौर पर निपटने की आपकी क्षमता का विकास होगा। अगर आपकी पदोन्नति होने ही वाली है तो यह आपकी इच्छा के अनुरूप हो सकती है। आपका दिमाग धार्मिक क्रियाकलापों एवम् जीवन संबंधी उच्च दर्शन की ओर भी आकृष्ट हो सकता है।

मीन राशि:

इस अवधि में आपको  कुछ सावधान रहने की जरूरत है। कोई ऐसा काम न करें जिससे आपकी प्रतिष्ठा पर आंच आए। वासनात्मक विचारों को अपने पर हावी न होनें दें और अपने स्वास्थ्य का खयाल रखें। व्यर्थ की यात्राओं से बचने का प्रयास करें। हांलाकि आर्थिक रूप से समय को अनुकूल कहा जाएगा। अचानक धन प्राप्ति की संभावना बन रही है। फिर भी खर्चे पर नियंत्रण रखना होगा। परिजनों का सहयोग मिलता रहेगा।

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सूर्य का वृश्चिक राशि में गोचर : सभी राशियों पर प्रभाव


ग्रहों के राजा सूर्य ने 16 नवम्बर को अपनी नीच राशि का तुला का त्याग किया है और वॄश्चिक राशि में चले गए हैं। वह 15 दिसम्बर 2012 तक इसी राशि में रहेंगे। सूर्य के नीच राशि से हटने से सत्ता पच्छ पर होने वाले हमलों में धीरे-धीरे करके कुछ कमी आ सकती है अथवा सरकारी कामों में आ रहे व्यवधानों में धीरे-धीरे करके कुछ कमी आ सकती है। जिनके लिए सूर्य अनुकूल ग्रह है उनके लिए यद शुभ समाचार है लेकिन जिनके लिए सूर्य हानिकारक होता है उनके लिए कुछ परेशानियां भी ला सकता है। सूर्य के इस राशि परिवर्तन से किस राशि पर क्या प्रभाव पडेगा, आइए जानते हैं-

राशि परिवर्तन से विभिन्न राशियों पर पडने वाला प्रभाव:


मेष राशि :

मेष राशि वालों के सामने कुछ समस्यायें आ सकतीं हैं। संबंधियों से व्यवहार अच्छा रखें नहीं तो बेवजह झगड़े होंगे। स्वास्थ्य का ख्याल रखें। अनैतिक कार्यों व सन्देहास्पद सौदों से बचें। महत्वपूर्ण कागजों पर दस्तखत करने से पहले अच्छी तरह जांच परख कर लें।


वृषभ राशि:

वृष राशि वालों को अधिक मेहनत का कम फल मिलेगा। व्यवसायिक या व्यापार के साथी नुकसान करने का प्रयास करेंगे। आप तनावग्रस्त या अस्वस्थ्य भी रह सकते हैं। अत: 15 दिसम्बर 2012 तक अपने स्वास्थ्य का खयाल रखना जरूरी होगा।

मिथुन राशि:

मिथुन राशि वालों पर सूर्य का वृश्चिक राशि में जाना शुभ प्रभाव डालेगा। इस अवधि में आप जो भी करेंगे उसमें सफल रहेंगें। सारी समस्याओं का समाधान होता रहेगा और आप सफलता पायेंगे। शत्रु परास्त होंगे। पद, प्रतिष्ठा एवम् सम्मान की प्राप्ति होगी।

कर्क राशि:

कर्क राशि वालों! इस अवधि में आप जीवन का बड़े उत्साह और उल्लास से स्वागत करेंगे लेकिन प्रणय प्रेम संबंधों के लिये समय कम ठीक है। अचानक यात्रा की संभावना भी बन रही है।

सिंह राशि:

सिंह राशि वालो इस अवधि में आपको मेहनत करनी पड़ेगी और लगातार किया गया कड़ा परिश्रम आपको थका सकता है। ऐसे में आपको बुरी संगति से बचना चाहिए और वाहन इत्यादि सावधानी से चलाना चाहिए।

कन्या राशि:

कन्या राशि वालो का घरेलु जीवन में सुखी रहेगा और बहु प्रतीक्षित इच्छाएं पूरी होगी। भ्रमण व छोटी यात्राएं भाग्यशाली व सुखद रहेंगी। धन लाभ के समाचार मिलेंगे। पारिवारिक मित्रों और रिश्तेदारों से सामाजिक संबंध और अच्छे होंगे। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।

तुला राशि:

तुला राशि वालों के घरेलू जीवन में कुछ परशानियां रह सकती हैं। कुछ पारिवरिक समस्याएं भी रह सकती हैं। आर्थिक मामलों में सचेत रहना भी जरूरी होगा। व्यर्थ के खर्चों पर नियत्रण जरूरी होगा।

वृश्चिक राशि:

इस अवधि में जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण सकारात्मक रहेगा। आपका आत्मविश्वास बढा रहेगा। पद प्रतिष्ठा में वृद्धि। छोटी यात्राएं आपकी कड़ी मेहनत के कारण सफल होंगी। लेकिन घर-परिवार के लोगों व अपने स्वास्थ्य का खयाल रखना जरूरी होगा।

धनु राशि:

सूर्य का वृश्चिक राशि में जाना आपके लिए बहुत अनुकूल नहीं है अत: आपको चाहिए कि क्षणिक उन्माद में कोई काम न करें। सोच विचार कर निर्णय लें। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। मित्रों और रिश्तेदारों से संबंध मधुर बनाए रखें। पैसे कमाने का छोटा राश्ता न अपनाएं।

मकर राशि:

आपकी इच्छाएं व महत्वाकांक्षायें पूरी होंगी। मित्रों और रिश्तेदारों से सहयोग मिलेगा। अनुबन्धों और समझौतों से आपको लाभ मिलेगा। प्रेम संबंधों के लिये समय अच्छा है। आमदनी में वृद्धि होगी। लम्बी यात्राएं सुखद व सफलदायक सिद्ध होगी।

कुम्भ राशि:

इस अवधि में आप बहुत क्रियाशील एवम् व्यस्त रहेंगे। व्यापार या नौकरी में सफलता और वरिष्ठों का सहयोग मिलने के योग हैं। इस समय में आप अपनी सारी आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पा जायेंगे। यानी कि सब लिहाज से यह समय काफी संतोषप्रद रहेगा।

मीन राशि:

इस अवधि में लम्बी यात्राएं अधिक फायदेमंद नहीं रहेंगी। हांलाकि उच्च पद प्रतिष्ठा वाले लोगों की कृपा आप पर रहेगी। धार्मिक यात्राएं हो सकती हैं। कार्यक्षेत्र औए आर्थिक मामलों के लिए भी समय अच्छा है। लेकिन माता पिता के स्वास्थ्य का खयाल रखना जरूरी होगा।

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भविष्‍य की परतों को खोलती कृष्णमूर्ति पद्धति

पं0 पुनीत पाण्‍डे 

आजकल मीडिया का जमाना है। हर क्षेत्र में हमें नई-नई बातें सुनने और जानने को मिलती हैं। ज्‍योतिष भी इससे कुछ अलग नहीं है। कोई ज्‍योतिषी नाड़ी की बात करता है, तो कोई भृगु संहिता की। कोई कृष्‍णमूर्ती पद्धति का ज़िक्र करता है, तो कोई लाल किताब का। ऐसे में आम आदमी के लिए यह समझना बेहद मुश्किल हो जाता है कि आख़िर ये सब हैं क्‍या और इन सबका वे अपने दैनिक जीवन में क्‍या फायदा उठा सकते हैं? आइए, इस लेख में बात करते हैं कृष्‍णमूर्ति पद्धति के बारे में और समझने की कोशिश करते हैं कि यह ज्‍योतिष की पारम्‍परिक पद्धति से किस तरह भिन्‍न है।

कृष्णमूर्ति पद्धति की सबसे बड़ी ख़ासियत है इसका सटीक फलकथन। इस पद्धति के आधार पर निश्चित तौर पर यह बताया जा सकता है कि कोई घटना ठीक कितने बजे घटित होगी, यहाँ तक कि उसके घटित होने के समय का ब्यौरा सटीकता से सेकेण्डों में भी बताना संभव है। उदाहरण के लिए कृष्णमूर्ति पद्धति यह बताने में सक्षम है कि कोई हवाई जहाज़ हवाई-पट्टी पर कब उतरेगा, बिजली कितने बजकर कितने मिनट पर आएगी और कोई खोई हुई वस्तु कब मिलेगी। केपी के आश्चर्यजनक फलकथन इस पद्धति को ज्योतिष की दुनिया में न सिर्फ़ एक विशेष स्थान दिलाते हैं, बल्कि स्वयं ज्योतिष को एक ठोस वैज्ञानिक आधार भी मुहैया कराते हैं।

कृष्‍णमूर्ति पद्धति को संक्षेप में “केपी” भी कहते हैं। इस प‍द्धति की खोज या आविष्कार का श्रेय दक्षिण भारत के श्री के. एस. कृष्‍णमूर्ति को जाता है। उन्‍होंने पारम्‍परिक और विदेशी अनेक ज्‍योतिष की शाखाओं का अध्‍ययन किया और पाया की वे बहुत ही भ्रमित करने वाली और मुश्‍किल हैं। पुराने लेखकों की बातों में भी काफ़ी मतभेद हैं। लाखों या करोड़ों की संख्‍या में लिखे गए श्लोकों को याद रखना सामान्‍य व्‍यक्ति के लिए बड़ा मुश्‍किल है। सबसे मुख्‍य बात यह है कि दो अलग-अलग ज्‍योतिषियों के पास जाएँ तो वे दो अलग-अलग और परस्‍पर विरोधी बातें बता देते हैं। इन सभी वजहों से ज्‍योतिषी सही भविष्‍यवाणी नहीं कर पाते, जनता भ्रमित होती है और अन्त में ज्‍योतिष का नाम भी बदनाम होता है।

श्री के. एस. कृष्‍णमूर्ति ने ज्‍योतिष की विभिन्‍न शाखाओं के बेहतरीन विचारों को एकत्रित करके और उनमें अपने नवीन शोधों का समन्‍वयन करके इस पद्धति का नामकरण किया “कृष्‍णामूर्ति पद्धति”। यह पद्धति आज के समय में ज्‍योतिष की सबसे सटीक पद्धतियों में से एक मानी जाती है। यह पद्धति सीखने और प्रयोग में लाने में बहुत आसान है। पारम्‍परिक पद्धति के विपरीत यह सुनियोजित है और दो केपी ज्‍योतिषी आपको विरोधी भविष्‍यकथन करते भी नहीं मिलेंगे।

पारम्‍परिक पद्धति और कृष्‍णमूर्ति पद्धति में मुख्य फ़र्क इस प्रकार हैं -

जिस तरह बारह राशियाँ और सत्ताईस नक्षत्र होते हैं, उसी तरह केपी में हर नक्षत्र के भी नौ विभाजन किए जाते हैं जिसे उप-नक्षत्र या “सब” कहते हैं। कुल मिलाकर 249 उपनक्षत्र होते हैं, जो ज्‍योतिष फलकथन की सूक्ष्‍मता में वृद्धि करते हैं। उप-नक्षत्र की वजह से ही केपी में दिन की ही नहीं, बल्कि घण्टे, मिनट और सेकन्‍ड की सूक्ष्‍मता से भी भविष्‍यवाणी की जा सकती है।

“सब” की सूक्ष्‍मता और स्‍पष्ट सिद्धान्‍तों की वजह से केपी ज्‍योतिषी सूक्ष्‍म और दैनिक जीवन के बहुत सटीक फलकथन भी कर सकता है, जैसे - बिजली कितने बजे आएगी, कोई फोन कॉल कितने बजे आएगा, बारिश कितने बजे तक होगी और कब रुकेगी इत्‍यादि। पारम्‍परिक ज्‍योतिष से इतनी सटीकता से फलकथन बहुत मुश्किल या यूँ कहें कि असम्‍भव-सा लगता है।

केपी नक्षत्रों के प्रयोग पर विशेष जोर देती है। पारम्‍परिक ज्‍योतिष में नक्षत्रों का प्रयोग सीमित है।

पारम्‍परिक भारतीय ज्‍योतिष में भाव की गणना भाव चलित के आधान पर होती है। केपी पाश्‍चात्‍य पद्धिति के भाव चलित को मान्‍यता देता है, जिसे प्लेसीडस कस्‍प चार्ट या ‘निरयन भाव चलित’ भी कहते हैं। इस वजह से केपी की कुण्‍डली और पारम्‍परिक राशिचक्र में ग्रहों की स्थिति में कभी-कभी फ़र्क आ जाता है।

केपी में फलकथन का मुख्‍य आधार यह है कि कोई ग्रह न सिर्फ अपना फल देता है, परन्‍तु अपने नक्षत्र-स्वामी का भी फल देता है। पारम्‍परिक ज्‍योतिष का भुलाया हुआ यह सूत्र केपी में अति महत्‍ववपूर्ण है।

पारम्‍परिक ज्‍योतिषी में कई दशाओं का प्रयोग होता है, जैसे विशोंत्तरी दशा, अष्‍टोत्तरी दशा और योगिनी दशा इत्‍यादि। केपी सिर्फ विशोंत्‍तरी दशा को मानती है। सिर्फ एक दशा होने की वजह से ज्‍योतिषी के लिए केपी का प्रयोग आसान हो जाता है।

केपी में शासक ग्रहों के सिद्धान्‍त का प्रयोग होता है जिसके अनुसार प्रश्‍न के समय और उत्‍तर के समय शासक ग्रह समान होते हैं। जैसे किसी व्‍यक्ति को यह जानना है कि उसका विवाह कब होगा। केपी के अनुसार जिस वक्‍त यह प्रश्‍न पूछा जाएगा उस वक्‍त के शासक ग्रह और जब उस व्‍यक्ति का विवाह होगा उस वक्‍त के शासक ग्रह एक ही होंगे।

केपी में हजारों योगों का प्रयोग नहीं होता अत: ज्‍योतिषी को लाखों करोडों श्‍लोक याद रखने की जरूरत नहीं है। जरूरत है तो बस मुख्‍य नियमों को याद रखने की। इसी लिए में हमेशा कहता हूं कि केपी 21वीं सदी के ज्‍योतिषियों के मस्तिष्‍क के लिए बनाई गई पद्धति है।

केपी पारम्‍परिक ज्‍योतिष के अन्‍य कई सिद्धान्‍तों जैसे अष्‍टकवर्ग, योग जैसे कालसर्प, साढ़ेसाती, मंगल दोष आदि को भी मान्‍यता नहीं देती है।

केपी में प्रश्न ज्‍योतिष पर विस्‍तार से चर्चा की गई है। अगर किसी व्‍यक्ति को अपना जन्‍म-दिन और जन्‍म-समय नहीं पता, तो उसका जन्‍म समय न सिर्फ निकाला जा सकता है परन्‍तु बिना जन्‍म-समय आदि के भी उस व्‍यक्ति के प्रश्न का उत्तर दिया जा सकता है।

अन्‍त में सिर्फ इतना कहूंगा कि “केपी” 21वीं सदी की, कम्‍प्‍यूटर के जमाने के ज्‍योतिषी के लिए बनाई गई पद्धति है जो किसी व्‍यक्ति के जीवन के छोटे-से-छोटे पहलू का भी सटीकता से फलकथन करती है।

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इस दिवाली क्या उपहार दें?

पंडित हनुमान मिश्रा
 
लगभग सभी बडे त्यौहारों के मौके पर लोग अपने जानकारों को कुछ न कुछ उपहार देना चाहते हैं। खासकर दिवाली के मौके पर उपहारों के आदान प्रदान का सिलसिला जोरों पर होता है। हम यहां पर कुछ ऐसे उपहारों का जिक्र करने जा रहे हैं जो न केवल आपके अपनों और मित्रों के लिए यादगार रहेंगें बल्कि उनके लिए सौभाग्य दायक भी रहेंगे।

दीवावली पंचपर्वों का त्यौहार है यानी इस समय एक नहीं बल्कि पांच-पांच त्यौहार मनाए जाते हैं। इन त्यौहारों की शुरुआत धनतेरस से होती है और भइयादूज तक उत्सव मनाने का सिलसिला चलता रहता है। अत: हम धनतेरस के दिन के दिन दिए जाने वाले उपहारों से शुरू करते हैं-


धनतेरस यानी कि कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि इस दिन को चीजों को खरीदने और नया व्यापार शुरू करने के लिए शुभ माना जाता है। धनतेरस का दिन व्यापारी समुदाय के लिए विशेष महत्व का होता है। ऐसे में इस दिन यदि आप अपने घर-परिवार के लोगों, रिश्तेदारो या फिर मित्रों को कुछ देना चाह रहे हैं तो उन्हें उपहार स्वरूप एक लक्ष्मीयंत्र अथवा कुबेर यंत्र दें। जो न केवल उनके व्यवसाय बल्कि उनके सौभाग्य को बढाने में भी सहायक सिद्ध होगा।

धनतेरस के अगले दिन नरक चतुर्दशी होती है जिसे लोग न छोटी दीवाली के रूप में भी मनाते हैं। वैदिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण नरकासुर नामक असुर को मारा था। इसतरह देखा जाय तो यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हुआ। अत: इस दिन यदि आप अपने घर-परिवार के लोगों, रिश्तेदारो या फिर मित्रों को कुछ देना चाह रहे हैं तो उन्हें श्री यंत्र या पारद दुर्गा उपहार स्वरूप भेंट करें। यह उपहार उनके जीवन में उन्नतिदायक सिद्ध होगा।

तीसरा पर्व दिवाली का होता है जो इस पंचपर्वों में सबसे महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन जब महालक्ष्मी जो धन की देवी कही गई हैं उनकी पूजा आराधना की जाती है। अत: इस दिन यदि आप अपने घर-परिवार के लोगों, रिश्तेदारो या फिर मित्रों को कुछ देना चाह रहे हैं तो लक्ष्मी यंत्र, गणपति यंत्र, पारद गणेश और पारद लक्ष्मी उपहार स्वरूप भेंट करें जो उनके भाग्योत्कर्ष कें सहायक सिद्ध होगा।

दीपावली से अगला दिन गोवर्धन पूजा का होता है। यह दिन हमें यह संदेश देता है कि प्रकृति की सुरक्षा में ही हमारी रक्षा का मंत्र समाहित है। अत: इस दिन का उपहार स्वरूप आप जो सौभाग्यदायक चीजें अपने स्वजनों को भेंट करें वे प्राकृतिक होनी चाहिए। अत: इस दिन यदि आप अपने घर-परिवार के लोगों, रिश्तेदारो या फिर मित्रों को कुछ देना चाह रहे हैं तो एक तुलसी माला या एक कमल गट्टा माला भेंट करें ये चीजें सौभाग्य व धन समृद्धि लाने में सहायक सिद्ध होंगी।

पंचपर्वों का पाँचवां और अंतिम दिन भाई दूज के रूप में जाना जाता है। भाई दूज भाइयों और बहनों को एक दूसरे के लिए अपने प्यार और स्नेह की अभिव्यक्ति का दिन माना गया है। अत: इस दिन यदि आप अपने घर-परिवार के लोगों, रिश्तेदारो या फिर मित्रों को कुछ देना चाह रहे हैं तो एक पारद दुर्गा, तुलसी माला या एक श्री यंत्र उपहार स्वरूप भेंट करें। यह उपहार उनके लिए भाग्यशाली साबित हो सकता है।

तो इस दिवाली आप अपने घर-परिवार के लोगों, रिश्तेदारो या फिर मित्रों को सौभाग्य, धन, स्वास्थ्य और समृद्धि का विशेष उपहार देकर उनकी उन्नति में सहायक बनें।
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दीपावली 2012 के मुहूर्त


श्री महालक्ष्मी पूजन व दीपावली का महापर्व कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की अमावस्या में प्रदोष काल, स्थिर लग्न समय में मनाया जाता है। धन की देवी श्री महा लक्ष्मी जी का आशिर्वाद पाने के लिये इस दिन लक्ष्मी पूजन करना विशेष रूप से शुभ माना गया है। इस बार दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ लग्न एवं चौघड़िया चारों योग बन रहे हैं। साथ ही इस दिन मंगलवार भी है। जो मुहूर्त के लिए विशेष महत्व रखते हैं। प्रदोष काल में दीपावली पूजन के लिए शुभ मुहूर्त माना गया है। इस काल में स्थिर लग्न को उत्तम माना जाता है। इस वर्ष दीपावली के दिन प्रदोषकाल सायं 5 बजकर 7 मिनट से सायं 7 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। वहीं वृषभ नामक स्थिर लग्न इस समय उदय रहेगी। दिल्ली के आसपास के शहरों में वृषभ लग्न 5 बजकर 33 मिनट से सायं 7 बजकर 28 मिनट तक रहेगी। इसमें भी लाभ नामक चौघडियों का समावेश सायं 6 बजकर 45 मिनट के बाद हो रहा है। दिल्ली के आसपास के शहरों में यह समय शाम 7 बजकर 7 मिनट से शाम 8 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। अलग-अलग स्थानों पर इसका समय अलग-अलग हो सकता है। पूर्वी भारत में लक्ष्मी पूजन का मुहूर्त औसतन शाम 05 : 00 बजे से 06 : 56 तक रहेगा। उत्तर भारत में लक्ष्मी पूजन का समय औसतन शाम 05 : 35 बजे से 07 : 25 तक रहेगा। दक्षिण भारत में लक्ष्मी पूजन का समय औसतन शाम 05 : 47 बजे से 07 : 47 तक रहेगा। वहीं पश्चिम भारत लक्ष्मी पूजन का मुहूर्त औसतन शाम 06 : 07 बजे से 08 : 05 तक रहेगा।


इस समय लग्नेश और षष्ठेश शुक्र पंचम भाव में स्थित है जो बृहस्पति से दृष्ट रहेगा। धनेश और पंचमेश बुध सप्तम भाव में स्थित है वह भी लग्न में स्थित बृहस्पति से दृष्ट रहेगा। तृतीयेश चन्द्रमा, चतुर्थेश सूर्य तथा भाग्येश और दशमेश शनि अर्थात तीन ग्रह छठे भाव में स्थित हैं। सप्तमेश और व्ययेश मंगल अष्टम में स्थित होकर अरिष्टफलकारी हो रहा है। इस समय अष्टमेश मंगल का दान या उपाय आदि करके वृष लग्न में खाता (बसना या बही) पूजन, श्रीगणेश लक्ष्मी इन्द्रादि का पूजन करना शुभद और लाभप्रद रहेगा।

दूसरा स्थिर लग्न सिंह है। दिल्ली के आसपास के शहरों में सिंह लग्न लगभग 12:08 AM (जो अंग्रेजी गणना के नियमानुसार 14 नवम्बर हो जाएगा) से सायं 2:25 AM तक रहेगी। इसमें अमृत और चर नामक चौघडियां भी समाहित हैं। इस समय में भी लक्ष्मीपूजन किया जा सकता है। इस समय लग्नेश सूर्य, व्ययेश चन्द्रमा, षष्ठेश तथा सप्तमेश शनि तीसरे भाव में स्थित हैं। लाभेश और धनेश होकर बुध चौथे भाव में स्थित है और गुरू ग्रह से दृष्ट है। भाग्येश और चतुर्थेश मंगल पंचम भाव में स्थित है। पंचमेश और अष्टमेश गुरु दशवें भाव में स्थित है। इस तरह देखा जाय तो इस लग्न में सभी ग्रहों की स्थितियां अनुकूल हैं और यह एक उत्तम मुहूर्त है। अत: सिंह लग्न में लक्ष्मी, गणेश, कुबेर व इन्द्रादि का पूजन अर्चन करना एवं खाता (बसना या बही) पूजन आदि शुभ रहेगा।

इन दोनो लग्नों अर्थात वृषभ और सिंह लग्न के बीच दो लग्न और आती हैं जो क्रमश: मिथुन और कर्क लग्न हैं। कर्क लग्न चर लग्न होती है और चर लग्न में लक्ष्मी पूजन नहीं किया जाता लेकिन मिथुन लग्न को द्विस्वभाव लग्न माना गया है यानी कि इस लग्न के आधे भाग को स्थिर माना गया है और आधे को चर संज्ञक माना गया है। दिल्ली के आसपास के शहरों में मिथुन लग्न 7:28 PM से सायं 9:42 PM मिनट तक रहेगी। जिसमें 20:46 PM तक लाभ नामक चौघडियों का समावेश है। इस लग्न में सप्तमेश और दशमेश गुरु केतू के साथ द्वादश भाव में स्थित है। अत: गुरु और केतू का दान और उपाय करके लक्ष्मी, गणेश, कुबेर व इन्द्रादि का पूजन अर्चन करना शुभ रहेगा। भारतीय मानक समय के अनुसार 11:20 PM से 12:04 AM तक महानिशीथ काल रहेगा जिसमें शुभ और अमृत नामक चौघडियों का समावेश रहेगा जिसमें लक्ष्मी,कुबेर, इन्द्रादि, महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती आदि का पूजन अर्चन, विभिन्न तांत्रिक प्रयोग, श्रीचक्रार्चन, श्रीयंत्र पूजन अर्चन अनुष्ठान आदि करना श्रेष्ठ एवं शुभ फलदायक होगा।
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दीपावली 2012 और आपका राशिफल

 
दीपावली अंधेरे से प्रकाश की ओर जाने की प्रेरणा देने वाला पर्व है। यह पर्व धन की देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना के लिए भी जाना जाता है। इस वर्ष यह पर्व 13 नवम्बर 2012 को मनाया जा रहा है। जैसा कि सभी जानते हैं कि यह पर्व कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है। इस वर्ष अमावस्या 13 नवम्बर के दिन है। इस दिन ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार से रहेगी। इस समय सूर्य- तुला राशि में, चंद्रमा- तुला राशि में, मंगल- धनु राशि में, बुध- वृश्चिक राशि में, बृहस्पति- वृषभ राशि में, शुक्र- कन्या राशि में, शनि- तुला राशि में, राहु- वृश्चिक राशि में और केतु- वृषभ राशि में स्थित हैं। दीपावली के दिन की इस गोचरीय स्थिति का विभिन्न राशियों पर क्या प्रभाव पडेगा आइए जानते हैं-

मेष राशि-

मां लक्ष्मी आप पर मेहरबान होने वाली है अर्थात धन आगमन होता रहेगा लेकिन चंचल स्वभाव की लक्ष्मी माता आपके पास ज्यादा देर तक नहीं रुकना चाह रही हैं अत: खर्चे भी पर्याप्त मात्रा में रहेंगे। आपको खर्चों पर नियंत्रण पाने का प्रयास करते रहना होगा अन्यथा आप कुछ हद तक तनावग्रस्त रह सकते हैं। आपके मान सम्मान में भी इजाफा होगा। प्रभावशाली व्यक्तियों से मिलना आपके लिए फायदेमंद रहेगा। घर-परिवार व संतान से सम्बंधित सुख मां लक्ष्मी की कृपा से आपको मिलने वाला है। आपके कुछ खर्चे धार्मिक कार्यों में भी हो सकते हैं।


वृषभ राशि-

मां लक्ष्मी की कृपा आप पर बरसने वाली है। आमदनी के नए श्रोतों के मिलने से आप धन संचय सहजता से कर पाएंगे। समाज में भी मान-सम्मान और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी। कार्य क्षेत्र में नए उत्तरदायित्व या पदोन्नति मिलने के योग बन रहे हैं। आपके द्वारा शुरू किए गए कामों को सफलता मिलेगी। आप धार्मिक और सामाजिक कार्यों में बढ-चढ कर भाग लेना चाहेंगे। लेकिन कार्यों की अधिकता को अपने पर हावी न होने दें अन्यथा स्वास्थ्य बिगड सकता है। धन-सम्पत्ति को लेकर कोई पारिवारिक विवाद भी हो सकता है, जिसे आपको बुद्धिमत्ता से निबटाने का प्रयास करना चाहिए।

मिथुन राशि-

दीपावली के दिन का ग्रह गोचर इस बात का संकेत कर रहा है कि इस वर्ष आपको अधिकांश मामलों में आर्थिक लाभ होने वाला है। लेकिन समय-समय पर होने वाली अस्वस्थता कुछ परेशानी, तनाव व व्याकुलता दे सकती है फिर भी आप शरीर व मन से सामान्य बने रहेंगे और मेहनत करके सफलता व सम्मान प्राप्त करते रहेंगे। आपके कुछ खर्चे शुभ कार्यों में हो सकते हैं। मां लक्ष्मी इस वर्ष आपको कुछ यात्राएं करने की सलाह दे सकती है अर्थात यात्राओं के माध्यम से आपको लाभ मिलेगा।

कर्क राशि-

इस वर्ष की दीपावली कर्क राशि वालों के लिए मां लक्ष्मी की कृपा साथ लाई है। आमदनी के नए श्रोत मिलेंगे। आपकी अर्थिक स्थिति मजबूत होगी। व्यापार व्यवसाय में सफलता मिलेगी। नौकरीपेशा को पदोन्नति मिलेगी। लेकिन कार्यों की अधिकता रह सकती है। समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी। सामान्यत: आप खुशहाल और मानसिक रूप से संतुष्ट रहेंगे लेकिन शनि चंद्रमा कि युति दीपावली के दिन होने के कारण अपने स्वास्थ्य का खयाल रखना जरूरी होगा।


सिंह राशि-

इस दिवाली मां महालक्ष्मी आपको ऐसा आशिर्वाद देने वाली हैं जिससे आप के संबंध और पहचान अपनी हैशियत से बडे लोगों के साथ बनेंगे। ये संबंध आगे चल कर आपके लिए सफलता दायक और आर्थिक मामलों में मददगार सिद्ध होंगे। कार्य-व्यापार में सफलता के साथ-साथ घरेलू सुख-शांति के अच्छे योग बन रहे हैं। लगातार लाभ होते रहने से आर्थिक चिंताएं दूर रहेंगी। समाजिक दायरा भी मजबूत होगा। इन सबके बावजूद आपको अपने स्वास्थ्य का खयाल रखते हुए निरंतर प्रयत्नशील बने रहना है।

कन्या राशि-

प्रकाश का प्रतीक यह पर्व आपके जीवन में शनि की साढेसाती के कारण कुछ हद तक आए अंधेरे को दूर करने का संदेशा लाया है। आप अपने कार्यक्षेत्र को लेकर कुछ नई योजनाएं बनाने जा रहे हैं जो आगे चलकर आपके लेइ लाभदायी रहेंगी। जिन कामों को कुछ रुकावटों के कारण आपने रोक रखा है उनके पूरा होने का समय आ चुका है। आपके आर्थिक पक्ष में भी सुधार होने के योग बन रहे हैं। आमदनी की निरंतरता आपको प्रसन्नता देती रहेगी। आपके सामाजिक दायरे में भी इजाफा होने के योग बन रहे हैं।

तुला राशि-

इस दिवाली आप पर मां लक्ष्मी की कृपा बरसेगी तो जरूर लेकिन शायद आपने जितनी उम्मीद लगा रखी है उसमें कुछ कसर रह जाए। फिर भी आपकी आर्थिक स्थिति सामान्य बनी रहेगी। आमदनी में निरंतरता भले न रह पाए लेकिन अचानक धन लाभ होता रहेगा। आप शारीरिक रूप से स्वस्थ्य रहेंगे लेकिन कुछ मानसिक चिंताएं रह सकती हैं। आपके द्वारा किए गए परिश्रम का पूर्ण लाभ आपको न मिलने से आप असंतुष्ट रह सकते हैं। हालांकि सरकारी लोगों या वरिष्ठ लोगों के सहयोग से आप अपने कामों को सुधार पाएंगे।

वृश्चिक राशि-

मां लक्ष्मी आप पर अपनी कृपा बरसाएंगी। आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। धनार्जन के नए श्रोतों के मिलने से आपका मनोबल बढेगा। हालांकि बीच-बीच में कुछ खर्चें भी आते रहेंगे। कार्य व्यापार में सफलता मिलेगी। नौकरीपेशा को पदोन्नति मिलने के योग बन रहे हैं। यदि आप बेरोजगार हैं तो आपको रोजगार की प्राप्ति हो जाएगी। विवाह योग्य अविवाहित लोगों जीवनसाथी की प्राप्ति होगी। घर-परिवार में सुख शांति रहेगी। समाज में मान-सम्मान बढेगा।

धनु राशि-

इस दीपावली मां लक्ष्मी आपको ऐसा आशिर्वाद देने वाली है कि वह आपके घर आती जाती रहेंगी अर्थात आपके घर धनागमन तो होगा लेकिन खर्चें भी बनें रहेंगे। हांलाकि कि आमदनी में इजाफा होना सुनिश्चित है। अत: आपको चाहिए कि आय-व्यय में संतुलन बनाए रखें। हां कुछ शुभ एवं मागलिक कार्यों में धन खर्च करके आप यश के भागीदार जरूर बनेंगे। आपको पारिवारिक व सांसारिक सुख दोनों प्राप्त होंगे। श्रम व लगन से कार्य करने पर व्यापार या नौकरी में अच्छी स्थिति बनी रहेगी। स्वास्थ्य भी सामान्यत: ठीक रहेगा।

मकर राशि-

इस दिवाली मां लक्ष्मी आपके चहुमुखी विकासशील होने का आशिर्वाद देने वाली हैं। आप आर्थिक लाभ प्राप्त करते रहेंगे। आपकी कार्य कुशलता आपको सफलता और सम्मान दिलाएगी। नौकरी एवं व्यवसाय में भी अनुकूलता बनी रहेगी। विपरीत लिंगी से प्रगाढता होने के भी योग बन रहे हैं। आपको राज्यलाभ या सरकारी अधिकारियों से सहयोग मिलेगा। ज्ञानार्जन और विभिन्न विषयों को जानने में आपकी रूचि बढेगी। आप विभिन्न गूढ विषयों की भी जानकारी लेना चाहेंगे।


कुंभ राशि-

इस दीपावली मां लक्ष्मी आप पर मेहरबान होने वाली है। भाग्य आपके साथ है। कार्य व व्यापार में अनुकूलता आएगी जिससे आपको अधिक लाभ मिलने की संभावनाएं प्रबल होंगी। परिवार में सुख-शांति रहेगी। योजनाओं में सफलता और प्रगति होगी। यदि आप कोई वाहन या सम्पत्ति खरीदना चाह रहे हैं तो आपकी मनोकामना पूर्ण होने का समय आ चुका है। ससुराल पक्ष से भी आपको लाभ मिल सकता है। आपका परिश्रम और कार्य कुशलता लगभग सभी क्षेत्रों में आपको सफलता दिलाएंगे। 

मीन राशि-

इस दीपावली मां लक्ष्मी आपको कुछ नवीन विषयवस्तुओं या संबंधों से अवगत कराने वाली हैं। इन चीजों से आपको आने वाले समय में फायदा जरूर होगा। कार्य व्यापार के नए अवसर मिलने के योग बन रहे हैं। आपके मित्र और बन्धु आपके सहयोगी सिद्ध होंगे। किसी कार्य को लेकर की गई यात्राएं सफल रहेंगी। आम तौर पर आपका स्वास्थ्य अनुकूल बना रहेगा। पाठन-पाठन के लिहाज से भी समय अनुकूल रहेगा। साहित्य और दर्शन में आपकी रुचि बढ सकती है। आप समाज में सम्मान एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करेंगे।

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क्या आपकी कुण्‍डली में लक्ष्मी प्राप्ति का योग है?

 
इस भौतिकता के युग में हर व्यक्ति को धन की आवश्यकता होती है । हर आदमी किसी न किसी प्रकार से धनार्जन करना चाह रहा है। हर आदमी को यह भी जानने की उत्सुकता रहती है कि उसे धन मिलेगा या नही? ऐसे ही प्रश्न आपके मन भी उठ रहे हो सकते हैं। इसी लिए हम आज लक्ष्मी योग पर चर्चा करने जा रहे हैं।

क्या होता है लक्ष्मी प्राप्ति योग?

वैसे तो धन देने वाले अनेकों योगों का उल्लेख ज्योतिषीय ग्रन्थों में मिलता है। जिनकी सम्यक जानकारी के लिए तो किसी अच्छे ज्योतिषी की शरण में जाना ही उचित रहेगा लेकिन हम यहां पर कुछ सरल लक्ष्मी प्राप्ति योगों पर चर्चा करेंगे। जो कि ज्योतिष की साधारण जानकारी रखने वाले व्यक्ति को भी समझ में आ जाय। रहा सवाल आपके प्रश्न क्या होता है लक्ष्मी योग का तो सरल शब्दों में कहा जाय तो कुण्डली में उपस्थित ऐसा योग जिसके प्रभाव से जातक को धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति हो लक्ष्मी योग कहलाता है। यहां हम द्वादश राशि व लग्नों के अनुसार धनयोग की चर्चा करेंगे।

लग्नानुसार लक्ष्मी प्राप्ति योग-

मेष लग्न - इसमें शनि नवम भाव में, गुरू सप्तम भाव में, शुक्र पंचम भाव में एंव सूर्य तृतीय भाव में हो तो लक्ष्मी योग बनता है।
वृष लग्न - इस लग्न में शनि सप्तम में या नवम में हो बुध द्वितीय या पंचम में हो तो धनयोग आपकी कुंडली में होगा ।
मिथुन लग्न - इस लग्न की कुंडली में मंगल नवम में हो , शुक्र सप्तम भाव में हो और चंद्रमा केन्द्र या त्रिकोण में तो धनयोग है।
कर्क लग्न - इसमें मंगल केन्द्र या त्रिकोण में, सूर्य द्वितीय, पांचवें या नवमें भाव में तथा चंद्र ग्रह लग्न या एकादश स्थान में हो तो धनयोग बनता है।
सिंह लग्न - इसमें बुध ग्रह द्वितीय, नवम या एकादश भाव में हो। सूर्य या शुक्र सप्तम स्थान में या शुक्र पंचम स्थान में हो तो धनयोग रहता है।
कन्या लग्न - इसमें शुभ ग्रह केन्द्र या त्रिकोण में, चंद्रमा सप्तम में, और बुध दशम स्थान में हो तो भी धनागमन होता रहता है।
तुला लग्न - इस लग्न में मंगल द्वितीय या सप्तम अथवा नवम स्थान में हो, सूर्य सप्तम या एकादश स्थान में हो, एवं शनि केन्द्र या त्रिकोण में हो तो लक्ष्मी का आगमन होता रहता है ।
वृश्चिक लग्न - इस लग्न में बृहस्पति केन्द्र या त्रिकोण में हो, शनि तृतीय स्थान में व बुध केन्द्र में हो तो लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है।
धनु लग्न - इस लग्न में शनि गुरू केन्द्र या त्रिकोण में हो शनि तृतीय स्थान में हो एवं बुध केन्द्र में हो तो धनयोग बनता है ।
मकर लग्न – इसमें लग्न में शनि हो, द्वितीय भाव में शुक्र हो एवं केन्द्र या त्रिकोण में बुध स्थित हो तो लक्ष्मी योग बनता है ।
कुंभ लग्न - इसमें में गुरू द्वितीय स्थान या त्रिकोण में हो और मंगल दशम भाव में हो तो धनयोग बनता है ।
मीन लग्न - इसमें मंगल ग्रह नवम भाव में हो और गुरू केन्द्र या त्रिकोण में हो एवं शनि एकादश भाव में हो तो धनयोग बनता है ।

लक्ष्मी प्राप्ति के लिए उपाय और सुझाव:-
  • धन या व्यापार से संबंधीत लेन-देन के खाते पर या पत्र व्यवहार करते समय हल्दी या केशर लगायें।
  • प्रतिदिन भोजन के लिए बनी पहली रोटी गाय को खिलायें।
  • शुक्रवार को सफेद वस्तुओं का दान करने से धन योग बनता हैं अत: यथा सम्भव यह कार्य करें।
  • प्रात : काल नाश्ता करने से पूर्व झाडू अवश्य लगायें।
  • रात को झूठे बर्तन, कचरा इत्यादि रसोई में न रखें।
  • प्रतिदिन संध्या समय घर पर पूजा एक निश्चित समय पर ही करें।
  • नियमित रुप से शनिवार के दिन घर कि साफ़-सफाई करें।
  • रुपया पैसा धन को थूक लगाकर गिनने से दरिद्रता आती हैं अत: इससे बचें।
  • बुधवार को धन का संचय करें। बैंक में धन जमा करवाते समय लक्ष्मी मंत्र जपना चाहिए।
  • घर में किसी भी देवी देवता कि एक से ज्यादा तस्वीर,मूर्ति पूजा स्थान न रखें।
  • जरुरत मंद व्यक्ति, गरिबो को यथासक्ति मदद कर उन्हें दान इत्यादि समय-समय पर देते रहें।
  • अशोक के मूल की जड़ का एक टुकड़ा पूजा घर में रखने और रोजाना धूप-दीप से पूजन करने से धन कि कमी नहीं खोती।
  • तिजोरी के लॉकर में हमेशा दो बॉक्स रखें। एक में रोजाना कुछ रूपये रख कर बंद कर दें, उसमें से रूपये नहीं निकालें या अत्याधिक आवश्यकता होने पर निकाले। दूसरे बॉक्स में से काम के लेन-देन के लिए रूपए निकालें।
  • आमदनी या कलेक्शन को कम से कम 24 घंटे के बाद ही खर्च के लिये निकालने से अत्याधिक धन लाभ होता हैं।
  • जो लोग नौकरी लरते हैं वह भी अपना पैसा बैंक में आने के या घर में लाने के 24 घंटे के बाद ही खर्च के लिये निकालने से अत्याधिक धन लाभ होता हैं।
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क्यों जरूरी है लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए गणेश पूजन

 
आर्थिक रूप से सम्पन्नता प्रदान करने में हम मुख्यत: मां लक्ष्मी और कुबेर महराज को प्राथमिकता देते हैं। वास्तव में इन्हें ही धन का देवी-देवता माना भी गया है लेकिन धन वैभव के स्थायित्त्व के मामले में भगवान विष्णु और गणेश को अनदेखा नहीं करना चाहिए। लक्ष्मी पति भगवान विष्णु की पूजा उपासना से लक्ष्मी चिरकाल तक उपासक के घर में निवास करती हैं अन्यथा अपने चंचल स्वभाव के कारण वह एक जगह पर लम्बे समय तक निवास नहीं कर पातीं।


भगवान गणेश विघ्न विनाशक हैं और विघ्नों को दूर करने के साथ-साथ मां लक्ष्मी से भी इनका अटूट नाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार गणेश जी मां लक्ष्मी के दत्तक पुत्र भी माने गए हैं। जिसप्रकार मां लक्ष्मी अपने पति विष्णु को छोडकर नहीं जाती उसी प्रकार अपने पुत्र मोह के कारण भी वह लम्बे समय तक गणेश उपासक के घर में ठहरती हैं। कहते हैं कि एक बार किसी विषय पर भगवान विष्णु से घमंड के वशीभूत होकर स्वयं की बहुत अधिक प्रसंसा कर बैठीं। उनके घमंड को दूर करने के लिए भगवान ने उनसे कहा कि सर्वसम्पन्नता तभी मानी जाती है जब एक स्त्री संतान से युक्त हों। दु:खी लक्ष्मी मां पार्वती की शरण में गईं और गणेश जी को दत्तक पुत्र के रूप में मांग लिया और गणेश जी को सभी सिद्धियां और सुख का दाता बना दिया। जिस घर में गणेश जी का निरादर होता है उस घर से लक्ष्मी रूठ जाती हैं। इस संदर्भ में एक कथा का वर्णन भी मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है-

एक तपस्वी ने अपनी कडी तपस्या से मां लक्ष्मी को प्रसन्न कर सदैव कृपा प्राप्ति का वरदान मांग लिया। एक दिन वह व्यक्ति एक राजा के यहां पहुंचा और एक झटके में राजा का मुकुट गिरा दिया। राजा गुस्से से भर गया लेकिन मां लक्ष्मी की कृपा देखिए कि राजा के मुकुट से एक बिच्छू निकल कर बाहर भागा। राजा को लगा कि इस आदमी ने उसे बिच्छू से बचाया है अत: उसे मंत्री मे रूप में नियुक्त कर लिया। एक दिन सन्यासी ने सबको राज दरवार से बाहर निकल जाने को कहा। सारे लोगों के बाहर निकलते ही महल की दीवारें गिर पडीं। अब क्या था राज्य का सारा कार्य उस मंत्री के इशारे से चलने लगा। समय के साथ उस व्यक्ति पर घमंड सवार होने लगा। घमंड में चूर उस व्यक्ति में एक दिन राज महल में स्थापित एक गणेश जी की मूर्ति को महल से बाहर फेंकवा दिया। उसके इस कृत्य से मां लक्ष्मी नाराज हो गईं। और अगले की दिन उस मंत्री पर दु:खों का पहाड टूट पडा। उस मद में चूर उसने घोषणा कर दी कि राजा अपनी पोषाक उतार कर फेंक दे क्योंकि उसमें सांप है। राजा ने ऐसा ही किया लेकिन मां लक्ष्मी की दुष्कृपा के चलते उस व्यक्ति की बात झूठ निकली और राजा ने नाराज होकर उसे कारागार में डाल दिया। तब उस व्यक्ति को अपनी भूल का अनुभव हुआ और पश्चाताप करते हुए उसने जेल में ही मां लक्ष्मी की आराधना शुरू की। मां लक्ष्मी ने स्वप्न में दर्शन देते हुए उसे बताया कि गणेश का अपमान करने के कारण ही उसकी यह दशा हुई है। क्योंकि गणेश बुद्धि के देवता हैं उनका अपमान करने से तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हुई और ये सब भ्रष्ट बुद्धि का ही परिणाम है। पश्चाताप करते हुए उस व्यक्ति ने गणेश भगवान से क्षमा मांगी और गणेश कृपा से अगले दिन राजा ने उसे आजाद कर पुन: मंत्री बना दिया।

इन तमाम कथाओं से यह पता चलता है कि हम सबके लिए मां लक्ष्मी को प्रसन्न कर लेना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि लक्ष्मी के स्थायित्व के लिए भगवान विष्णु और गणेश की भी पूजा आराधना करनी चाहिए। अत: इस दीपावली हम सभी को मां लक्ष्मी, कुबेर, विष्णु और गणेश की पूजा करनी है। साथ ही अपनी कुल परम्परा और लोक परम्परा के अनुसार अन्य देवी देवताओं का पूजन भी करना होगा। इसी में सुख और समृद्धि समाहित है। आप सबको "एस्ट्रोसेज" परिवार की ओर से दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं !!

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कार्तिक माह में स्नान का महत्‍व

 
हमारे धर्मशास्त्रों में अशांति, पाप आदि से बचने के कई उपाय बताए गए हैं। उन्हीं में से कार्तिक मास में किए गए स्नान-व्रत भी एक है। कार्तिक का महीना बहुत ही पवित्र माना जाता है। ऐसा कहा गया है कि इस माह में की पूजा तथा व्रत से ही तीर्थयात्रा के बराबर शुभ फलों की प्राप्ति हो जाती है। इस माह के महत्व का वर्णन स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।

स्कंद पुराण में कार्तिक माह के महत्‍व के बारे में कहा गया है कि कार्तिक के समान दूसरा कोई मास नहीं, सत्ययुग के समान कोई युग नही, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।
   
कार्तिक माह में किए स्नान का फल, एक हजार बार किए गंगा स्नान के समान व सौ बार किए गए माघ स्नान, वैशाख माह में नर्मदा नदी पर किए गए करोड़ बार स्नान के समान माना गया है। कहा गया है कि जो फल कुम्भ में प्रयाग में स्नान करने पर मिलता है, वही फल कार्तिक माह में किसी पवित्र नदी के तट पर स्नान करने से मिलता है। पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति इस माह में स्नान, दान तथा व्रत करते हैं, उनके पापों का अन्त हो जाता है। कार्तिक में पूरे माह ब्रह्ममुहूर्त में किसी नदी, तालाब, नहर या पोखर में स्नानकर भगवान की पूजा किए जाने का विधान है। धर्म शास्त्रों के अनुसार कलियुग में कार्तिक मास में किए गए व्रत, स्नान व तप को मोक्ष प्राप्ति का बताया गया है

कार्तिक माह में शिव, चण्डी, सूर्य तथा अन्य देवों के मंदिरों में दीप जलाने तथा प्रकाश करने का बहुत महत्व माना गया है. इस माह में भगवान केशव का पुष्पों से अभिनन्दन करना चाहिए. ऐसा करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है।

साल 2012 में कार्तिक महीने का शुभारम्भ ३० अक्तूबर से हो रहा है, लेकिन कार्तिक स्नान का आरंभ 29 अक्तूबर से ही हो जाएगा। इस पूरे माह स्नान, दान, दीपदान, तुलसी विवाह, कार्तिक कथा का माहात्म्य आदि सुनने का विधान है। ऎसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है व पापों का शमन होता है।

कार्तिक स्नान की विधि -

श्रद्धालुओं को गंगा तथा यमुना में सुबह - सवेरे स्नान करना चाहिए। जो लोग नदियों में स्नान नहीं कर सकते उन्हें प्रात:काल अपने घर के समीप स्थित जलाशय में स्नान करना चाहिए। व्रती को सर्वप्रथम गंगा, विष्णु, शिव तथा सूर्य का स्मरण कर नदी, तालाब या पोखर के जल में प्रवेश करना चाहिए। उसके बाद आधे शरीर तक (नाभिपर्यन्त) जल में खड़े होकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। इसके बाद व्रती को जल से निकलकर शुद्ध वस्त्र धारणकर विधि-विधानपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। गृहस्थ व्यक्ति को काला तिल तथा आंवले का चूर्ण लगाकर स्नान करने का विधान है। विधवा तथा संन्यासियों को तुलसी के पौधे की जड़ में लगी मिट्टी को लगाकर स्नान करने का विधान है। सप्तमी, अमावस्या, नवमी, द्वितीया, दशमी व त्रयोदशी को तिल एवं आंवले का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

कार्तिक स्नान का वैज्ञानिक महत्व -

कार्तिक मास में नदी स्नान का धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक महत्व भी है। वर्षा ऋतु के बाद जब आसमान साफ होता है और सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी तक आती है ऐसे में प्रकृति का वातावरण शरीर के अनुकूल होता है। प्रात:काल उठकर नदी में स्नान करने से ताजी हवा शरीर में स्फूर्ति का संचार करती है। इस वातावरण से कई शारीरिक बीमारियां स्वत: ही समाप्त हो जाती है।

अत: हम सभी को कार्तिक स्नान जरूर करना चाहिए। इससे हमारे घर में सुख शांति, आरोग्यता और वैभव हमेशा बने रहेंगे साथ आप पुण्य के भागीदार भी बनेंगे।
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कुछ विशेष दिनों में बाल नहीं कटवाते क्यूं

पंडित हनुमान मिश्रा
 
हमारे दैनिक जीवन से जुडी कई ऐसी बातें हैं जिनकों कब और कैसे करना है इसका निर्देश धर्म शास्त्रों में दिया गया है। आज के समय में बहुत से लोग उनकों अंधविश्वास का नाम देते हैं क्योंकि उनका प्रभाव प्रत्यक्षत: देखने को नहीं मिलता लेकिन सच्चाई यही हैं कि चीन काल में ऋषि-मुनियों ने जो परंपराएं बनाई हैं, अप्रत्यक्ष रूप से इन मान्यताओं का हम पर एक गहरा प्रभाव पडता है। शायद इसीलिए बहुत से लोग आज भी इन परम्पराओं को खूब महत्त्व देते हैं। उन्हीं में से एक परम्परा है दाढी और बाल कटवाने की। आज भी घर के बड़े और बुजुर्गों द्वारा बताया जाता है कि शनिवार, मंगलवार और गुरुवार के दिन बाल नहीं काटवाने चाहिए। ऐसा माना जाता है कि सप्ताह के कुछ ऐसे दिन हैं जब ग्रहों से कुछ विशेष प्रकार की किरणें निकलती हैं। ये किरणे हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है।


मानव एक मस्तिष्क प्रधान जीव है। हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण भाग मस्तिष्क ही है। मस्तिष्क सिर में पाया जाता है। सिर का मध्य भाग अति संवेदनशील और बहुत ही कोमल होता है। जिसकी सुरक्षा बालों से होती है यही कारण है कि प्रकृति ने हमारे सिर को बालों से आच्छादित किया है। यदि शनिवार, मंगलवार और गुरुवार को निकलने वाली विशेष प्रकार की किरणों वाली बात सही है तो उस दिन बाल कटवाने से इन किरणों का सीधा प्रभाव हमारे सिर पर पडेगा। फलस्वरूप हमारा मस्तिष्क भी प्रभावित होगा। इसी वजह से इन दिनों में बालों को न कटवाने की बात कही गई है।

शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि मंगलवार को बाल कटवाने से हमारी आयु आठ माह कम हो जाती है। ज्योतिष के अनुसार मंगलवार का दिन मंगल ग्रह का दिन होता है। शरीर में मंगल का निवास हमारे रक्त में रहता है और रक्त से बालों की उत्पत्ति होती है। इस दिन बाल कटवाने से रक्त विकार होने की सम्भावना बढ जाती है।

गुरुवार धन के कारक बृहस्पति का दिन माना गया है, बृहस्पति संतान और ज्ञान का भी कारक ग्रह है। साथ ही कुछ विद्वान गुरुवार को देवी लक्ष्मी का दिन भी मानते हैं अत: इस दिन बाल कटवाने से धन की कमी, संतान कष्ट व ज्ञान क्षीणता होने की संभावनाएं रहती हैं।

शनिवार शनि ग्रह का दिन है। शनि आयु या मृत्यु देने वाला ग्रह है और शनि का संबंध हमारी त्वचा से भी होता है। अत: शनिवार को बाल कटवाने से उपरोक्त बातों पर दुष्प्रभाव पडता है। इसीलिए इसदिन बाल कटवाने से आयु में सात माह की कमी हो जाने की बात कही गई है।

शायद इनसे बचने के लिए ही शनिवार, मंगलवार और गुरुवार के दिन बाल न कटवाने की बात कही जाती है।

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प्रेत बाधा

 
हम इक्कीसवीं सदी में हैं, जहां विज्ञान सम्मत बातें ही सर्वमान्य होती हैं लेकिन आज भी हमारे देश में बहुत सारी ऐसी घटनाएं देखने और सुनने को मिल जाती हैं जो विज्ञान से परे होती हैं। उन्हीं में से एक है "प्रेत बाधा"। "प्रेत बाधा" विज्ञान के नजरिये से एकदम कपोल कल्पित विषय है। आज भी हमारे गांवों में ऐसे लोग मिल जाते हैं जिनके अनुसार किसी व्यक्ति पर भूत-प्रेत का असर हो सकता है। प्रेत बाधा को अधिकांश धर्मों ने भी मान्यता दी है। अथर्ववेद में जादू-टोनों के संबंध में चर्चा की गई है, जिसमें कहा गया है कि अनेक अनुष्ठान भूतों और दुष्ट आत्माओं को भगाने में सहायक हैं। भारत के कई इलाकों में यह धारणा प्रचलित है, विशेषकर पश्चिम बंगाल, उड़ीसा तथा केरल जैसे दक्षिणी राज्यों में इस धारणा को बहुत मान्यता दी जाती है। इस बाधा से मुक्ति पाने का मुख्य साधन मंत्र और यज्ञ होते हैं जिनका प्रयोग वैदिक तथा तांत्रिक दोनों परंपराओं में किया जाता है। बौद्ध धर्म में भी इसकी चर्चा होती है। ईसाई धर्म में भी इसकी चर्चा करते हुए इसे दूर करने के उपायों की बात कही गई है। ईसाई धर्म में "प्रेत बाधा" को दूर करने वाले व्यक्ति को एक्सॉसिस्ट (ओझा) कहते हैं। एक्सॉसिस्ट प्रार्थनाओं तथा तंत्र-मंत्र संकेतों, प्रतीकों, मूर्तियों, ताबीज़ों इत्यादि जैसे धार्मिक सामग्रियों का इस्तेमाल करते हैं। यीशु पर यहूदी विश्वकोश का आलेख कहता है, कि “यीशु खास तौर पर बुरी आत्माओं (भूतों) को दूर हटाने के कार्य में समर्पित थे”। कुछ इसी तरह की मान्यता लगभग अधिकांश धर्म-सम्प्रदायों में है।

भूत-पिशाच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण:


विकीपीडिया के अनुसार पिशाच कल्पित प्राणी है जो जीवित प्राणियों के जीवन-सार खाकर जीवित रहते हैं आमतौर पर उनका खून पीकर। हालांकि विशिष्ट रूप से इनका वर्णन मरे हुए किन्तु अलौकिक रूप से अनुप्राणित जीवों के रूप में किया गया। जीवित प्राणियों के रक्त अथवा मांस का भक्षण करने वाले अलौकिक प्राणियों की कथाएं संसार की लगभग सभी संस्कृतियों में अनेक कई सदियों से पाई गई है। आज हम इन अस्तित्वों को भूत-प्रेत व पिशाचों से संबद्ध कर देते हैं। ईरानी सभ्यता उन सभ्यताओं में से एक है, जिसमें रक्तपान करने वाली दुष्ट आत्माओ की कथाएं मिलती हैं। प्राचीन बेबिलोनिया में भी पौराणिक लिलितु की कथाओं ने अपने पर्याय लिलिथ और हिब्रू पिशाच विद्या से उसकी बेटी लीलू को जन्म दिया। लिलितु को एक दुष्टात्मा समझा जाता था और प्रायः शिशुओं के रक्त पान पर ही जीवित रहने वाले चरित्र के रूप में चित्रित किया जाता था। हालांकि यहूदी प्रतिरूप पिशाचों के बारे में ऐसा कहा जाता था कि वे पुरुष और नारी दोनों के साथ ही नवजात शिशुओं को भी खाते थे। पता नहीं इस बातों में कितना दम है। भूत-प्रेत एक ऐसा विषय है, जिसे कुछ लोग सच मानते हैं तो कुछ केवल कोरी अफवाह। यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात की जाय तो भूत-बाधा ग्रस्तता को डीएसएम-IV (DSM-IV) अथवा आईसीडी-10 (ICD-10) के द्वारा वैध मनोवैज्ञानिक अथवा चिकित्सीय नैदानिक मान्यता प्राप्त नहीं है। वे लोग, जिनका भूत-बाधा ग्रस्तता में विश्वास है, कभी-कभी हिस्टीरिया, मैनिया, साइकॉसिस, टूअरेट्स के (Tourette's) लक्षण, मिरगी, स्किड्जोफीनिया अथवा डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर जैसे मानसिक रोगों के लक्षणों को भूत-बाधा ग्रस्तता से जोड़ते हैं। डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसर्डऑर में, जहां बदले हुए व्यक्तित्व के लोगों से उनकी पहचान के बारे में प्रश्न किया जाता है, 29% लोग अपने-आप को भूत बताते पाए गए हैं। इसके अतिरिक्त मोनोमैनिया का एक रूप होता है जिसे डेमोनोमैनिया अथवा डेमोनोपैथी कहते हैं, जिसमें रोगी को यह विश्वास हो जाता है कि उस पर एक या अधिक भूतों का प्रकोप है। इस तथ्य को, कि भूत-प्रेत का अपसारण ऐसे लोगों पर काम करता है जो भूत-बाधा ग्रस्तता के लक्षणों का अनुभव करते हैं, कुछ लोगों के द्वारा छद्म औषधि के प्रभाव और परामर्श की शक्ति के कारण उत्पन्न प्रभाव माना जाता है। अनुमानित भूत-बाधा से ग्रस्त कुछ लोग वास्तव में आत्मरति से अथवा निम्न आत्मसम्मान से ग्रस्त होते हैं तथा लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए इस प्रकार की हरकतें करते हैं मानो वे "भूत-बाधा से ग्रस्त व्यक्ति" हों।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण:


ज्योतिष में चन्द्रमा को मन कहा गया है और मन के बारे में एक बडी प्रसिद्ध कहावत है कि "मन के हारे हार है, मन के जीते जीत"। प्रेतबाधा के मामले में भी मन यानी कि कुण्डली में स्थित चन्द्रमा की स्थिति को देखा जाना जरूरी होता है। यानी साधारण शब्दों में यह कहा जा सकता है कि यदि चंद्रमा शनि, राहू व केतू के द्वारा पीडित हो रहा हो तो जातक या जातिका को प्रेतबाधा से ग्रस्त होने का भय अधिक रहता है। हांलाकि लग्न और लग्नेश का पाप ग्रहों और विशेषकर शनि, राहू व केतू के द्वारा पीडित होना भी प्रेतबाधा के प्रभावी होने में सहायक होता है। लेकिन मेरे अनुभव में यही आया है कि लग्न और लग्नेश से अधिक चंद्रमा, बुध और बृहस्पति के पीडित होने की स्थिति में यह बाधा व्यक्ति पर अधिक प्रभावी होती है। इसका कारण यह है कि जिनका चन्द्रमा कमजोर हो लेकिन बुध मजबूत हो तो भयभीत होने की स्थिति में बुध यानी कि बुद्धि और तर्क की कसौटियों से वे अपने मन को समझा लेते हैं भूत प्रेत के भय से काफी हद तक स्वयं को बचा लेते हैं। जिनका बृहस्पति मजबूत होता है वो धार्मिक कृत्यों, पूजा-पाठ और अपने ज्ञान के माध्य से भय और भ्रम से स्वयं को बचाने में समर्थ होते हैं और उन्हें प्रेतबाधा का भय नहीं रहता। जिनकी कुण्डली में लग्न, लग्नेश चंद्रमा, बुध और बृहस्पति सभी पीडित होते हैं उनको प्रेत बाधा ग्रस्त होने का सर्वाधिक खतरा रहता है। हालांकि युवा वर्ग में शुक्र और मंगल के पीडित होने की अवस्था में भी प्रेतबाधा की शिकायत देखी गई है। आइए कुछ अन्य ग्रह, दशा और गोचरीय स्थियों की चर्चा कर ली जाय जिसमें प्रेत बाधा जैसी मान्यता को सर्वाधिक बल मिलने का मौका मिलता है।

जब किसी के लग्न, लग्नेश या चन्द्रमा पर राहु या शनि का दुष्प्रभाव होने लगता है अथवा जन्मकालीन शनि या राहू पर शनि का गोचर होता है और जन्मकालीन चंद्र, बुध और बृहस्पति कमजोर होते है तो व्यक्ति को प्रेतबाधा या ऊपरी हवाओं के प्रभाव की शिकायत हो सकती है। ऐसे में वह व्यक्ति साधारण लोगो की तरह से बात नही करता है बल्कि उसकी बातें किसी ज्ञानी पुरुष या स्त्री के जैसी होती हैं। पीडित व्यक्ति के अन्दर गजब का साहस और शक्ति आ जाती है। क्रोधित होने की अवस्था में वह कई लोगों के सम्भालने से नहीं सम्भलता बल्कि आठ दस लोगों पर भी भारी पडने लगता है।

यदि जन्म के समय लग्न या लग्नेश पर केतू का प्रभाव हो अथवा जन्मकालीन चन्द्रमा के साथ केतु का सम्बंध हो और जन्मकालीन राहु, गुरु, शनि या केतु पर गोचर के केतू का प्रभाव पडता है तो जातक या जातिका पर यक्ष नाम प्रेत का साया होने की बात कही जाती है। ऐसे में पीडित व्यक्ति धीमे स्वर मे बात करता है। शरीर दुबला होने लगता है। उसकी चाल मे तेजी आ जाती है। आंखो का रंग तांबे जैसा हो जाता है। वह अक्सर आंखो से ही इशारे करने लगता है। और उसे लाल कपडे अधिक पसंद आते हैं।

यदि जन्म के समय चन्द्रमा के स्थाई घर यानी कि चतुर्थ भाव अथवा चतुर्थेश पर राहू का प्रभाव हो और गोचर का राहू चतुर्थ भाव या चतुर्थेश पर प्रभाव डालता है तब अक्सर वह व्यक्ति राख का तिलक करने लगता है। उस व्यक्ति को बुरे और डरावने सपने आने लगते हैं। यदि शरीर की बात की जाय तो उसके शरीर के जोड अकारण दर्द करने लगते है। पेट दर्द की शिकायत रहने लगती है गले के रोग जैसे इन्फ़ेक्सन आदि का होना हमेशा छाती मे जकडन का होना भी देखा जाता है। इस प्रेतबाधा को क्षेत्रपाल दोष कहा जाता है।

यदि अष्टमेश लग्न में हो अथवा अष्टमेश और चंद्रमा की युति चतुर्थ भाव में हो तो और अष्टमेश की दशा में राहू का गोचर लग्न या जन्मकालीन चन्द्रमा पर हो तो जातक या जातिका की आदत बात बात पर रोने या चिल्लाने की हो जाती है। आंखो मे जलन या रोशनी कम होने की शिकायत रहती है। शरीर मे बेबजह ही दर्द होता है साथ ही शरीर में कंपकपाहट भी रहती है। खाने पीने का होश नही रहता। रखी हुई चीज को भूलने की आदत होती है। अनजाने में ही एक काम को करते करते दूसरे काम को करने भूल होती रहती है। रखी हुई चीजों को भूल कर दूसरों पर आरोप लगाने की आदत पड जाती है। इस दोष को शाकिनी दोष के नाम से जाना जाता है। इस बाधा का प्रभाव पुरुषों को की बजाय स्त्रियों में अधिक होता है।

जन्म कुण्डली में राहू या केतू की युति शनि के साथ लग्न या चतुर्थ में हो और उन पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो जन्मकालीन राहू पर केतू का गोचर होने पर व्यक्ति को नागदोष से पीडित माना जाता है। इस दोष के होने पर व्यक्ति को सीधा लेटने पर नींद नहीं आती लेकिन जैसे ही वह छाती के बल लेटता है उसे नींद आ जाती है। उसकी आदत शरीर को सिकोड कर सोने की होती है लेकिन जरा सी आहट होते ही उसकी नींद टूट जाती है। अन्धेरे मे रहने और सोने की कोशिश करता है। यदि उसके बारे में कोई बात की जाय या कोई भी बडा मुद्दा आते ही वह लम्बी-लम्बी सांसें छोडने लगता है अथवा अपनी जीभ से होंठो को चाटता रहता है। उसे दूध, दूध से बने पदार्थ और अंडे आदि अधिक मात्रा में खाने की आदत हो जाती है। वह तेज आवाजें निकालते हुए भोजन करता है।

यदि जन्म लग्न में मंगल और केतू की युति हो और उस पर शनि का गोचर होता है तो उस समय होने वाली प्रेतबाधा को "कामण दोष" का नाम दिया गया है। यह दोष प्राय: स्त्रियों को ही पीडित करता है। इस बाधा के होने पर मन में स्थिरता नही होती। संगति बुरी हो जाती है। माथा कन्धा और सिर का पिछला भाग हमेशा भारी रहता है। शरीर दुर्बल होता जाता है गाल धंस जाते है स्तन और पुट्ठे सूख जाते है नाक हाथ तथा नेत्रों मे जलन रहती है शरीर का आकर्षण समाप्त होने लगता है,ल्यूकोरिया जैसे रोग उत्पन्न हो जाते है।

यदि किसी स्त्री की कुण्डली में लग्न पर शुक्र और मंगल की युति हो और इन पर राहू का गोचर होता है तो उस स्त्री के भीतर सती वाले गुण आजाते है। वह सतियों के गुणगान करने लगती है। वह अपना सारा समय पूजा पाठ में बिताना चाहती है। उसकी रुचि श्रंगार करने और सजने संवरने में जरूरत से ज्यादा हो जाती है लेकिन वह यौन सम्बंधों से विरक्त हो जाना चाहती है। यदि वह गर्भवती है तो उसका गर्भपात हो जाता है। वह अपने किसी भी जानकार या सम्बंधी से बात नहीं करना चाहती। विरोध करने पर जल कर मर जाने की धमकी देती है।

यदि किसी स्त्री की कुण्डली में लग्गनेश और अष्टमेश एक साथ हो और उन पर राहू का प्रभाव हो तो ऐसी स्थिति में जब राहू का गोचर अष्टमेश पर होता है तो स्त्री शरीर से सबल हो जाती है। वह अत्यधिक कामुक हो जाती है वह कोई भी बहाना बना कर पुरुषों का स्पर्श चाहती है। उसे किसी भी रिश्ते, जाति या मान सम्मान का खयाल नहीं रहता। संस्कार खराब होने पर वह मांस मदिरा का सेवन भी करने लगती है। वह हर पुरुष को देखकर मुस्कुरा देती है। इस तरह की बाधा को चुडैल दोष का नाम दिया गया है।

जन्म कुण्डली में बृहस्पति ग्रह लग्न पर हो, लग्नेश हो अथवा चंद्रमा के साथ हो और उस पर राहू का प्रभाव हो और राहू का गोचर बृहस्पति पर हो तो व्यक्ति के अन्दर देवताओं जैसे गुण आ जाते है। वह सदैव अधिक से अधिक साफ़ सुथरा रहना चाहता है। यदि वह स्त्री है तो वह अपना अधिक से अधिक समय स्नानागार में व्यतीत करती है, यौन संबंधों से उसे अरुचि हो जाती है। वह बात-बात पर  आशीर्वाद या वरदान देने की बात करता है,धूप बत्ती जलाना फ़ूलो को देखकर प्रसन्न होना संस्कृत भाषा का उच्चारण करना आदि बाते उसके स्वभाव में देखने को मिलती है। उसकी दृष्टि एक स्थान पर थम सी जाती है आंखो की पुतलियों मे वह चंचलता नही रहती।

यदि शुक्र और राहू की युति लग्न, चतुर्थ, सप्तम या नवम भाव में हो और नवमेश की दशा में राहू का गोचर जन्मकालीन शुक्र पर हो तो व्यक्ति को धार्मिक बातो या कृत्यों से अरुचि हो जाती है। गुरु, शास्त्र और धर्म आदि की बातें सुनकर उसे गुस्सा आता है। वह इनके अनेक दोषों को गिनाने लगता है। शरीर मे पसीना अधिक आता है। भरपेट खाने के बाद भी भोजन का लालच बना रहता है। इस बाधा को "देवाशत्रु" नाम से जाना जाता है। लेकिन उपरोक्त स्थिति में ही अगर शुक्र राहु के साथ बुध भी शामिल हो जाता है तो व्यक्ति के शरीर पर गन्धर्वशक्ति का आना माना जाता है उस समय वह हमेशा प्रसन्न रहने का प्रयास करता है। हंसी मजाक करना और अधिक बाते करने मे उसकी बहुत रुचि होती है। उसे वनों और उपवनों से गहरा लगाव रहता है। वह इन जगहों पर अकेले बैठकर गुनगुनाते पाया जाता है। यदि उसे उसके खयालों से जगा दिया जाय तो वह मुस्कुरा उठता है।

यदि राहू का सम्बंध नवम भाव या नवमेश से हो तो ऐसी स्थिति में जब राहू का गोचर लग्न, लग्नेश या सूर्य पर होता है तो व्यक्ति का स्वभाव अचानक शान्त हो जाता है। वह अकेले रहना चाहता है। उसे हर काम में असफलता मिलती है। रात को सोते समय पैरो मे जलन होती है या फिर नींद नही आती। उसकी एक और आदत हो जाती है कि वह किसी भी कपडे को बाएं अंग से पहनना शुरू करता है। मीठा भोजन करता है। तिल आदि से बने प्रसाद अधिक पसंद करता है। अपने परिवार के बुजुर्गो के बारे में बहुत बातें करता है। इस लक्षण वाली बाधा को पितृ दोष का नाम दिया गया है।

वृश्चिक लग्न में लग्न पर ही राहू-मंगल की युति हो तो लग्न पर राहू का गोचर होने की स्थिति में जातक पर कुछ राक्षसी प्रवृत्तियां हावी होने लगती हैं। व्यक्ति शराब, मांस या अन्य म्लेच्छता पूर्ण भोजन करने लगता है। जिन्दा जीवों को भूनकर खाने की आदत हो जाती है। मार-काट, चीख-पुकार, एक्सीडेंट की बातें या घटनाएं उसे अच्छी लगने लगती हैं। असामाजिक लोगों से मित्रता करता है और दाढी बढा लेता है।

वृश्चिक लग्न में लग्न पर ही केतू-मंगल की युति हो तो लग्न पर राहू का गोचर होने की स्थिति में व्यक्ति के अन्दर पिशाच बाधा का जन्म होता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति कमजोर होने लगता है। उसे कपडे पहनने में दिक्कत होने लगती है। वह निर्जन स्थान में घूमना चाहता है। कितना भी खिला दो लेकिन खाने से जी नहीं भरता। रात में वह एकान्त कमरे में नग्न अवस्था में सोना चाहता है। उसके शरीर से दुर्गन्ध आने लगती है। जानवरों के साथ अथवा अप्राकृतिक मैथुन करने मे उसकी रुचि बढ जाती है। अत्यधिक कामुकता के कारण अपने जीवन साथी या किसी को भी जान से मार सकता है। वह अपने होठों को काटकर अपना ही रक्त चाटता रहता है।

वृश्चिक लग्न हो और लग्न पर गुरु राहू की युति हो और चंद्रमा भी पीडित हो तो लग्न पर राहू का गोचर होने पर व्यक्ति को ब्रह्मराक्षस दोष से पीडित माना जाता है। ऐसे में व्यक्ति के शरीर में बहुत पीडा रहती है। उसे ऐसा लगने लगता है कि वह मरने वाला है हालांकि वह मरता नहीं है। यदि कोई उसके सामने धर्म-कर्म या तीर्थ यात्रा आदि की बात करता है तो वह उनकी बातों का पुरजोर विरोध करता है और अपने आप को सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है।

मेष लग्न हो और राहू अष्टम में हो अर्थात वृश्चिक राशि में हो तो जब राहू का गोचर बारहवें भाव में होता है और ऐसे में उसकी युति गुरु से भी हो जाय तो इसे प्रेत दोष की श्रेणी मे गिना जाता है। ऐसे में वह किसी एक्सीडेंट में मरने वाले व्यक्ति का नाम लगाकर कहने लगता है कि उसके ऊपर उस मृत व्यक्ति का प्रभाव है। वह अजीब-अजीब सी आवाजें निकालने लगता है। किसी की बात नहीं मानता। बार-बार बाहर भागने की कोशिश में रहता है। कहीं से कूद जाना चाहता है। कोई पकडना चाहे तो उत्तेजित होकर मारपीट करने लगता है। गाली-गलौज या जबरजस्ती करके अपनी बात मनवाना चाहता है। बिना खाए-पिए भी ताकतवर बना रहता है।

उपरोक्त सभी स्थितियों से यही निष्कर्ष निकलता है कि व्यक्ति के लग्न, लग्नेश और चंद्रमा पर जिस पाप ग्रह के गोचर का प्रभाव पडता है उसके अनुसार अथवा सम्बंधित दशा के अनुसार ही व्यक्ति का आचरण हो जाता है। इस आचरण को ही प्रेतबाधा की संज्ञा दे दी जाती है।

व्यक्तिगत अनुभव:


यह कुण्डली एक ऐसे जातक की है जिसकी उम्र अभी महज 14 वर्ष की है। जब वह 12 वर्ष का था तभी से उस पर प्रेतबाधा का असर देखा गया। जून 2011 के शुरुआती दिनों से इस पर प्रेतबाधा का प्रभाव दृष्टिगोचर हुआ। उस समय इस पर शनि में चन्द्रमा की दशा का प्रभाव शुरू हुआ और दिसम्बर 2012 तक रहेगा। जैसा कि आप देख सकते हैं कि इनका चंद्रमा जो कि लग्नेश भी है वह नीच राशि में स्थित है। वह बृहस्पति के नक्षत्र में है और बृहस्पति भी इस कुण्डली में नीच का है। बुध नीच के राशि में स्थित सूर्य के साथ है और वह भी नीच के बृहस्पति के नक्षत्र में है। जैसा कि मैंने शुरू में ही कहा है कि "जिनकी कुण्डली में लग्न, लग्नेश चंद्रमा, बुध और बृहस्पति सभी पीडित होते हैं उनको प्रेत बाधा ग्रस्त होने का सर्वाधिक खतरा रहता है। हालांकि युवा वर्ग में शुक्र और मंगल के पीडित होने की अवस्था में भी प्रेतबाधा की शिकायत देखी गई है।" उपरोक्त सारी स्थितियां इस कुण्डली में देखी जा सकती हैं। और जब सप्तमेश-अष्टमेश शनि की दशा में लग्नेश होकर पंचम में स्थित चंद्रमा की दशा मिली तो इस पर प्रेतबाधा का प्रभाव दिखा। आप देख सकते हैं कि प्रेत बाधा के साथ-साथ यह जिद और किसी स्त्री जाति के मिलन की व्याकुलता से भी ग्रस्त रहा है। क्यों कि महादशा नाथ शनि जो कि सप्तमेश और अष्टमेश है उसकी दृष्टि शुक्र और मंगल पर है तथा अंतरदशा नाथ चंद्रमा प्रेम भाव में स्थित है। चंद्रमा नीच का है अत: यह बालक भावना विहीन रहा, मां का विरोधी रहा। सूर्य नीच का है अत: इसके इस कृत्य से इनके पिताजी परेशान रहे। बुध और बहस्पति के पीडित होने के कारण इसकी बुद्धि और ज्ञान निष्क्रिय रहे और यह अपनी परेशानियों पर यथासम्भव अंकुश लगाने की बजाय और बढाता रहा। आशा है यह दिसम्बर के बाद अपना हित समझने लगेगा।

कुल मिलाकर निष्कर्ष यही निकलता है कि ऐसी बाधाएं होती तो हैं लेकिन बहुत सारे मामलों में पीडित व्यक्ति लोगों की सहानुभूति पाने के लिए, लोगों का ध्यान आकर्षण करने के लिए, अथवा इसी बहाने अपनी मनमानी करने के लिए इन बातों को और बढा चढा कर प्रस्तुत करता है।   
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पंचक क्या होता है?

पंडित हनुमान मिश्रा
 
पंचक एक ऐसा विशेष मुहूर्त दोष है जिसमें बहुत सारे कामों को करने की मनाही की जाती क्या यह वाकई हानिकारक होता है या फिर यह एक भ्रांति है। क्या पंचक के केवल उसके नाकारात्मक प्रभाव ही मिलते है या उसके कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं? हमारा यह लेख समाज में व्याप्त इस धारणा के वास्तविक स्वरूप समझाने का एक प्रयास है।

क्या होता है पंचक?


पांच नक्षत्रों के समूह को पंचक कहते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार राशिचक्र में 360 अंश एवं 27 नक्षत्र होते हैं। इस प्रकार एक नक्षत्र का मान 13 अंश एवं 20 कला या 800 कला का होता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार जब चन्द्रमा 27 नक्षत्रों में से अंतिम पांच नक्षत्रों अर्थात धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, एवं रेवती में होता है तो उस अवधि को पंचक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में जब चन्द्रमा कुंभ और मीन राशि पर रहता है तब उस समय को पंचक कहते हैं। क्योंकि चन्द्रमा 27 दिनों में इन सभी नक्षत्रों का भोग कर लेता है। अत: हर महीने में लगभग 27 दिनों के अन्तराल पर पंचक नक्षत्र आते ही रहते हैं।

क्या पंचक वास्तव में इतने अशुभ होते हैं कि इसमें कोई भी कार्य करना अशुभ होता है?


ऐसा बिल्कुल नहीं है। बहुत सारे विद्वान इन पंचक संज्ञक नक्षत्रों को पूर्णत: अशुभ मानने से इन्कार करते हैं। कुछ विद्वानों ने ही इन नक्षत्रों को अशुभ माना है इसलिए पंचक में कुछ कार्य विशेष नहीं किए जाते हैं। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि इन नक्षत्रों में कोई भी कार्य करना अशुभ होता है। इन नक्षत्रों में भी बहुत सारे कार्य सम्पन्न किए जाते हैं। पंचक के इन पांच नक्षत्रों में से धनिष्ठा एवं शतभिषा नक्षत्र चर संज्ञक नक्षत्र हैं अत: इसमें पर्यटन, मनोरंजन, मार्केटिंग एवं वस्त्रभूषण खरीदना शुभ होता है। पूर्वाभाद्रपद उग्र संज्ञक नक्षत्र है अत: इसमें वाद-विवाद और मुकदमे जैसे कामों को करना अच्छा रहता है। जबकि उत्तरा-भाद्रपद ध्रुव संज्ञक नक्षत्र है इसमें शिलान्यास, योगाभ्यास एवं दीर्घकालीन योजनाओं को प्रारम्भ किया जाता है। वहीं रेवती नक्षत्र मृदु संज्ञक नक्षत्र है अत: इसमें गीत, संगीत, अभिनय, टी.वी. सीरियल का निर्माण एवं फैशन शो आयोजित किये जा सकते हैं। इससे ये बात साफ हो जाती है कि पंचक नक्षत्रों में सभी कार्य निषिद्ध नहीं होते। किसी विद्वान से परमर्श करके पंचक काल में विवाह, उपनयन, मुण्डन आदि संस्कार और गृह-निर्माण व गृहप्रवेश के साथ-साथ व्यावसायिक एवं आर्थिक गतिविधियां भी संपन्न की जा सकती हैं।

क्या पंचक के दौरान पूजा पाठ या धार्मिक क्रिया कलाप नहीं करने चाहिए?


बहुतायत में यह धारणा जगह बना चुकी है कि पंचक के दौरान हवन-पूजन या फिर देव विसर्जन नहीं करना चाहिए। जो कि गलत है शुभ कार्यों, खास तौर पर देव पूजन में पंचक का विचार नहीं किया जाता। अत: पंचक के दौरान पूजा पाठ या धार्मिक क्रिया कलाप किए जा सकते हैं। शास्त्रों में पंचक के दौरान शुभ कार्य के लिए कहीं भी निषेध का वर्णन नहीं है। केवल कुछ विशेष कार्यों को ही पंचक के दौरान न करने की सलाह विद्वानों द्वारा दी जाती है।

पंचक के दौरान कौन-कौन से काम नहीं करने चाहिए?


पंचक के दौरान मुख्य रूप से इन पांच कामों को वर्जित किया गया है-

1-घनिष्ठा नक्षत्र में घास लकड़ी आदि ईंधन इकट्ठा नही करना चाहिए इससे अग्नि का भय रहता है।
2-दक्षिण दिशा में यात्रा नही करनी चाहिए क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई है इन नक्षत्रों में दक्षिण दिशा की यात्रा करना हानिकारक माना गया है।
3-रेवती नक्षत्र में घर की छत डालना धन हानि और क्लेश कराने वाला होता है।
4-पंचक के दौरान चारपाई नही बनवाना चाहिए।
5-पंचक के दौरान किसी शव का अंतिम संस्कार करने की मनाही की गई है क्योकि ऐसा माना जाता है कि पंचक में शव का अन्तिम संस्कार करने से उस कुटुंब या गांव में पांच लोगों की मृत्यु हो सकती है। अत: शांतिकर्म कराने के पश्चात ही अंतिम संस्कार करने की सलाह दी गई है।

यदि किसी काम को पंचक के कारण टालना मुमकिन न हो तो उसके लिए क्या उपाय करना चाहिए?

आज का समय प्राचीन समय से बहुत अधिक भिन्न है वर्तमान में समाज की गति बहुत तेज है इसलिए आधुनिक युग में उपरोक्त कार्यो को पूर्ण रूप से रोक देना कई बार असम्भव हो जाता है| परन्तु शास्त्रकारों ने शोध करके ही उपरोक्त कार्यो को पंचक काल में न करने की सलाह दी है| जिन पांच कामों को पंचक के दौरान न करने की सलाह प्राचीन ग्रन्थों में दी गयी है अगर उपरोक्त वर्जित कार्य पंचक काल में करने की अनिवार्यता उपस्थित हो जाये तो निम्नलिखित उपाय करके उन्हें सम्पन्न किया जा सकता है।

1-लकड़ी का समान खरीदना जरूरी हो तो खरीद ले किन्तु पंचक काल समाप्त होने पर गायत्री माता के नाम पर हवन कराए, इससे पंचक दोष दूर हो जाता है|
2-पंचक काल में अगर दक्षिण दिशा की यात्रा करना अनिवार्य हो तो हनुमान मंदिर में फल चढा कर यात्रा आरम्भ करनी चाहिए।
3-मकान पर छत डलवाना अगर जरूरी हो तो मजदूरों को मिठाई खिलने के पश्चात ही छत डलवाने का कार्य करे|
4-पंचक काल में अगर पलंग या चारपाई लेना जरूरी हो तो उसे खरीद या बनवा तो सकते हैं लेकिन पंचक काल की समाप्ति के पश्चात ही इस पलंग या चारपाई का प्रयोग करना चाहिए|
5-शव दाह एक आवश्यक काम है लेकिन पंचक काल होने पर शव दाह करते समय पाँच अलग पुतले बनाकर उन्हें भी अवश्य जलाएं|

इन उपायों को नियमानुसार करके आप पंचक के दुष्प्रभावों से बच सकते हैं।

वर्ष 2012, 2013 और 2014 में किस महीने में कब से कब तक पंचक रहेगा इसकी जानकारी इस प्रकार है-

PANCHAK in 2012


November 2012

20 November 2012 (11:38 AM) to 25 November 2012 (5:53 AM)

December 2012

17 December 2012 (07:53 PM) to 22 December 2012 (12:00 PM)

PANCHAK in 2013


January 2013

14 January 2013 (06:11 AM) to 18 January 2013 (7:22 PM)

February 2013

10 February 2013 (04:44 PM) to 15 February 2013 (4:08 AM)

March 2013

10 March 2013 (01:31 AM) to 14 March 2013 (1:16 PM)

April 2013

06 April 2013 (07:59 AM) to 10 April 2013 (09:21 PM)

May 2013

03 May 2013 (01:23 PM) to 08 May 2013 (4:08 AM)

May-June 2013

30 May 2013 (07:42 PM) to 04 June 2013 (9:44 AM)

June-July 2013

27 June 2013 (04:04 AM) to 01 July 2013 (3:42 PM)

July 2013

24 July 2013 (02:08 PM) to 29 July 2013 (00:08 AM)

August 2013

21 August 2013 (00:30 AM) to 25 August 2013 (7:41 AM)

September 2013

17 September 2013 (09:32 AM) to 21 September 2013 (5:10 PM)

October 2013

14 October 2013 (04:24 PM) to 19 October 2013 (2:01 AM)

November 2013

10 November 2013 (09:50 PM) to 15 November 2013 (09:13 AM)

December 2013

08 December 2013 (04:02 AM) to 12 December 2013 (2:56 PM)

PANCHAK in 2014


January 2014

04 January 2014 (12:54 PM) to 08 January 2014 (8:46 PM)

January -February 2014

31 January 2014 (11:48 PM) to 05 February 2014 (4:28 AM)

February -March 2014

28 February 2014 (10:53 AM) to 04 March 2014 (2:12 PM)

March 2014

27 March 2014 (07:54 PM) to 1 April 2014 (1:26 AM)
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सूर्य के तुला राशि में जाने और शनि से युति करने का राशिफल

 
17 अक्टूबर 2012  को सूर्य देव तुला राशि में आ गए हैं। तुला को सूर्य की नीच राशि माना जाता है। माना जाता है कि इस राशि में स्थित सूर्य अपने शुभ प्रभावों को पूर्ण रूप से देने में अक्षम हो जाता है। ऊपर से सूर्य के शत्रु ग्रह शनि इस राशि में पहले से ही विराजमान हैं। तुला को शनि की उच्च राशि माना गया है। यहां स्थित शनि और बलवान हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में ग्रहों का राजा सूर्य पीडित होगा। इसका विभिन्न राशियों पर क्या प्रभाव पडेगा आइए जानते हैं।

मेष- सूर्य-शनि की युति के कारण शनि अस्त होगा जो कुछ हद तक मेष राशि वालों के लिए ठीक है लेकिन सूर्य का नीच का हो जाना और इस युति के कारण मेष राशि के लोगों पर सूर्य और शनि सीधा असर डालेंगे। जिससे कई कामों में रुकावटें भी आ सकती हैं। अत: यदि आप किसी महत्त्वपूर्ण काम को अंजाम देने जा रहे हैं तो उसे यथासम्भव कम से कम एक महीने तक टालने का प्रयास करें। घर-परिवार विशेषकर जीवन साथी को अधिक से अधिक वक्त दें।


वृषभ- छठवें भाव में सूर्य का गोचर अच्छा माना गया है अत: यह समय आपके लिए अच्छा रहेगा। सोच हुए कार्य पूर्ण हो जाएंगे। महत्वपूर्ण लोगों से मुलाकात फलदायी होगी। धन का लाभ होगा। फिर भी अपने घरेलू मामलों को गंभीरता से निपटाएं। माता के स्वास्थ्य का खयाल रखें।

मिथुन- यह योग मिथुन राशि के लोगों के लिए मिलाजुला रहेगा। हांलाकि कि आप अपने कामों को काफी हद तक अंजाम देने में सफल रहेंगे लेकिन कु पारिवारिक मामले आपको तनाव दे सकते हैं। यदि आप तनाव देने वाले मूल स्रोत को जानकर अंकुश लगाने की कोशिश करेंगे तो आपको सफलता भी मिलेगी।

कर्क- यद्यपि इन पर शनि के ढय्या का प्रभाव होने के कारण कुछ समस्याएं रहेंगी लेकिन यदि आप सूर्य उपासना या सूर्य मंत्रों का जप करेंगे तो आपको शुभ फलों की प्राप्ति भी होगी। आर्थिक मामलों में राहत मिलगी। न्यायालय संबंधी मामलों में विजय मिलेगी। कठिन परिश्रम करने से काम पूरे होंगे।

सिंह- तीसरे भाव में गोचर का सूर्य आपमें नई ऊर्जा का संचार करेगा। मित्रों और साथियों का सहयोग मिलेगा। कोई बडा काम पूरा हो सकता है। आमदनी के श्रोतों में इजाफा होगा। किसी बड़े कार्य के होने की संभावना है। अचानक लाभ में वृद्धि के योग बन रहे हैं। फिर भी स्वास्थ्य का खयाल रखना होगा।

कन्या- कन्या राशि वालों के लिए सूर्य द्वादशेश होता है अत: सूर्य का नीच का होना इस राशि वालों के लिए अच्छा रहेगा। रुकावटों के बाद ही सही लेकिन आपके काम पूरे होंगे। समस्याओं से निजात मिलेगी। दांपत्य जीवन में भी बेहतरी आएगी। लेकिन बिस्तर पर लेटने के बाद नींद देर से आ सकती है।

तुला- शनि और सूर्य दोनो की युति का प्रथम भाव में होना तुला राशि वालों के लिए अच्छे परिणाम नहीं देगा। यदि आप पहले से ही किन्हीं परेशानियों से घिरे हुए हैं तो परेशानियां और बढ सकती हैं अथवा नई परेशानियां सामने आ सकती हैं। हांलाकि कठिन परिश्रम के बाद आपको थोडी सफलता मिल जाएगी। अपने स्वास्थ्य का खयाल रखें। कोई भी जोखिम भरा काम न करें।

वृश्चिक- सूर्य का तुला राशि में गमन वृश्चिक राशि वालों के कार्यक्षेत्र में बेहतरी लाएगा लेकिन हर एक काम को पूरी मेहनत और निष्ठा से करना जरूरी होगा। ऐसा करने से विशेष लाभ मिलने की संभावनाएं प्रबल होंगी। जीवन के अन्य पहलुओं में कूछ कठिनाई रह सकती है। व्यर्थ के विवादों और कानूनी मामलों में उलझने से आपको बचना चाहिए।

धनु- लाभ भाव में उपस्थित सूर्य धनु राशि वालों को लाभ देगा। लेकिन आपको किसी गलत माध्यम से मिलने वाले फायदे की लालच से बचना चाहिए अन्या परेशानियों की भी आमद हो सकती है। सफलता और मान-सम्मान मिलने की सम्भावनाएं हैं। लेकिन अपने कार्य किसी अन्य के भरोसे नहीं छोड़े। क्रोध के अधिकता रह सकती है। धन संबंधी मामलों में सावधानी जरूरी।

मकर- सूर्य के कारण इन लोगों को सुख-संपत्ति की प्राप्ति होगी। ऐश्वर्य और समाज में मान-सम्मान प्राप्त होगा। परिवार में सुख, शांति रहेगी। किसी निवेश मे द्वारा आपको लाभ प्राप्त होगा। किसी यात्रा के माध्यम से भी काम बनने और लाभ मिलने की सम्भावनाएं हैं। फिर भी स्वास्थ्य का खयाल रखना जरूरी होगा।

कुंभ- कुंभ राशि के लोगों को धार्मिक यात्राओं का अवसर मिलेगा साथ ही धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होने का मौका मिलेगा। कार्यस्थल पर स्थितियां अनुकूल होगी। कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।

मीन- शनि की ढैय्या के प्रभाव के कारण मीन राशि वालों का समय बहुत अधिक ठीक नही है लेकिन सूर्य के शनि के साथ जाने और शनि को अस्त कर देने के कारण इन्हें राहत मिल सकती है। मानसिक शांति मिलेगी। परिवार में प्रसन्नता आएगी। भाइयों से सहयोग मिलेगा साथ आर्थिक स्थिति में भी बेहतरी आ सकती है।
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तीस सपनें जो आपको कर सकते हैं मालामाल

पंडित हनुमान मिश्रा
 
धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने का त्यौहार दीवावली के आगमन के पूर्व ही लोग विभिन्न प्रकार की तैयारियों में जुट जाते हैं।  लक्ष्मी के स्वागत का तरीका कोई भी हो उद्देश्य तो एक ही होता है, मां लक्ष्मी को प्रसन्न करके धन प्राप्ति का आशिर्वाद प्राप्त करना। अपने बहुत सारे भक्तों पर मां लक्ष्मी की कृपा बरसती भी है। प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी अपने भक्तों धन दौलत से मालामाल भी करती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि धनागमन होने से पूर्व धनागमन का संकेत कई माध्यमों हमें मिलने लगता है। उन्हीं माध्यमों में से एक माध्यम है " स्वप्न"। स्वप्न फलों का अपना एक उत्तम इतिहास है। बडी-बडी होनी और अनहोनी होने से पहले बहुतों को संकेत मिला है। अत: हम यहां पर धन आगमन की पूर्व सूचना देने वाले स्वप्नों की चर्चा करने जा रहे हैं।


  1. यदि आप स्वप्न में किसी देवी-देवता के दर्शन करते हैं तो समझिए कि आपको सफलता के साथ-साथ धन लाभ भी होने वाला है।
  2. स्वप्न में नृत्य करती किसी स्त्री या कन्या को देखना भी धन प्राप्ति का संकेत माना गया है।
  3. यदि आप स्वप्न में नीलकण्ठ या सारस पक्षी को देखते हैं तो आपको धन लाभ एवं सम्मान कि प्राप्ति हो सकती है।
  4. यदि आप स्वप्न में कदम्ब का वृक्ष देखते हैं तो यह धन प्राप्ति, स्वास्थ्य लाभ और सम्मान प्राप्ति का संकेत होता है।
  5. यदि आप स्वप्न में आंवले और कमल को देखते हैं तो समझें कि शीघ्र ही आपको धन प्राप्ति होने वाली है।
  6. यदि आप स्वप्न में कानों में बाली या धारण किये देखते हैं तो यह भी धन प्राप्ति का संकेत है।
  7. यदि आप स्वप्न में किसान को खेत में काम करते देखते हैं तो आपको कहीं से धन की प्राप्ति हो सकती है।
  8. यदि आप स्वप्न में जलता हुवा दीपक देखते हैं तो समझिए कि आपको लाभ होने वाला है।
  9. स्वप्न में सोना (स्वर्ण) देखना भी धन प्राप्ति का संकेत माना गया है।
  10. यदि आप स्वप्न में अंगुली में अंगूठी पहनें हुए देखते हैं तो आपको धन लाभ हो सकता है।
  11. यदि आप स्वप्न में कोई महल देखते हैं तो यह धन प्राप्ति का संकेत है।
  12. स्वप्न में गाय का दूध निकालना धन प्राप्ति का संकेत माना गया है।
  13. स्वप्न में गाय का दूध किसी और को निकालते देखना भी आकस्मिक धन प्राप्ति का संकेत है।
  14. यदि आप स्वप्न में सफेद घोडा देखते हैं तो यह को देखना धन प्राप्ति एवं सुखद भविष्य का संकेत है।
  15. यदि आप स्वप्न में हाथी देखते हैं तो आपको कहीं से धन की प्राप्ति हो सकती है।
  16. स्वप्न में गाय का दर्शन होना से अत्यन्त शुभ माना गया है इससे व्यक्ति को यश, वैभव की प्राप्ति होती है।
  17. यदि आप स्वप्न में गाय का दूध अथवा घी देखते हैं तो भी आपको धन प्राप्ति हो सकती है।
  18. यदि आप स्वप्न में फल वाले वृक्ष देखते हैं तो यह भी धन प्राप्ति का संकेत है।
  19. यदि आपने स्वप्न में चूहों को देखा है तो आपके घर धनागमन हो सकता है।
  20. स्वप्न में काले बिच्छू को देखना धन लाभ का संकेत माना गया है।
  21. यदि आप स्वप्न में सर्प को फन उठाये देखा है तो आपको धन प्राप्ति होने वाली है।
  22. यदि आप स्वप्न में सर्प को बिल के साथ देखना आकस्मिक धन प्राप्ति का संकेत है।
  23. यदि आप स्वप्न में मृत पक्षी को देखा है तो भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है यह आकस्मिक धन प्राप्ति का संकेत माना गया है।
  24. स्वप्न में तोते को खाते देखना धन प्राप्ति का प्रबल संकेत है।
  25. यदि आप स्वप्न में नेवला देखते हैं तो आपको हीरे-ज्वाहरात की प्राप्ति भी हो सकती है।
  26. यदि आपने स्वप्न में मधुमक्खी का छत्ता देखा है तो यह धन लाभ का संकेत है।
  27. यदि आप स्वप्न में सफेद चीटियाँ देखते हैं तो आपको धन लाभ हो सकता है।
  28. यदि आप स्वप्न में आम का बगिचा देखते हैं तो यह आकस्मिक धन प्राप्ति का संकेत है।
  29. यदि आप स्वप्न में स्वयं को किसी पेड पर चढते हुए देखते हैं तो भी आपको कहीं से धनार्जन हो सकता है।
  30. स्वप्न में पर्वत पर चढ़ते देखना भी धन प्राप्ति का संकेत माना गया है।

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क्या आपकी कुण्डली में राजनेता बनने के योग हैं

पंडित हनुमान मिश्रा
 
वर्तमान में राजनीति केवल समाज सेवा का एक माध्यम न रह कर एक पेशा भी बन चुकी है। देश और दुनिया का एक बडा वर्ग सत्तापक्ष या राजनीति से जुडना चाहता है। कुण्डली में कौन सी ग्रहीय स्थिति व्यक्ति को राजनीतिज्ञ बनाती है। जो लोग राजनीति से जुडने की इच्छुक हैं क्या उनकी कुण्डली में कौन-कौन से योग होने चाहिए? इन्ही तमाम बातों पर हमने चर्चा की प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पं हनुमान मिश्रा जी से। आशा है उनके जबाबों को पढकर आप लाभान्वित होंगे।

पंडित जी किसी राजनीतिज्ञ की कुण्डली का परीक्षण करने के लिए  कुण्डली के कौन-कौन से भाव विचारणीय होते हैं?


राजनीतिज्ञ बनने या बनाने वाले योगों, ग्रहों या भावों पर चर्चा करने से पहले एक बात स्पष्ट करना चाहूंगा कि राजनीतिज्ञ से हमारा अभिप्राय राजनीति को अच्छी तरह से जानने वालों से है या राजनीति से जुडकर समाज सेवा और देश सेवा करने वालों से है। हो सकता है कि किसी अन्य माध्यम से राजनीतिक लाभ पाने वालों की कुण्डली में ये ग्रहीय स्थितियां उपस्थित न हों। सबसे पहले चर्चा कुण्डली के उन भावों की जो राजनीति में अहम भूमिका निभाते हैं या विचारणीय होते हैं। मुख्यरूप से कुण्डली का छठा, सांतवा, दसवां व ग्यारहवां भाव राजनीति के लिए विचारणीय होते हैं। यद्यपि इनमें से सबसे प्रमुख दशम भाव ही होता है। यदि दशमेश उच्च का हो या दशम भाव में कोई ग्रह उच्च का हो तो सत्ता से जुडना आसान रहता है।

पंडित जी कौन-कौन से ग्रह राजनीतिज्ञ बनाने में अग्रणी माने गए हैं?


राजपक्ष, राजसत्ता या राजनीति से जोडने में सूर्य, चन्द्र, मंगल, राहु और शनि मुख्य माने गए हैं लेकिन कुछ मामलों में बृहस्पति की भूमिका भी सामने आती है। क्योंकि वह गुरू है, सही मंत्रणा देता है और मंत्री बनाने में योगदान देता है। लेकिन आधुनिक राजनीति के लिए राहु को सभी ग्रहों की तुलना में अधिक वरीयता देनी चाहिए। आधुनिक सफल राजनेताओं की कुण्डली में राजनीति के भावों यानी कि छठे, सांतवें, दसवें व ग्यारहवें भाव से राहू का सम्बंध देखने को मिल जाता है। सूर्य को राजा तो चन्द्रमा को राजमाता की उपाधि दी गई है अत: यदि दशम भाव में सूर्य उच्च का हो साथ ही राहू का सम्बंध छठे, सांतवें, दसवें व ग्यारहवें भाव से हो तो राजनीति में सफलता मिलती है। वहीं राजमाता चंद्रमा कि लग्न या राशि में जन्में लोगों का सम्बंध राजनीति से सरलता से जुड जाता है।

शनि को जनता का ग्रह माना गया है। कुण्डली या गोचर में शनि की स्थिति जनता के मूड का संकेत करती है। यदि शनि दशम भाव में हो अथवा दशम भाव से सम्बंध बना रहा हो तो व्यक्ति जनता की सेवा या राजनीति करता है लेकिन यदि इसी स्थिति में मंगल दशम में स्थित हो तो व्यक्ति समाज के लोगों के हितों के लिये काम करने के लिये राजनीति में आता है। ऐसे व्यक्ति का उद्देश्य राजनीति के माध्यम से जनता की भलाई करना होता है। मंगल सेनापति है और शनि जनता का हितैषी, जब दोनों दशम में स्थित होते हैं व्यक्ति के भीतर नेतृ्त्व के गुण आ जाते हैं और जातक या जातिका को राजनेता या राजनेत्री बना देते हैं।

पंडित जी जहां तक मुझे जानकारी है एक राजनेता के लिए अच्छा वक्ता होना भी जरूरी होता जिन ग्रहों की चर्चा अभी तक आपने की उनमें से कोई भी अच्छा वक्ता नहीं बनाता को क्या बुध और बृहस्पति की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया जाय?

नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है कि राजनीति के मामलों में बुध और बृहस्पति की भूमिका को नजरअंदाज किया जाय मैनें अभी कुछ देर पहले बृहस्पति के सम्बंध में चर्चा भी की है। लेकिन जिन अन्य ग्रहों की चर्चा मैंने अभी की हैं वो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। केवल अधिक बोलने से कोई राजनीतिज्ञ नहीं हो जाता अथवा न बोलने वाले को यह मान लिया जाय कि इसे राजनीति नहीं आती तो ये गलत हो जाएगा। कई ऐसे लोग आपको मिल जाएंगे जो बडी-बडी बातें करते हैं। अच्छा भाषण देते हैं लेकिन जरूरी नहीं को वो अच्छे राजनेता हैं। वहीं कई लोग या राजनेता ऐसे मिल जाएंगे जो हमेशा शान्त और गंभीर रहते हैं। बुध से प्रभावित कुछ राजनेता ऐसे भी मिलेंगें जो हमेशा ऐसी बातें करेंगे जो लोंगों को हंसाती हैं। यद्यपि बुध ग्रह हाजिरजबाबी और तर्कशक्ति के लिए बडा महत्त्वपूर्ण होता है। उसका मजबूत होना एक प्लस प्वाइंट होता है। लेकिन राजनेता उपरोक्त ग्रह ही बनाते है। कुल मिलाकर यहीं कहना चाहूंगा कि जनता उन्हीं को अपनी सेवा का मौका देती है जो अच्छी सेवा करते हैं न कि अच्छा भाषण देने वाले को। अत: बुध की बजाय मैं बृहस्पति को अधिक महत्त्व देना चाहूंगा।

जैसा कि मैंने पहले भी बताया कि राजनीति बृहस्पति की भूमिका भी सामने आती है। क्योंकि वह गुरू है, सही मंत्रणा देता है और मंत्री बनाने में योगदान देता है। राजनीति में सही व्यवस्थापन भी बृहस्पति के जिम्मे ही होता है। किसी प्रदेश या देश के विकाश में अर्थव्यवस्था का बहुत बडा योगदान होता है। यह विभाग यानी कि वित्त मंत्रालय भी बृहस्पति के जिम्मे होता है। यानी सहीं मंत्रणा, सही, व्यवस्थापन और सही अर्थव्यवस्था बिना बृहस्पति के योगदान के असम्भव है अत: जिन राजनेताओं को बृहस्पति के द्वारा यह उपहार मिलता है सत्ता में आने पर वो इन विभागों को सम्भालते हैं। वहीं आपके पिछले सवाल को ध्यान में रखते हुए आपको बताना चाहूंगा कि बुध मीडिया प्रभारी या प्रवक्ता बना देता है। यानी कि एक बात आप समझ लें कि बुध और बृहस्पति आपको विभाग दिलाते हैं लेकिन कब? जब आप राजनेता बन जाते हैं। यानी राजनेता बनाने में सूर्य, चन्द्र, मंगल, राहु और शनि ही मुख्य हैं बुध और बृहस्पति राजनेता बनने के बाद विशेषण के रूप में काम करते हैं। बृहस्पति से सम्बंधित एक बात और कि यदि व्यक्ति राजनेता हो और बृहस्पति नवम भाव में शुभ प्रभाव में स्थिति हो तो ऐसा व्यक्ति राजनैतिक गुरू बनता है। बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जो प्रत्यक्षत: राजनीति में नहीं होते लेकिन उनकी बनाई गई नीतियों कर राजनीतिज्ञ अमल करते हैं। सारांश यही कि बृहस्पति राजनेता बनाए या न बनाए राजनीतिज्ञ जरूर बनाता है।

पंडित जी और कौन-कौन सी ग्रहीय स्थितियां या कारकत्त्व हैं जो राजनीति के क्षेत्र में ले जाते हैं।


अन्य ग्रहीय स्थितियों पर चर्चा करने से पहले मैं ज्योतिष की एक खास विधा पर चर्चा करना चाहूंगा। ज्योतिष की एक विधा है जैमिनीपद्धति, उसमें कारकों के आधार पर फलादेश किया जाता है। इन कारकों का निर्धारण इस प्रकार किया जाता है कि जिस ग्रह की डिग्री सबसे अधिक होती है उसे आत्मकारक कहते हैं। इसके बाद जिसकी डिग्री होती है उसे आमात्य कारक कहते हैं, उसके बाद क्रमश: भ्रातृ, मातृ, पितृ, ज्ञाति और दारा कारक का निर्धारण किया जाता है। हमारे आज के मुद्दे के लिए सबसे जरूरी आमात्य कारक यानी दूसरे नम्बर की डिग्री वाला ग्रह है। यदि सूर्य या राहू आमत्य कारक हों और व्यक्ति की रुचि राजनीति में हो तो यह स्थिति राजनीति के क्षेत्र में सफलता देती है। राहु के आमात्य कारक होने की स्थिति में व्यक्ति नीतियों का निर्माण कर उन्हें लागू करने के योग्य बनता है और स्थिति और परिस्थिति के अनुसार बात करने की योग्यता वाला बनता है। वहीं ग्रहों के राजा सूर्य के आमात्य कारक होने की स्थिति में व्यक्ति को राजनीति या समाज में उच्च पद की प्राप्ति होती है।

पंडित जी क्या केवल लग्न कुण्डली मात्र से राजनीतिक करिअर का निर्धारण होता है या अन्य वर्ग कुण्डलियां भी इसमें सहायक होती हैं?


इस मामलें में लग्न कूण्डली के साथ-साथ कुछ वर्ग कुण्डलियां भी महत्त्व की होती हैं। जैसे कि लग्न कुण्डली में यह देखा जाता है कि दशम भाव अथवा दशम भाव के स्वामी ग्रह का सप्तम से सम्बंध होने पर जातक सफल राजनेता बनता है। क्योंकि सांतवा घर दशम से दशम है इसलिये इसे विशेष रुप से देखा जाता है साथ ही यह भाव राजनैतिक पद दिलाने में सहायक माना गया है। छठवा घर नौकरी या सेवा का घर होता है यदि इस घर का संबंध दशम भाव या दशमेश से होता है तो व्यक्ति जनता की सेवा करते हुए बडा नेता बनता है या नेता बन कर जनता की सेवा करता है। अब यही संकेत वर्ग कुण्डलियां भी दे रहीं हों तो समझों कि व्यक्ति राजनेता जरूर बनेगा। इसमें नवांश और दशमांश नामक वर्ग कुण्डलियां मुख्य रूप से विचारणीय होती हैं। यदि जन्म कुण्डली के राजयोगों के सहायक ग्रहों की स्थिति नवाशं कुण्डली में भी अच्छी हो तो परिणाम की पुष्टि हो जाती है। वहीं दशमाशं कुण्डली को सूक्ष्म अध्ययन के लिये देखा जाता है। यदि लग्न, नवांश और दशमाशं तीनों कुण्डलियों में समान या अच्छे योग हों तो व्यक्ति बडी राजनीतिक उंचाइयां छूता है।

पंडित जी क्या कुछ ऐसी खास लग्न या राशियां भी हैं तो राजनेता बनने की संकेतक होती हों? यदि हैं तो उन पर प्रकाश डालें!!


जी बिल्कुल, सबसे पहले में कर्क लग्र की चर्चा करना चाहूंगा। कर्क लग्र में उत्पन्न जातक अधिकांशत: नेतृत्व गुण वाले होते हैं हमारे देश में शासन करके वाले अधिकांश शासक इसी लग्न या राशि के हुए हैं। इसलिए इस पर थोडा विस्तार से चर्चा करना जरूरी है। कर्कलग्र में प्रथम भाव में गुरु हंस नामक पंचमहापुरुष योग देगा। चतुर्थ भाव में शुक्र मालव्य और शनि शश नामक पंचमहापुरुष योग देगा. सप्तम में शनि शश और मंगल रूचक नामक पंचमहापुरुष योग बनाएगा। वहीं दशम में मंगल हो तो भी रूचक नामक पंचमहापुरुष योग बनेगा। यह राजमाता चंद्रमा की राशि है अत: राजघराने में इसका जबरदस्त अधिकार होता है। कर्क लग्न की कुण्डली में दशमेश मंगल दूसरे भाव में हो, शनि लग्न में, राहु छठे भाव में, तथा लग्नेश की दृष्टि के साथ ही सूर्य-बुध पंचम या ग्यारहवें घर में हो तो व्यक्ति बहुत बडा सफल राजनेता बनकर यशस्वी होता है।

भगवान श्रीराम, महात्मा बुद्ध, महाराजा विक्रमादित्य, महाराजा युधिष्ठिर आदि की कर्क लग्न ही मानी गई है। पं. जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, के.आर. नारायणन, श्री इन्द्र कुमार गुजराल, श्रीमती सोनिया गांधी, श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, श्री एच.डी.देवेगौड़ा आदि अनेकों ऐसे उदाहरण हैं जो कर्क लग्न के रहे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की राशि कर्क है।

नेतृ्त्व के लिये सिंह लग्न को भी अच्छा माना गया है। सूर्य, चन्द्र, बुध व गुरु धन भाव में हों व छठे भाव में मंगल, ग्यारहवे घर में शनि, बारहवें घर में राहु व छठे घर में केतु हो तो एसे व्यक्ति को राजनीति विरासत में मिलती है। यह योग व्यक्ति को लम्बे समय तक शासन में रखता है। जिसके दौरान उसे लोकप्रियता व वैभव की प्राप्ति होती है। वहीं वृ्श्चिक लग्न की कुण्डली में लग्नेश बारहवे में गुरु से दृ्ष्ट हो शनि लाभ भाव में हो, राहु -चन्द्र चौथे घर में हो, स्वराशि का शुक्र सप्तम में लग्नेश से दृ्ष्ट हो तथा सूर्य ग्यारहवे घर के स्वामी के साथ युति कर शुभ स्थान में हो और साथ ही गुरु की दशम व दूसरे घर पर दृ्ष्टि हो तो व्यक्ति प्रखर व तेज नेता बनता है। सारांश यह कि कर्क, सिंह और वृश्चिक लग्न या चंद्र राशि होने पर राजनीतिक सफलता मिलने की सम्भावनाएं मजबूत होती हैं।
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सुशील कुमार: क्‍यों रह गए स्‍वर्ण पदक से दूर?

 
सुशील कुमार में देश का नाम रोशन किया है। देश के तमाम समाचार चैनल्स और अखबार अपने-अपने तरीके से उनकी सफलता और असफलता का विश्लेषण कर रहे हैं। आइए ज्योतिष के नजरिए से जानते हैं कि उन्होंने इतना बडा कारनामा कैसे कर दिखाया? साथ की वो एक श्रेष्ठतम उपलब्धि प्राप्त करते-करते कैसे रह गए। सुशील कुमार का जन्म सिंह लग्न और वृश्चिक राशि में हुआ। लग्नेश सूर्य योगकारी ग्रह मंगल के साथ दशम भाव में स्थित है। दोनो ही ग्रहों की दशम भाव में स्थिति उत्तम मानी गई है। यह युति भी उत्तम फल, सरकार से लाभ, बडा सम्मान और बडी प्रसिद्धि देने वाली कही गई है। कुण्डली में अनेक राजयोग उपस्थित हैं जिनमें से गजकेसरी, सफल अमल कीर्ति योग, पर्वत योग, अखण्ड सम्राज्य योग, अमर योग और केन्द्र त्रिकोण योग जैसे राजयोग उल्लेखनीय हैं।

इनका लग्नेश सूर्य जो प्रसिद्धि, मान सम्मान और सरकार और देश का कारक भी है वह नवांश कुण्डली में उच्च का हो गया है जो यहां भी सूर्य ग्रह मंगल के साथ है। यह स्थिति जीवन में विशेष उपलब्धियों को दर्शा रही है।

आइए वर्तमान संदर्भ में चर्चा कर ली जाय। सुशील कुमार की वर्तमान दशाएं हैं बुध में बृहस्पति की। बुध इनकी कुण्डली में द्वितीयेश और लाभेश है जो लाभ और आर्थिक समृद्धि की का संकेत कर रहा है। कुण्डली में यह भाग्य स्थान पर स्थित है जो भाग्य का समर्थन दिला रहा है। बृहस्पति इनकी कुण्डली में पंचमेश और अष्टमेश है। पंचम में बृहस्पति की मूल त्रिकोण राशि है अत: बृहस्पति द्वारा पंचमेश का अधिक फल दिया जाएगा। बृहस्पति कुण्डली में चतुर्थ भाव में स्थित है। कर्म स्थान पर दृष्टि के कारण बृहस्पति मान-सम्मान, पुरस्कार और पदक जैसी उपलब्धियां दिलाने में यह सहायक ग्रह है। यही कारण है कि सुशील कुमार ने 66 किलोग्राम के फ्रीस्टाइल वर्ग में रजत पदक जीत कर लंदन ओलिंपिक में भारत को बडी सफलता दिलाई।

उन्होंने अपने पहले ही मैच में बीजिंग ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता तुर्की के रमजान शाहीन को हराया। दूसरे मैच में उन्होंने उज्बेकिस्तान के इख्तियोर नवरुज़ोव को पटखनी दी। रजत पदक को सुनिश्चित करने के लिए ओलंपिक के उद्घाटन में भारत का झंडा ले कर चलने वाले पहलवान सुशील कुमार ने कज़ाकिस्तान के तानातारोव को धूल चटाई। लेकिन बीजिंग ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता को पटखनी देने वाला स्वर्ण पदक हासिल नहीं कर पाया क्यों? ज्योतिष के माध्यम से इस बात की चर्चा बेहद जरूरी होगी। वर्तमान में सुशील कुमार पर बृहस्पति की अंतरदशा का प्रभाव है। बृहस्पति का सीधा सम्बंध सोने से होता है अत: सुशील कुमार को स्वर्ण पदक जीतकर आना चाहिए था, इसकी उम्मीद भी खूब थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस बात को समझने के लिए ज्योतिष की गहराई में जाना पडेगा। बृहस्पति की वादा खिलाफी के कारण को समझना होगा। आइए समझते हैं ऐसा क्यों हुआ।

सुशील कुमार की जन्म कुण्डली में बृहस्पति चंद्रमा के साथ है। शनि के नक्षत्र में हैं और नवांश में शुक्र की राशि में है। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि सुशील कुमार कभी स्वर्ण पदक नहीं जीत पाएंगे। यहां हमारा उद्देश सिर्फ यह जानना है कि इस बार ऐसा नहीं हुआ क्यों? इसका जवाब उपरोक्त कारणों और गोचर में छिपा है। वर्तमान में बृहस्पति शुक्र की राशि में है शुक्र का सोने की बजाय चांदी पर अधिक अधिकार है। वर्तमान में बृहस्पति चंद्रमा के नक्षत्र में है। चंद्रमा की प्रिय धातु चांदी है। जिस दिन सुशील कुमार पाते-पाते रह गए उस दिन बृहस्पति और चंद्रमा साथ साथ थे। अत: बृहस्पति अपनी प्रिय धातु स्वर्ण देने में समर्थ नहीं हो पाया हांलाकि वह सुशील कुमार को स्वर्ण के कारीब ले गया फिर भी शुक्र और चंद्रमा के यहां शरण लिए हुए बृहस्पति सुशील कुमार को स्वर्ण पदक नहीं दिला पाया और सुशील कुमार को रजत पदक से ही संतुष्ट होना पडा ।
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शनि ग्रह और आपका घर

जब भी जीवन के लिए सबसे जरूरी चीजों की बात होती है तो रोटी कपडा और मकान का नाम ही सामने आता है। पक्षी अपने लिये अपनी बुद्धि के अनुसार घोंसला बनाते है, जानवर अपने निवास के लिये गुफ़ा और मांद का निर्माण करते है। जलचर अपने लिये जल में रहने का इंतजाम करते हैं वहीं हवा मे रहने वाले पेडों और वृक्षों आदि पर और जमीनी जीव अपने अपने अनुसार जमीन पर अपना निवास स्थान बनाते है। उसी तरह मनुष्य भी अपने लिये रहने या व्यापार आदि के लिये घर बनाता है। क्या आपकी कुण्डली में "भवन योग" है यदि हां तो कब बनेगा अपना मकान, आज हम इस आलेख के माध्यम से इसी बात की चर्चा करेंगे।  तो आइए सबसे पहले जानते हैं कि ऐसे कौन से ग्रह हैं जो घर बनाने में सहयोग करते हैं?


घर बनाने में सबसे पहले चतुर्थ भाव और चतुर्थेश का सहयोग मिलना जरूरी होता है। अब कौन सा ग्रह किस काम के लिए घर बनवाता इसकी चर्चा कर ली जाय। जब बृहस्पति ग्रह का योग घर बनाने वाले कारकों से होता है तो व्यक्ति रहने के लिये घर बनता है। शनि का योग जब घर बनाने वाले कारकों से होता है तो कार्य करने के लिये घर बनने का योग होता है जिसे व्यवसायिक स्थान भी कहा जाता है। जब बुध कृपा से घर बनता है तो अधिकांशत: वह घर किराये से देने के लिये बनाया जाता है। मंगल ग्रह कारखाने और डाक्टरी स्थान आदि बनाने के लिये घर बनवाता है। घर बनाने के लिये मुख्य कारक शुक्र का सहयोग मिलना भी बहुत जरूरी होता है। इन सबके बावजूद घर बनाने से पहले कुण्डली में शनि की स्थिति को देखना बहुत ही जरूरी होता है। वास्तव में मकान शनि ग्रह  की इच्छा के विरुद्ध बन ही नहीं सकता। यदि आप शनि की अनुमति के बिना किसी तरह से मकान बनवा भी लेते हैं तो उस मकान में रहने का सुख मिलना मुश्किल होता है। शनि ग्रह ही मकान बनवाता है और गिरवाता भी है जैसा कि आपने भी अनुभव किया होना कि नवम्बर २०११ के आस-पास से, उच्च राशि में गया खूब मकान बने थे। पिछले कुछ दिनों से जब से शनि वक्री हुआ और वक्री होकर कन्या राशि में आ गया, निर्माण कार्य धीमा हो गया। अब जब जुलाई के बाद शनि पुन: तुला राशि में जाएगा पुन: निर्माण कार्यों में क्रांति आएगी और लगभग, अगले दो वर्षों तक खूब मकान बनेंगे। यानि जब भी शनि उच्च में होगा तो खूब मकान बनेगे औ जब नीच का या किसी अन्य ग्रह के योग से नीच हो रहा हो तो मकान गिरते हैं भूचाल आते हैं। आइए शनि से जुडे कुछ नियमों की चर्चा करते हैं जो मकान से सम्बंधित हैं:-

जिस व्यक्ति की कुण्डली के पहले भाव में शनि स्थित हो, यदि वह मकान बनाता है तो उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है। लेकिन यदि उसकी कुण्डकी के सप्तम और दसम भाव रिक्त हों तो आर्थिक स्थिति पर असर नहीं पडता। जिसकी कुण्डली के दूसरे भाव में शनि स्थित हो वह व्यक्ति कभी भी और कैसा भी मकान बना सकता है। तीसरे भाव में स्थित शनि वाले जातक को मकान बनवाने पर आर्थिक संकटों का सामना करना पडता है लेकिन यदि वह घर में कुत्ता पालता है तो यह समस्या नहीं आती। चतुर्थ भाव में स्थित शनि वाला जातक मकान तो बनवा सकता है लेकिन इससे जातक के ननिहाल या ससुराल वालों वालों को क्षति हो सकती है अत: इन्हें अपने नाम से मकान नहीं बनवाना चाहिए। पंचम भाव में स्थित शनि वाले जातक को अपना मकान बनवाने से संतान कष्ट मिलता है यदि मकान ही बनाना ही पडे तो 48 वर्ष की आयु के बाद बनवाएं साथ ही एक उपाय भी करें। उपाय यह है कि एक भैंसा घर लाएं और उसकी पूजा करके उसे खिला पिलाकर दाग दिलवा कर स्वतंत्र छोड दें तत्पश्चात ही मकान बनवाएं। छ्ठे भाव में स्थित शनि वाले जातक को 39 वर्ष की आयु के बाद ही मकान बनाना उचित होगा, अन्यथा लड़की के रिश्तेदारों को अशुभ परिणाम मिलेंगे।

सप्तम भाव में स्थित शनि वाले जातक को बने बनाये मकान अधिक मिलेंगे और शुभ भी रहेंगे। अष्टम भाव में स्थित शनि वाले जातक को अपने नाम से मकान बिल्कुल नहीं बनवाना चाहिए। नवम भाव में स्थित शनि वाले जातक को अपनी कमाई से मकान नहीं बनवाना चाहिए। अन्यथा संतान और पिता को कष्ट मिलता है। दसम भाव में स्थित शनि वाले जातक को 36 से 48 वर्ष की आयु में ही मकान बनवाना चाहिए अन्यथा निर्धनता आती है और जीवन साथी को कष्ट मिलता है। जिनकी कुण्डली के ग्यारहवें भाव में शनि स्थित है उन्हें 36 वर्ष की आयु से पहले ही घर बना लेना चाहिए अथवा 55 वर्ष आयु के बाद ही मकान बनेगा। ऐसे लोगों को दक्षिण द्वार बाले मकान नहीं रहना चाहिए अन्यथा लम्बी बीमारी हो सकती है। बारवें भाव में स्थित शनि वाले जातक के मकान अपने आप बनें अर्थात बिना जातक के प्रयास के किसी अन्य के प्रयास या माध्यम से बनें तभी जातक के लिए शुभ होंगें।

इन तमाम बातों का ध्यान रखते हुए जब आप अपने मकान का निर्माण करते या करवाते हैं तो आपको मकान से सुख जरूर मिलेगा। अन्यथा मकान बनते समय ही तमाम तरह की परेशानियां आती हैं। यदि किसी प्रकार आप मकान बनवा भी लेते हैं तो उसमें रहने का सुख नहीं मिल पाता।
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भारत के 66 वर्ष: ज्‍योतिषीय विश्‍लेषण

पंडित हनुमान मिश्रा

15 अगस्त 2012 बारह को स्वतंत्र भारत की यात्रा के 65 साल पूरे हो जाएंगे। यदि इस वर्ष की कुण्डली बनाई जाय तो विक्रम सम्वत 2069 के शुद्ध भाद्रपद महीने की द्वादशी तिथि दिन मंगलवार तदानुसार 14 अगस्त सन 2012 को दिन में 3 बजकर 55 मिनट पर भारतवर्ष का यह वर्ष पूर्ण हो रहा है। अर्थात धनु लग्न के उदय के समय स्वतंत्र भारत अपने छाछठवें वर्ष में प्रवेश करेगा। इस साल का वर्षेश शनि होगा। जो इस बात का संकेत कर रहा है कि इस वर्ष जमीन-जायदाद के मामलों में तेजी आएगी। पिछडी जातियों के उत्थान के लिए कोई अच्छा कानून बन सकता है। लोहा, कोयला, लकडी पत्थर और अनाज महगे हो सकते हैं। मुंथा के लाभ भाव में स्थित होने के कारण भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। फलस्वरूप लोगों के जीवन स्तर में भी सुधार होगा। किसी अच्छे देश से व्यापारिक और व्यवहारिक सुधरेंगे। अन्य देशों से सहयोग मिलने की उम्मीद है। सिनेमा, मनोरंजन या चिकित्सा उद्योग के सहयोग के लिए सरकार प्रयत्नशील होगी। लोगों को नौकरी के अवसर मिलेंगे। राजनीतिज्ञों के स्तर में सुधार होगा।


लग्नेश बृहस्पति शत्रु भाव में होने के कारण पडोसी राष्ट्रों से खतरा गहरा सकता है, जो आंतरिक और बाह्य खतरा पैदा कर सकते हैं। द्वितीयेश शनि उच्च का होकर लाभ भाव में है अत: यह आर्थिक स्थिति के सुदृढ होने का एक संकेत है। तृतीयेश का मंगल ले साथ होना इस बात का संकेत है कि पडोसी राष्ट्र कोई बडा उपद्रव मचा सकते हैं। यह कोई बडी आतंकवादी घटना का होना भी हो सकता है। लेकिन यातायात और दूर संचार के मामलों के लिए यह युति अच्छे परिणाम देगी और इस क्षेत्र में प्रगति होगी। चतुर्थेश छ्ठे भाव में है इसलिए कहीं अतिवृष्टि तो कहीं अनावृष्टि होगी। आंधी-तूफान, बाढ, वायु वेग का प्रकोप, भूकम्प के साथ-साथ भारत के पूर्वी भू-भाग में मलेरिया, चेचक, निमोनिया, हैजा सामूहिक रूप से हो सकता है। पश्चिम के क्षेत्रों में सूखा होने से बुखार का अधिक प्रसार होगा। आगजनी, अनाज मंहगा, जनता को कष्ट, जनता में व्याकुलता, चोर डाकुओं का भय होने के साथ ही अन्न की उपज कम हो सकती है। पंचमेश के लाभ भाव में होने के कारण शिक्षा के क्षेत्र में सुधार होगा, विशेषकर तकनीकी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। बाल विकास कार्यक्रमों में विकास होगा लेकिन बाल मृत्युदर बढ सकती है।

छठे भाव में चतुर्थेश बृहस्पति केतू के साथ है अत: संतो, सदाचारियो और बुद्धिजीवियों को कष्ट हो सकता है। सप्तमेश के अष्टम भाव में स्थित होने के कारण महिलाओं पर अत्याचार बढ सकते हैं। तलाकों की संख्या में बढोत्तरी हो सकती है। अष्टमेश का सप्तम में होना भी स्त्रियों के लिए शुभ नहीं है। सप्तमेश अष्टम में सूर्य के साथ है और अष्टमेश सप्तम में शुक्र के साथ है। अत: शासन से जुडे लोग और मनोरंजन जगत से जुडे लोग स्त्रियों के शोषण में आगे रह सकते हैं। नवमेश सूर्य अष्टम में कर्क राशि में स्थित है अत: उत्तर भारत के राज्यों में कानून व्यवस्था बिगड सकती है। देश में सम्प्रदायिक दंगे भी या द्वेष के पनपने की सम्भावना है। धर्म को राजनीति से जोडकर साम्प्रदायिक भावनाओं को हवा दी जा सकती है। लेकिन भारत की न्यायपालिका कुछ ऐतिहासिक फैसले ले सकती है जो दूरगामी होंगे। दशमेश अष्टम में है अत: देश ले प्रधान शासक अथवा उत्तर तथा पश्चिम भारत के प्रधान शासकों को विरोधों का सामना करना पड सकता है लेकिन राजस्थान के शासक की स्थिति मजबूत हो सकती है। लाभेश के सप्तम में जाने से स्त्रियों को लाभ देने वाले आयाम बढेंगे। जलीय राशि में राहू द्वादश भाव में है को जलीय प्रदेशो और विशेषकर समुद्री किनारों में किसी विवाद का संकेत कर रहा है

यद्यपि कई ग्रह भारत की स्त्रियों को लाभान्वित करने के संकेत दे रहे है फिर भी मुंथेश के सप्तम में स्थित होने के कारण स्त्रियों को कष्ट और स्त्रियों के शोषण की घटनाओं में बृद्धि के संकेत मिल रहे हैं। ऐसे में सरकार को उनके हित और रक्षा के प्रति चिंतन करना चाहिए साथ ही स्त्रियों को सजग रहने की सलाह दी जाती है।

स्वतंत्र भारत की कुण्डली


भारत की स्वतंत्रता के 66वें वर्ष की कुण्डली



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