कजरी तीज पर करें ये काम, मिलेगा वरदान!आज देशभर में कजरी तीज का पर्व बड़ी धूम के साथ मनाया जा रहा है। आइए इस ब्लॉग के माध्यम से जानते हैं कजरी तीज का महत्व।
कजरी तीज मुख्य रूप से महिलाओं का पर्व है। यह त्यौहार आज देशभर में बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया जा रहा है। हिन्दू पंचांग के अनुसार कजरी तीज भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। कजरी तीज को कजली तीज के भी नाम से जाना जाता है। इस दिन कजरी गीत गाने की विशेष परंपरा है। महिलाएँ ढोलक की ताल पर सामूहिक लोकगीत गाती हैं। भारत के विभिन्न भागों में कजरी तीज को बूढ़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं। यह व्रत रखने से वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस दिन महिलाएँ गौरी शंकर रुद्राक्ष ख़रीदकर उसे धारण करती हैं और पारद शिवलिंग की आराधना करती हैं।
तृतीया तिथि की समयावधि -
प्रारंभ
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समापन
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अगस्त 10, 2017 को 00:45:03 बजे से
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अगस्त 11, 2017 को 00:35:34 बजे तक
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नोटः ऊपर दिया गया समय नई दिल्ली भारत के लिए है। जानें अपने शहर में कजरी तीज की पूजा विधि व व्रत के नियम: कजरी तीज की पूजा विधि
कजरी तीज पर होने वाली सांस्कृतिक परंपराएँ
- महिलाएं इस दिन बागों में झूले झूलती हैं।
- सुहागन महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं जबकि कुंवारी कन्याएँ अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत करती हैं।
- महिलाएँ लोक गीत का गायन और नृत्य करती हैं।
- इस दिन कई प्रकार के व्यंजन पकाए जाते हैं। इसके अलावा मिठाइयों में घेवर, गुजिया, बेसन और नारियल के लड्डू बनाये जाते हैं।
कजरी तीज का महत्व
कजरी तीज का महत्व इस बात से लगाया जा सकता है कि इस दिन महिलाएँ अपने पति के प्रति पूर्ण समर्पित रहती हैं, ताकि उनके वैवाहिक जीवन की डोर कभी कमज़ोर न पड़े। कहा जाता है कि कजरी तीज का महत्व भगवान शिव एवं माँ पार्वती से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार माँ पार्वती भगवान शिव से शादी करना चाहती थीं, लेकिन इसके लिए शिवजी माँ की कठिन परीक्षा लेना चाहते थे। इसके लिए माँ पार्वती जी ने 108 वर्षो तक कठिन तप किया। इस तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और फिर भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष में दोनों का विवाह संपन्न हुआ। तभी से इस दिन को कजरी तीज के रूप में मनाया जाने लगा।
एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को कजरी तीज की हार्दिक शुभकामनाएँ !
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