पुरी में जगन्नाथ रथयात्रा आज

पढ़ें रथयात्रा से जुड़े अद्भुत तथ्य! पुरी में आज से होगी जगन्नाथ रथयात्रा की शुरुआत। जानें इस महोत्सव का महत्व और इतिहास।



जगन्नाथ रथयात्रा मुहूर्त
14 जुलाई 201804:34:14 से द्वितीया आरम्भ
15 जुलाई 201800:56:51 पर द्वितीया समाप्त

विशेष: उपरोक्त मुहूर्त नई दिल्ली के लिए प्रभावी है। जानें अपने शहर में रथयात्रा का मुहूर्त


भारत समेत विश्व भर में प्रसिद्ध पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा आज निकाली जाएगी। हर साल भगवान जगन्नाथ को एक बार उनके गर्भ गृह से निकालकर यात्रा कराई जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान अपने गर्भ गृह से निकलकर प्रजा के सुख-दुःख को स्वयं देखते हैं। हिन्दू धर्म में बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम, इन चार धामों का विशेष महत्व है। पुराणों में जगन्नाथ पुरी को धरती का बैकुंठ कहा गया है। मान्यता है कि पुरी में भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया था। इस अवतार में भगवान विष्णु सबर जनजाति के पूजनीय देवता बन गए। सबर जनजाति के देवता होने से पुरी में भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की तरह है। होली, दीवाली, दशहरा और रक्षा बंधन आदि की तरह पुरी की रथयात्रा भी एक बड़ा पर्व है। पुरी के अतिरिक्त रथयात्रा का आयोजन भारत के विभिन्न शहरों में किया जाता है। वे लोग जो पुरी की रथयात्रा में शामिल नहीं हो पाते हैं। वे अपने नगर में निकलने वाली रथयात्रा में अवश्य सम्मिलित होकर पुण्य के भागी बनते हैं। 


कब निकाली जाती है जगन्नाथ रथयात्रा 


ओडिशा राज्य के पुरी शहर में हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को निकाली जाती है। इस वर्ष रथ यात्रा 14 जुलाई को निकाली जा रही है। रथ यात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्मित किये जाते हैं। रथ यात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ होता है। उसके पीछे में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ होता है। हालांकि इनमें सबसे ऊंचा रथ भगवान जगन्नाथ का होता है।

ऐसी मान्यता है कि जो लोग रथ खींचने में सहयोग करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुरी में 9 दिनों तक चलने वाली यह रथयात्रा गुंडिचा मंदिर पहुँचकर संपन्न होती है। इस स्थान को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है। इसके अतिरिक्त गुंडिचा मंदिर वह स्थान है जहां देव विश्वकर्मा ने तीनों देव प्रतिमाओं का निर्माण किया था। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ एक सप्ताह तक ठहरते हैं। वहीं आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन फिर से वापसी यात्रा शुरू होती है, जो मुख्य मंदिर तक पहुँचती है, यह बहुड़ा यात्रा कहलाती है।

कैसे बनता है भगवान जगन्नाथ का रथ


पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा का दृश्य बेहद अदभुत होता है। लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में रथ यात्रा प्रारंभ होती है। 3 भव्य रथों में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की सवारी निकलती है। इन तीनों रथों में भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे बड़ा होता है। इन तीनों रथों की निर्माण की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है। क्योंकि रथों के निर्माण में लोहे के औजारों का प्रयोग नहीं किया जाता है। 

रथ यात्रा से 5 महीने पहले सरस्वती पूजा से रथ यात्रा के निर्माण का कार्य शुरू हो जाता है। इस यात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ का रथ 65 फुट लंबा और 45 फुट ऊंचा होता है। रथ में कुल 7 फुट व्यास के 16 पहिये लगे होते हैं। इन रथों का निर्माण एक विशेष समिति की निगरानी में होता है। रथ बनाने के लिए नारियल, साल या सखुआ की लकड़ी के 1,072 टुकड़े जंगल से लाये जाते हैं। रथ निर्माण अनुभवी और पुश्तैनी शिल्पकारों की देखरेख में संपन्न होता है। इसके अतिरिक्त अन्य मजदूर भी रथ निर्माण के कार्य में अपना योगदान देते हैं। तीनों रथ पर विभिन्न प्रकार प्रतिमाएँ और चिन्ह उकेरे जाते हैं। 

जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी बातें


  • भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा के रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं। क्योंकि ये लकड़ी हल्की होती हैं। 
  • भगवान जगन्नाथ का रथ लाल रंग का होता है और यह अन्य रथों की तुलना में बड़ा होता है। 
  • भगवान जगन्नाथ का रथ बलभद्र और सुभद्रा के रथ के पीछे होता है।
  • भगवान जगन्नाथ के रथ के कई नाम हैं जैसे- गरुड़ध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष आदि।
  • भगवान जगन्नाथ के रथ के घोड़ों का नाम शंख, बलाहक, श्वेत और हरिदाश्व है। इनका रंग सफेद होता है। रथ के रक्षक पक्षी राज गरुड़ हैं।
  • धार्मिक मान्यता है कि पुरी की रथयात्रा के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। 
  • स्कन्दपुराण के अनुसार आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है।

जगन्नाथ मंदिर का ‘महाप्रसाद’


जगन्नाथ मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है जहां का प्रसाद ‘महाप्रसाद’ कहलाता है, अन्यथा विश्व के सारे हिन्दू मंदिरों का प्रसाद केवल प्रसाद है। महाप्रसाद जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यह सर्वोच्च प्रसाद है। जिसे बिना किसी भेदभाव हर प्राणी मात्र में वितरित किया जाता है। कहते हैं कि जगन्नाथ मंदिर की रसोई विश्व की सबसे बड़ी रसोई कही जाती है।



जगन्नाथ मंदिर से जुड़े हैरान करने वाले तथ्य


  • जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर स्थित झंडा सदैव हवा की विपरीत दिशा में लहराता है।
  • मंदिर परिसर में 752 चूल्हे हैं, जिनमें महाप्रसाद बनता है। यह जलने वाली अग्नि कभी नहीं बुझती है।
  • जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर कोई पक्षी नहीं बैठता है। इसके अतिरिक्त कोई विमान भी मंदिर के ऊपर से नहीं निकलता है।
  • दोपहर में किसी भी समय मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती है।
  • मंदिर में बनने वाला महाप्रसाद कभी भी कम नहीं पड़ता है और मंदिर के पट बंद होते ही महाप्रसाद खत्म हो जाता है।
अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से पुरी की रथ यात्रा भारत समेत पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। ओडिशा राज्य के पुरी में होने वाले यह आयोजन एक बड़ा महोत्सव है, जिसमें शामिल होने के लिए देश और दुनिया के लाखों श्रद्धालु यहां पहुचते हैं। 

एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को जगन्नाथ रथयात्रा की शुभकामनाएँ!

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