बेहद सरलता से ज्योतिष सीखें बस २ मिनट में ज्योतिषी पुनीत पाण्डे के साथ। हमारी यह 2 मिनट ज्योतिष कोर्स की शृंखला आपको कम समय में ज्योतिष के बारे में बहुत कुछ सिखाएगीI आज हमारे ज्योतिषी जिस विषय की चर्चा करने जा रहे हैं वो है ‘सादृश सिद्धान्त’ अर्थात भविष्यवाणी का एक गुप्त सिद्धान्त।
आप इस पाठ की वीडियो नीचे देख सकते हैं-
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कुण्डली देखकर भविष्यवाणी कैसे करें के अन्तर्गत पिछली बार मैनें बताया था कारक सिद्धान्त के बारे में। आज बताता हूँ उसी से जुड़ा हुआ एक और ज़रूरी सिद्धान्त जिसका नाम है सादृश सिद्धान्त। सादृश शब्द का मतलब है एक जैसा। सादृश सिद्धान्त बताता है कि यदि ग्रह और भाव के कारकत्व किसी विषय विशेष के लिए समान हो तो वे कारकत्व विशेष रूप से प्रकट होते हैं। सह 'समान होना' मुख्य तौर पर दो तरह से हो सकता है - पहला भाव का स्वामी होने से और दूसरा भाव में स्थित होने से।
जैसे कि सूर्य पिता का कारक ग्रह है और नवम भाव पिता का कारक भाव है। माना किसी की कुण्डली में सूर्य नवमेश हो जाए तो सूर्य पिता को दुगुने तरीके से प्रदर्शित करेगा। ऐसा सूर्य अगर कमज़ोर हो तो एक नज़र में ही हम कह सकते हैं कि व्यक्ति को पिता का सुख नहीं मिलेगा। माना कि नवमेश सूर्य 6, 8, 12वें घरों में बैठ जाए, पाप प्रभाव में हो (शनि, मंगल, राहु) तो, नीच का हो तो पिता के कारकत्व को दुगुना नुकसान पहुंचाएगा। जिस कुण्डली में सूर्य नवमेश होकर कमजोर हो तो हम विश्वास के साथ कह सकते हैं कि व्यक्ति को जीवन में पिता का सुख नहीं मिलेगा।
पिछला उदाहरण भाव स्वामी के माध्यम से था। लेकिन वह फल तब भी सच होगा जब सूर्य खुद नवमें भाव में बैठा हो और कमज़ोर हो। मान लीजिए अगर सूर्य नवम में स्थित होकर कमज़ोर हो तब तो भी पिता के लिए बहुत ही नकारात्मक होगा। सूर्य की ऐसी स्थिति में भी आप विश्वास के साथ पिता के बारे में फलकथन कह सकते हैं।
तो जब कुण्डली देखें तो यह ज़रूर देखें कि ग्रह जिस भाव का स्वामी है उस भाव और उस ग्रह के क्या क्या कारकत्व समान हैं। इसी तरह जिस भाव में कोई ग्रह बैठा हो तो यह नोट कर लेना चाहिए कि उस भाव और ग्रह के कौन कौन से कारकत्व समान हैं। उन समान कारकत्वों पर फलकथन के दौरान विशेष ध्यान देना चाहिए। सादृश सिद्धान्त को ध्यान में रख कर की गई भविष्यवाणी कभी गलत नहीं होती।
इन महत्वपूर्ण नियमों का अभ्यास करें। अगले एपीसोड तक, नमस्कार।
पुनीत पाण्डे
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जैसे कि सूर्य पिता का कारक ग्रह है और नवम भाव पिता का कारक भाव है। माना किसी की कुण्डली में सूर्य नवमेश हो जाए तो सूर्य पिता को दुगुने तरीके से प्रदर्शित करेगा। ऐसा सूर्य अगर कमज़ोर हो तो एक नज़र में ही हम कह सकते हैं कि व्यक्ति को पिता का सुख नहीं मिलेगा। माना कि नवमेश सूर्य 6, 8, 12वें घरों में बैठ जाए, पाप प्रभाव में हो (शनि, मंगल, राहु) तो, नीच का हो तो पिता के कारकत्व को दुगुना नुकसान पहुंचाएगा। जिस कुण्डली में सूर्य नवमेश होकर कमजोर हो तो हम विश्वास के साथ कह सकते हैं कि व्यक्ति को जीवन में पिता का सुख नहीं मिलेगा।
पिछला उदाहरण भाव स्वामी के माध्यम से था। लेकिन वह फल तब भी सच होगा जब सूर्य खुद नवमें भाव में बैठा हो और कमज़ोर हो। मान लीजिए अगर सूर्य नवम में स्थित होकर कमज़ोर हो तब तो भी पिता के लिए बहुत ही नकारात्मक होगा। सूर्य की ऐसी स्थिति में भी आप विश्वास के साथ पिता के बारे में फलकथन कह सकते हैं।
तो जब कुण्डली देखें तो यह ज़रूर देखें कि ग्रह जिस भाव का स्वामी है उस भाव और उस ग्रह के क्या क्या कारकत्व समान हैं। इसी तरह जिस भाव में कोई ग्रह बैठा हो तो यह नोट कर लेना चाहिए कि उस भाव और ग्रह के कौन कौन से कारकत्व समान हैं। उन समान कारकत्वों पर फलकथन के दौरान विशेष ध्यान देना चाहिए। सादृश सिद्धान्त को ध्यान में रख कर की गई भविष्यवाणी कभी गलत नहीं होती।
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