सावन सोमवार - क्या करें, कैसे करें: श्रावण में शिव पूजा से करें सभी अरिष्टों का निवारण

श्रद्धालुओं ने सावन का पहला सोमवार जुलाई १४, २०१४ को मनाया। ‘पं. दीपक दूबे’ बहुत सरल उपाय तथा पूजा के तरीके बता रहे हैं जिनके द्वारा कम समय में ज़्यादा लाभ उठाया जा सकता है। इस सावन भगवान शिव की पूजा करें और उनकी कृपा का लाभ उठाएं।





शिव की पवित्र नगरी वाराणसी के रहने वाले पण्डित दीपक दूबे अनन्य शिवभक्त, प्रखर ज्योतिषी और अनुष्ठानों के मर्मज्ञ हैं। साथ ही वे कर्मकाण्ड, मन्त्र-तन्त्र और वास्तु के गहन अध्येता भी हैं। उन्हें ज्योतिष और कर्मकाण्ड का ज्ञान अपने पिता से हासिल हुआ, जो स्वयं प्रकाण्ड ज्योतिषी और अनन्य काली-उपासक हैं। वे विभिन्न टीवी और एफ़एम चर्चाओं में ज्योतिषी के तौर पर प्रायः आमंत्रित किए जाते रहे हैं। मनोविज्ञान में स्नातक, पण्डित दीपक दूबे, कई पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी कर चुके हैं।

श्रावण मास और भगवान शिव


सनातन धर्म में सभी प्रमुख देवी - देवताओं के लिए कोई ना कोई दिन, सप्ताह, पक्ष या माह निर्धारित है। श्रावण माह के पूरे ३० दिन देवों के देव भगवान शिव को समर्पित हैं। महाभारत कथा के अनुसार इसी माह में भगवान शिव ने समुद्र मंथन के दौरान निकले हलाहल को पूरे ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए स्वयं पी लिया था।

क्या है महत्व


कहा जाता है कि हलाहल पीने के कारण भगवान शिव अत्यंत तप्त हो गए, ज़हर के प्रभाव से वे बहुत व्याकुल हो गए, शीतलता प्राप्त करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने बहुत प्रयत्न किये परन्तु उन्हें आराम नहीं मिल सका। अंततः उन्होंने मस्तक पर अमृत स्वरूप अत्यंत ही शीतल चन्द्रमा को धारण किया जिससे उन्हें शीतलता प्राप्त हुई।

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चूँकि भगवान शिव ने समस्त चर - अचर प्राणियों की रक्षा के लिए अपने को तप्त कर दिया था, अतः उनके प्रति आस्था, भक्ति और कृतज्ञता प्रकट करने हेतु हम आज भी भगवान शिव का शीतलता प्रदान करने वाली चीजों से अभिषेक करते हैं।

दूसरी तरह से यदि देखा जाए तो भगवान शिव का संहारक रूप रूद्र है, रूद्र अर्थात अग्नि। मानव मात्र विभिन्न प्रकार की अग्नि से तप्त है जैसे रोग, शत्रु, आर्थिक कष्ट, मानसिक कष्ट ये सभी प्रकार के कष्ट मनुष्यों को तप्त करते रहें हैं। सभी प्रकार की कष्ट रूपी अग्नि किसी ना किसी प्रकार से रूद्र का ही स्वरूप है, क्योंकि शिव पुराण के अनुसार शिव ही ब्रह्म रूप में सृष्टि के रचयिता, विष्णु रूप में पालनकर्ता तथा रूद्र रूप में संहार कर्ता हैं। इसी कष्ट रूपी अग्नि अर्थात रूद्र को शांत करने के लिए हम उन्हें अभिषेक अर्थात स्नान कराते हैं।

क्या है लाभ


भावहिं मेटि सकहि त्रिपुरारी ! अर्थात होनी को कोई टाल सकने का सामर्थ्य रखता है तो भगवान शिव ही हैं। किसी भी ग्रह का दुष्प्रभाव क्यों ना हो उसके प्रभाव को कम या समाप्त करने का अंतिम उपाय भगवान शिव की आराधना ही है। प्राणी मात्र के जितने भी सांसारिक कष्ट हैं उनका कारण किसी ना किसी ग्रह का दुष्प्रभाव होना ही है, जो सबसे अधिक पाप ग्रह अर्थात कष्ट देने वाले ग्रह हैं वे हैं - शनि, राहु और केतु। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में अधिकांशतः और सबसे दुष्कर जितने भी योग हैं वे इन्ही के कारण बनते हैं, शनि साढ़े साती, ढैया, काल सर्प, केपद्रुम योग, विष्कुम्भ योग, बालारिष्ट योग, मारकेश योग जैसे अत्यंत ही कष्टकारी योगों का निदान केवल और केवल भगवान शिव की आराधना या अनुष्ठान ही है। आप चाहे सांसारिक कष्टों से छुटकारा पाना चाहते हों या मोक्ष, शिव अंतिम गंतव्य हैं।

कैसे करें पूजा


भगवान शिव को भोले बाबा भी कहा जाता है, भोले अर्थात अत्यंत सरल। इनकी पूजा के लिए किसी भी बहुमूल्य वस्तु या जटिल विधि - विधान की आवश्यकता नहीं होती, भगवान शिव की पूजा तो अत्यंत ही सुलभ और बिना खर्चे वाली वस्तुओं से संपन्न हो जाती है। आदि गुरु शंकराचार्य ने तो मानस पूजा की विधि बतायी है, मानस पूजा अर्थात मन से ही सबकुछ अर्पित करने की विधि। इस विधि में हम भौतिक रूप से जितनी वस्तुओं का प्रयोग पूजा में करते हैं जैसे - फूल, चन्दन, धूप, दीप नैवैद्य इत्यादि इन सभी वस्तुओं को मानसिक रूप से अर्पित करते हैं।

भगवान शिव की प्रिय वस्तुएँ



भगवान शिव को गंगा जल सबसे प्रिय है, क्योंकि उन्होंने अपनी अत्यधिक तप्तता के समय उन्हें और चन्द्रमा को धारण किया था, अतः भगवान शिव का गंगा जल से नित्य प्रातः अभिषेक सर्वोत्तम है।

भगवान शिव को बिल्व पत्र भी अत्यंत प्रिय है, बिल्व पत्र के बारे में कहा गया है -
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रम च त्रियायुधम्, त्रिजन्म पाप संहारम एकबिल्वम शिवार्पणम।

ये दो वस्तुएं भोले नाथ को अत्यंत प्रिय हैं, सामान्य मनुष्य सिर्फ इन्ही दो वस्तुओं से भी नियमित भगवान शिव की आराधना कर सकता हैं, गंगा जल से अभिषेक करते समय सिर्फ उनके पंचाक्षर मन्त्र "ॐ नमः शिवाय" का उच्चारण ही प्रयाप्त है। इसके अलावा यदि आप चाहें तो गंगा जल में गाय का दूध, थोड़ी शहद, थोड़ा गाय का ही शुद्ध घी और श्वेत चन्दन मिलाकर उपरोक्त पंचाक्षर मन्त्र से भगवान शिव का अभिषेक करें और उसके उपरांत बिल्व पत्र अर्पित करें। यह ध्यान रखे की बिल्व पत्र नए हों, कोमल हों, छिद्र रहित हों और पत्ते टूटे हुए ना हों।

दिन: वैसे तो भगवान शिव की पूजा के लिए श्रावण मास में कोई भी दिन देखने की आवश्यकता नहीं परन्तु उनका सबसे प्रिय ग्रह चन्द्रमा है, अतः चन्द्रमा से सम्बंधित दिन सोमवार अत्यंत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।

समय: भगवान शिव के लिए प्रातः काल और प्रदोष काल अर्थात गोधूलि बेला सर्वोत्तम मानी जाती है।

मुहूर्त: भगवान शिव की सामान्य पूजा के लिए किसी भी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं है परन्तु यदि किसी विशेष प्रयोजन से कोई अनुष्ठान जैसे - रुद्राभिषेक, रूद्र पाठ, महामृत्युंजय जैसे अनुष्ठान करना चाहते हैं तो अन्य मास में तो मुहूर्त देखना होता है, परन्तु श्रावण माह में भगवान शिव की पूजा या अनुष्ठान दोनों के लिए ही मुहूर्त देखने की कोई आवश्यकता नहीं होती है।

मन्त्र/स्तुति: भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनके नाम पर आधारित उनका पंचाक्षर मंत्र "ॐ नमः शिवाय।" ही पर्याप्त है परन्तु यदि आप रूद्र गायत्री का जप यथा शक्ति कर सकें तो अत्यंत उपयोगी होगा-

"ॐ तद्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।"

इसके साथ ही उनकी स्तुति में "ॐ नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय …… " या तुलसी दास रचित रुद्राष्टकम "नमामि शमीशान निर्वाण रूपं, विभु व्यापकं ब्रह्मवेद स्वरूपं.......... " का पाठ भी अत्यंत उपयोगी है।

विशेष: शिव भक्तों तथा किसी भी कष्ट से पीड़ित व्यक्तियों के लिए भगवान शिव की आराधना अत्यंत ही श्रेयस्कर है। मैंने एक सामान्य व्यक्ति के लिए जिसके पास घर - गृहस्थी तथा कार्य - व्यवसाय के साथ - साथ कैसे कम समय में आसान तरीके से भगवान शिव की आराधना और उसका लाभ उठाते हुए इस दुष्कर जीवन पथ पर आगे बढ़ने का उपाय सुझाने का प्रयत्न किया। भगवान शिव के लिए आपकी सच्ची श्रद्धा ही पर्याप्त है। ऊपर लिखी पूजा आप स्वयं कर सकते हैं इसके लिए किसी विद्वान की ज़रुरत नहीं, परन्तु विशेष अनुष्ठान जैसे - रुद्राभिषेक, रूद्र पाठ, महामृत्युंजय इत्यादि किसी विद्वान के द्वारा ही कराएं।

किसी और शंका या समाधान के लिए हमें लिखें।
ॐ नमः शिवाय।

पं. दीपक दूबे

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4 comments:

  1. शिवरात्री पर जल देने का शुभ मुहूर्त कब से कब तक है ।कृपया जानकारी देने का कष्ट करे आपकी अतिकृप्या होगी । धन्यबाद ।

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    1. समय: भगवान शिव के लिए प्रातः काल और प्रदोष काल अर्थात गोधूलि बेला सर्वोत्तम मानी जाती है।

      मुहूर्त: भगवान शिव की सामान्य पूजा के लिए किसी भी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं है परन्तु यदि किसी विशेष प्रयोजन से कोई अनुष्ठान जैसे - रुद्राभिषेक, रूद्र पाठ, महामृत्युंजय जैसे अनुष्ठान करना चाहते हैं तो अन्य मास में तो मुहूर्त देखना होता है, परन्तु श्रावण माह में भगवान शिव की पूजा या अनुष्ठान दोनों के लिए ही मुहूर्त देखने की कोई आवश्यकता नहीं होती है।

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