आश्विन शुल्क पक्ष शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि को ‘देवी महागौरी’ का पूजन होता है। इस दिन जो भी भक्त पूरे विधि-विधान के साथ देवी महागौरी की पूजा अर्चना करते है देवी उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। देवी महागौरी राहु ग्रह का प्रतीक भी मानी जाती हैं।राहु ग्रह हमारे जीवन में अहंकार, क्रोध, वासना का कारक है।राहु हमें रचनात्मक बनाता है और अद्भुत वैभवशाली विचारधारा भी प्रदान करता है।
अष्टमी तिथि को माँ भगवती के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है। माँ महागौरी के मस्तक पर चंद्र का मुकुट है तथा मणिकान्त मणि समान कांति वाली चार भुजाएं हैं। जिनमें शंख, चक्र, धनुषबाण व वर मुद्रा है। कानों में रत्नजड़ित कुंडल झिलमिल करते हैं। इनका वाहन बैल है तथा इनको भोग में हलवा प्रिय है। इनकी पूजा, आराधना करने से सोम चक्र जाग्रत होता है। जिससे जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति मिलती है। मनुष्य के समस्त दुःख-संताप दूर हो जाते हैं। आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है। देवी के इस आठवें स्वरूप महागौरी को ऐश्वर्य प्रदायनि और अन्नपूर्णा भी कहा गया है। वैसे तो नवरात्रि की नवमी और अष्टमी दोनों दिन कन्या पूजन किया जाता है, लेकिन अष्टमी के दिन कन्या पूजन का शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है। आइए जानते हैं कि कौन सी उम्र की कन्या का पूजन किस मंत्र से करें।
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कन्या पूजन और उसके फल:
कन्या पूजन में हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कन्याओं की उम्र 2 से 10 वर्ष के बीच ही हो।
- सबसे पहले इस बात का ध्यान रखें कि सभी 9 कन्याओं की आयु 2 से 10 वर्ष के बीच हो।
- सभी कन्याओं का पूजन उनकी आयु के अनुसार नीचे दिए गए मंत्र से करें:
2 वर्ष की कन्या- कौमाटर्यै नमः
3वर्ष की कन्या- त्रिमूर्तये नमः
4वर्ष की कन्या- कल्याण्यै नमः
5 वर्ष की कन्या- रोहिण्य नमः
6 वर्ष की कन्या- कालिकायै नमः
7 वर्ष की कन्या- चण्डिकार्य नमः
8 वर्ष की कन्या- शम्भव्यै नमः
9 वर्ष की कन्या- दुर्गायै नमः
10 वर्ष की कन्या- सुभद्रायै नमः
- कन्या को वस्त्र दें और उनके पैर धोएँ।
- उसके बाद चंदन कुमकुम का टीका लगाकर उपरोक्त मंत्र से नमस्कार करें।
- फिर यथाशक्ति भोजन कराकर और दान देकर विदा करें। भोजन में मीठा अवश्य शामिल करें।
शरद नवरात्रि की पूजा विधि जानने के लिए यहाँ क्लिक करें: शारदीय नवरात्रि 2016 - पूजा विधि
नोट: नौ कन्या नहीं मिलने की स्थिति में दो कन्याओं का भी पूजन करने का विधान है।
शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि देवी पार्वती ने शिव को वर के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था जिससे उनका शरीर काला हो गया था। उसके बाद तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने दर्शन दिया और गंगाजल से देवी को नहलाया। तब से देवी का रंग गोरा हो गया और उनका नाम महागौरी पड़ा। देवी का वाहन श्वेत बैल है और उनका आभूषण भी श्वेत रंग का ही है। माँ महागौरी की पूजा में आसमानी नीले रंग की वस्तुओं को शामिल करें। जैसे- अपराजिता का नीला फूल, नीले रंग का अक्षत, नीली चुड़ियाँ, इत्यादि।
नीचे दिए गए पदार्थों का उपयोग आश्विन शुक्ल पक्ष नवरात्र की अष्टमी तिथि के अवसर पर देवी महागौरी को प्रसन्न करने के लिए एवं राहु ग्रह को मज़बूत करके अच्छे परिणाम ग्रहण करने के लिए किया जाता है।
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एस्ट्रोसेज की ओर से आपको शरद नवरात्रि की ढेर सारी शुभकामनाएँ, माँ महागौरी आपकी सभी मुरादें पूरी करें।
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