आज से शुभ लग्न का शुभारंभ! 4 माह बाद आज ख़त्म होगा भगवान विष्णु का शयन काल। जानें देव उठनी एकादशी पर्व का महत्व और पूजा विधि।
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देव उठनी एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में इस तिथि का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली इस पावन तिथि पर 4 माह की चिर निद्रा (देव शयनी) के बाद भगवान विष्णु शयन मुद्रा से जागते हैं। इस कारण यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है।
देव उठनी एकादशी
एकादशी तिथि प्रारंभ | सायं 19:05 बजे | 30 अक्टूबर 2017 |
एकादशी तिथि समाप्त | सायं 18:57 बजे | 31 अक्टूबर 2017 |
नोट: ऊपर दिया गया समय नई दिल्ली (भारत) के लिए मान्य है। अपने शहर के अनुसार देव उठनी एकादशी 2017 तिथि का समय यहाँ जानें : देव उठनी एकादशी तिथि 2017
एकादशी पारण मुहूर्त
एकादशी पारण मुहूर्त | प्रातः 06:36 से 08:48 बजे तक | 01 नवंबर 2017 |
पारण विधि (व्रत खोलना) एकादशी के अगले दिन अर्थात द्वादशी को संपन्न की जाती है।
पूजा विधि
- प्रातः जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें।
- इस पावन अवसर पर पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु से तुलसी (पौधा) का विवाह संपन्न कराएं। इस धार्मिक प्रथा को तुलसी विवाह के नाम से जाना जाता है।
- एकादशी से पूर्व यानी दसवीं तिथि को व्रत रखें और इस व्रत को द्वादशी के दिन पारण मुहूर्त में खोलें।
देव उठनी एकादशी का महत्व
देव उठनी एकादशी स्वर्ग लोक को प्राप्त करने का मार्ग है। यदि इसे सच्ची श्रद्धा एवं विधि-विधान से मनाया जाए तो भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनके पूर्वजों की आत्मा को भी शांति मिलती है।
भारत के विभिन्न राज्यों में इसे अलग-अलग प्रकार से मनाया जाता है:
- महाराष्ट्र में प्रबोधिनी एकादशी के दिन लोग भगवान विठोबा के रूप में विष्णु जी की पूजा करते हैं।
- राजस्थान में इस दिन पुष्कर मेला का आयोजन किया जाता है और यह एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है।
- गुजरात में इस अवसर पर श्रद्धालु गिरनार पहाड़ी की दो दिवसीय लंबी परिक्रमा करते हैं। यहाँ लोगों का विश्वास है कि गिरनार की पहाड़ियों में भगवान विष्णु जी का वास होता है।
एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को देव उठनी एकादशी 2017 की शुभ कामनाएं !
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