नरक चतुर्दशी पर जानें तिल के तेल से मालिश का महत्व,और अभ्यंग स्नान का शुभ मुहूर्त व पूजा विधि।
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नरक चतुर्दशी का पर्व हर साल कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यह त्यौहार दीपावली के एक दिन पूर्व मनाया जाता है इसलिए इसे छोटी दीवाली भी कहा जाता है। नरक चतुर्दशी को नरक चौदस, रूप चौदस और रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन लोग अभ्यंग स्नान करने के बाद यमराज की पूजा का विधान है। ऐसा करने से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। इस दिन संध्या के समय दीप जलाए जाते हैं।
अभ्यंग स्नान का शुभ मुहूर्त (केवल नई दिल्ली के लिए प्रभावी)
दिनांक
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18 अक्टूबर 2017
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समय
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04:47:00 से 06:23:24 बजे तक
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अवधि
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1 घंटे 36 मिनट
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जानें अपने शहर के अनुसार - अभ्यंग स्नान का शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि
अभ्यंग स्नान
नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान का बड़ा महत्व होता है। ऐसा कहा जाता है कि यदि इस पावन दिन पर शुभ मुहूर्त के समय अभ्यंग स्नान किया जाए तो व्यक्ति को नर्क के भय से मुक्ति मिलती है। अभ्यंग स्नान से पहले शरीर पर तिल के तेल की मालिश की जाती है, इसके बाद अपामार्ग (चिरचिरा) की पत्तियाँ स्नान हेतु पानी में डाली जाती है और उसके बाद ही इससे स्नान किया जाता है।
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नरक चतुर्दशी का धार्मिक महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार नरकासुर नामक राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवताओं और साधु संतों को आतंकित कर 16 हज़ार स्त्रियों को बंधक बना लिया था। नरकासुर के आतंक से परेशान होकर समस्त देवतागण एवं साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में पहुँचे। तब श्री कृष्ण जी ने सभी को नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया। उधर, नरकासुर को स्त्री के हाथों से मरने का श्राप था इसलिए श्री कृष्ण जी ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी क़ैद से 16 हज़ार स्त्रियों को आज़ाद कराया। बाद में ये सभी स्त्रियाँ भगवान श्री कृष्ण की पट रानियां कहलायीं। नरकासुर के वध के बाद लोगों ने कार्तिक मास की अमावस्या को अपने घरों में दीये जलाकर ख़ुशियाँ मनायीं और तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
एस्ट्रोसेज की ओर से आप सभी पाठकों को नरक चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाएँ !
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