आज अक्टूबर 2 को दो महानतम व्यक्तियों, महात्मा गांधी एवं लाल बहादुर शास्त्री का जन्मदिन पूरे भारतवर्ष में मनाया जाएगा। आइये पं. हनुमान मिश्रा के साथ जानते हैं कि ऐसी कौन सी बातें हैं जो इन दोनों को इतना महान बनाती हैं।
महात्मा गांधी: भारत के राष्ट्रपिता
2 अक्टूबर को महात्मा गांधी का जन्म दिवस हम भारतीय-जन बड़े भाव से मनाते हैं। वो महात्मा गांधी जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। इनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम करमचंद गांधी था। मोहनदास की माता का नाम पुतलीबाई था। पुतलीबाई करमचंद गांधी जी की चौथी पत्नी थीं और मोहनदास अपनी माँ की अंतिम संतान थे।
वैसे तो एस्ट्रोसेज पर इनके बारे में पहले भी बहुत कुछ लिखा जा चुका है अत: इस बार इनके जन्मदिन पर हम इनकी वकालत के बारे में चर्चा करना चाहेंगे। वकील बनने के लिए मुख्यतः संबंधित ग्रह गुरु, बुध, शनि, शुक्र और मंगल हैं। गुरु, शुक्र अच्छी विवेक शक्ति देते हैं। बुध वाणी का कारक है, वहीं न्याय तथा किसी मामले की तह तक जाने का काम शनि करवा देता है। मंगल पराक्रम और आत्मविश्वास का कारक माना गया है। यदि किसी की कुण्डली में यह सारे ग्रह अनुकूल और मज़बूत हों तो जातक बहुत अच्छा वकील बनता है। इसके विपरीत होने पर कुछ न कुछ कमियाँ आ जाती हैं। इसके अलावा द्वितीय, छठा, सप्तम तथा नवम भाव एवम् कर्म भाव भी विचारणीय होते हैं। आइए देखते हैं कि गांधी जी की कुण्डली में संबंधित ग्रहों का क्या हाल है।
महात्मा गांधी की कुंडली में कानूनी शिक्षा से संबंधित लगभग सभी ग्रह सुव्यवस्थित हैं। बुध, शुक्र, मंगल और गुरु केन्द्र में हैं। शनि वाणी स्थान में है, तुला लग्न अपने आप में निर्णय करने के मामले में अच्छी लग्न मानी गई है। इन सब ग्रह योगों के कारण ही महात्मा गांधी ने कानून की पढ़ाई के साथ ही बैरिस्टर के रूप में प्रैक्टिस भी की। हाँ यह बात और है कि शनि की दूसरे भाव में स्थिति के कारण वह कटुवक्ता से और गलत और झूठे मुकदमों को लड़के के लिए कड़े शब्दों में मना कर देते थे। सारांश यह कि भले ही महात्मा गांधी ने अपने जीवन काल में अधिक मुकदमें न लड़े हों लेकिन वास्तव में वह एक अच्छे और जानकार वकील थे। कुण्डली में उपस्थित अन्य योगों के कारण उनका यश चिरकाल तक बना रहेगा।
लाल बहादुर शास्त्री जी को बनाया भद्र योग ने भद्रपुरुष
शारदा प्रसाद श्रीवास्तव जी को माँ शारदा (मैहर स्थित एक देवी) ने वाकई एक ऐसा प्रसाद दिया जिसे पाकर उनका जीवन धन्य हो गया। जी हाँ हम बात कर रहे हैं भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की। उनके पिता का नाम शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था। वह उत्तर प्रदेश के मुगलसराय के रहने वाले थे। शारदा प्रसाद नाम का अर्थ होता है शारदा देवी का प्रसाद। शारदा देवी माँ सरस्वती का ही रूप मानी जाती हैं। उनका मंदिर मैहर नामक स्थान में है। सम्भवत: यह उनका इकलौता मंदिर है। अब क्योंकि नाम शारदा प्रसाद और पेशा शिक्षण तो माँ शारदा की कृपा आनी स्वाभाविक है। उसी कृपा के फलस्वरूप शारदा प्रसाद जी को लाल बहादुर नामक बालक रूप रत्न प्राप्त हुआ।
धनु लग्न में जन्मे लाल बहादुर जी का लग्नेश पंचम भाव में है। लग्नेश का बुद्धि भाव से सम्बंध होने के कारण जातक का बुद्धिमान होना स्वाभाविक है। साथ ही लग्नेश बृहस्पति है, अत: बुद्धिमत्ता और विद्वता दोनों का संगम इनके व्यक्तित्त्व में देखा जाना स्वाभाविक है। इनकी बुद्धिमत्ता का एक उदाहरण आपके सामने रखना चाहूँगा। जब शास्त्री जी उत्तर प्रदेश के गृह मंत्री थे तो क्रिकेट मैच के दौरान पुलिस ने स्टेडियम में छात्रों पर लाठी चार्ज कर दिया। छात्र आक्रोशित हुए और छात्र संघ के अध्यक्ष के नेतृत्व में छात्रों का एक प्रतिनिधि मंडल शास्त्री जी से मिला। छात्रों ने पुलिस को हटाने के सम्बन्ध में आग्रह किया और कहा कि गृहमंत्री जी कल से लाल टोपी खेल के मैदान में नहीं दिखाई देनी चाहिए, क्योंकि उस समय पुलिस की टोपी लाल रंग की हुआ करती थी। शास्त्री जी ने नम्र भाव से उत्तर दिया ठीक है कल से लाल टोपी मैदान में नहीं दिखेगी। इसके बाद शास्त्री जी ने लखनऊ के सारे दर्ज़ियों को लगा कर रात भर में खाकी टोपियाँ सिलवा दीं। सुबह मैदान में पुलिस तो आई लेकिन लाल टोपी कहीं नजर नहीं आई। हालांकि बाद छात्र दोबारा शास्त्री जी से मिले और शास्त्री ने उन्हें अपने ढंग से समाधान दिलाया लेकिन इस घटना से शास्त्री जी कि बुद्धिमत्ता प्रकट होती है। चीज़ों का सहजता से समाधान देने की योग्यता प्रकट होती है और यह योग्यता शास्त्री जी को बुध ग्रह के कारण मिली।
शास्त्री जी की कुंडली में बुध उच्चावस्था में होकर कर्म स्थान यानी कि राज्य भाव में बैठा है। जो कि उन्हें स्वच्छ राजनीति का अच्छा ज्ञान देता है। इस योग के फल के बारे में कहा गया है कि इस योग वाला जाता विपुल प्रज्ञा वाला और यशस्वी होता है। वह अपनी कार्यशैली और बातों के कारण लोगों में प्रशंसा का पात्र बनता है। इतना ही नहीं ऐसा जातक सिंह के समान पराक्रमी और शत्रुओं का विनाश करने वाला होता है। इसका उदाहरण भी शास्त्री जी के जीवन में देखने को मिला सन १९६५ ई.के. युद्ध में पहली बार देश ने शत्रु की धरती पर धावा बोला और पाकिस्तान से सरगोधा व सियालकोट छीन लिये थे साथ जैसे ही हम लाहौर में प्रवेश करने ही वाले थे जब रूस केे अनुरोध पर युद्ध -विराम करना पड़ा। यानी भद्र योग ने शास्त्री जी को पूर्ण लाभ दिया। वो स्वयं तो भद्र थे ही साथ ही अभद्र लोगों को ऐसा सबक सिखाते थे कि वो भी भद्र बनने का मन बना लेते थे।
यानी कि बुध ने स्वयं अथवा अन्य ग्रहों का सहयोग लेकर शास्त्री जी को भारतवर्ष का प्रधानमंत्री होने का गौरव प्रदान किया। जैसे नवमेश एवं दशमेश का दशम भाव में योग एक श्रेष्ठ राजयोग माना जाता है। दशम भाव राज्य भाव एवं नवम भाव भाग्य भाव है। दोनों का यह संयोग, केंद्र, या त्रिकोण में होने से, उत्तम योग बनाता है। शास्त्री जी की कुंडली में नवमेश सूर्य दशमेश बुध के साथ दशम में है। अत: उनके रूप में भारत को दूसरा व महान व्यक्तित्त्व वाला प्रधामंत्री मिला।
आज का पर्व!आज दुर्गा पूजा का चौथा दिन है। इस दिन को पूरी श्रद्धा के साथ स्त्री शक्ति के प्रतीक को अर्पित करें। आज के दिन ही अन्नपूर्णा परिक्रमा की समाप्ति होगी।
आपका दिन मंगलमय हो!
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