दशहरा/दुर्गोत्सव - जानिए दशहरा और दुर्गोत्सव का शुभ मुहूर्त

दशहरा और दुर्गोत्सव उन चुनिंदा दिनों में से एक है जो सच्चाई और सुकर्म की राह दिखाते हैं। रावण के जलने और महिषासुर के वध के साथ सभी बुरी शक्तियाँ नष्ट होती हैं। तो दशहरे और दुर्गोत्सव के साथ अपने जीवन में एक नयी सुबह का स्वागत करें। ज़्यादा जानकारी के लिए आगे पढ़ें.. 



FREE matrimony & marriage website


चाहे दशहरा कहें या विजय दशमी, कोई भी नाम लें इन सबका तात्पर्य एक ही है। यह वह दिन है जब अच्छाई की ताकत के सामने दुराचार और बुराई की हार हुई। वह दिन जो हमें जीवन का एक महान संदेश देता है। इस त्यौहार की महानता इतनी बड़ी है कि यह त्यौहार देश भर में बहुत बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। 

जैसा की हम सब जानते हैं दशहरा भगवान राम की रावण के ऊपर विजय के सन्दर्भ में मनाया जाता है। उत्तर भारत के लगभग हर घर में दशहरे की विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। तो आइये पहले जान लें कि दशहरा 2014 पूजा का मुहूर्त क्या है। 

दशहरा 2014 पूजा मुहूर्त


  • घर में पूजा का मुहूर्त: शाम 6.40 बजे से 7.49 तक
  • अभिजित मुहूर्त: दोपहर 11.49 से 12.20 तक
  • रावण-दहन का मुहूर्त: शाम 04.25 से 06.05 तक। 

दुर्गो विसर्जन 2014 पूजा मुहूर्त 


  • दुर्गो विसर्जन 2014 पूजा मुहूर्त: 06:13 pm - 07:24 pm
दुर्गोत्सव 5 दिन का महोत्सव है और मुख्यतः बंगाल और दक्षिण भारत की कुछ जगहों पर बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इस 5 दन के महोत्सव का अंतिम दिन दुर्गा विसर्जन के नाम से जाना जाता है, जब माँ दुर्गा की मूर्ति को अंतिम विदाई देकर समुद्र में प्रवाहित किया जाता है। दुर्गा विसर्जन और दशहरा एक ही दिन यानि शरद नवरात्री की दशमी तिथि को मनाये जाते हैं। माँ दुर्गा के महिषासुर नामक दैत्य पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष पे ही दुर्गोत्सव मनाया जाता है। 

आइये अब दशहरा और दुर्गोत्सव की पौराणिक कथाओं पर एक नज़र डालते हैं:

दशहरा: भगवान राम की जीत - पौराणिक कथा 


भगवान राम, विष्णु जी के सातवें अवतार थे। उन्होंने दैत्य रावण का वध करने के लिए इस धरती पर जन्म लिया। उन्होंने अपने भक्त हनुमान, भाई लक्ष्मण और वानर सेना के साथ रावण से युद्ध किया। रावण के भगवान राम की पत्नी सीता को बलपूर्वक उठा लेने और अपने महल में बंदी बना लेने के कारण भगवान राम ने रावण से युद्ध किया। 

भगवान राम ने रावण के ऊपर सफलतापूर्वक जीत हासिल की और अपनी पत्नी सीता को उसकी कैद से छुड़ाया। भगवान राम ने दशहरे के दिन रावण का वध किया था। रावण के साथ-साथ उन्होंने धरती से पाप, अन्याय और दुष्टता का भी विनाश किया। इसी कारण दशहरा देश भर में इतने बड़े स्तर पर मनाया जाता है। 

दुर्गोत्सव: माँ दुर्गा की जीत - पौराणिक कथा 


माँ दुर्गा का जन्म ब्रह्मा, विष्णु और महेश की ईश्वरीय शक्तियों से हुआ। तीनों देवों ने एक ऐसी शक्ति का निर्माण किया जिसे हरा पाना मुमकिन नहीं था। तीनों देव चाहते थे कि माँ दुर्गा धरती से पाप का विनाश करने के लिए महिषासुर नामक दैत्य का वध करे। 

दैत्य महिषासुर धरती पर चारों ओर मासूम लोगों की हत्या करके दुराचार और अपराध को बढ़ावा दे रहा था। वह देवताओं का साम्राज्य तथा उनकी शक्तियाँ भी अपने बस में करना चाहता था। माँ दुर्गा ने अपनी सवारी शेर पर बैठ कर दैत्य महिषासुर से युद्ध किया और दशहरे/दुर्गोत्सव के दिन सफलतापूर्वक उसका वध किया। 

दशहरा की धूमधाम और पूजा


दशहरा बहुत उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। रामलीला, जो भगवान राम की ज़िन्दगी का चित्रण है, विभिन्न स्थानों पर उसका आयोजन किया जाता है। रामलीला की समाप्ति दशहरे के दिन रावण, कुम्भकरण और मेगनाथ का पुतला जला कर की जाती है। इससे हमें सन्देश मिलता है कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी हो, जीत हमेशा सच्चाई की ही होती है। 

दशहरा 2014 पूजा विधि 


कुछ मुख्य चीज़ें जो दशहरा पूजा के लिए चाहिए वह इस प्रकार हैं चूना, फूल, चावल, मिठाई, नौ दिन पुराने अंकुर (नौरते), अगरबत्ती, मौली, रोली इत्यादि। 
  1. सुबह जल्दी उठें तथा स्नान कर साफ़ कपड़े पहन कर तैयार हो जाएँ। 
  2. घर में पूजा स्थान की सफाई करें, दशहरे का चित्र फर्श पर बनाएँ, उसकी पूजा पानी, मौली, रोली, फूलों, अगरबत्ती, चावल, तथा नौरतों से करें। 
  3. उसके बाद परिवार में बहनें अपने भाइयों के कान के पीछे नौरतें रखती हैं तथा उनकी लम्बी उम्र और खुशहाल ज़िन्दगी की कामना करती हैं। 
  4. उद्योगकर्ता भी इस दिन अपने बहीखातों की पूजा करते हैं तथा व्यापार में वृद्धि की कामना करते हैं। 
  5. ब्राह्मणों या पंडितों को खाना या दक्षिणा का दान करें। 
ऊपर दी गयी पूजा विधि के अनुसार पूजा करें और ज़्यादा से ज़्यादा लाभ उठाएँ। 

आपको दशहरे की बहुत बहुत शुभकामनाएँ!


आज का पर्व!


आज शस्त्र पूजा का दिन है। इस दिन शस्त्र, हथियार और औज़ारों की पूजा की जाती है, जिससे उन्हें माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त हो और भविष्य में उनसे ज़्यादा से ज़्यादा काम लिया जा सके।


आज अपराजिता पूजा का दिन है। माँ दुर्गा की विदाई से पहले उनके समक्ष की जानी वाली आखिरी पूजा को अपराजिता पूजा कहते हैं। इस पूजा में सभी भक्त अधर्म से उनकी रक्षा करने के लिए माँ को धन्यवाद देते हैं।

आपका दिन मंगलमय हो! 

Related Articles:

No comments:

Post a Comment