श्राद्ध अमावस्या - अपने पितरों की आत्माओं को शांति दिलाने का अति महत्वपूर्ण दिन

मानसिक दुविधाएँ, परेशानियाँ, कामों में रुकावटें, कोर्ट-कचहरी के चक्कर, ये सब कर्मों के फल हैं। चाहे ये कर्म हमारे हों या हमारे पूर्वजों के, हर एक गलती आने वाली पीढ़ियों पर बोझ बन जाती है। एक आसान संस्कार के द्वारा उस गलती से मुक्त हुआ जा सकता है। साल में श्राद्ध पक्ष के ये 15 दिन पितरों की आत्मा शांति के लिए ही समर्पित हैं जिसमे श्राद्ध अमावस्या का दिन सबसे महत्वपूर्ण है। इस मौके को हाथ से ना जाने दें। 

श्राद्ध अमावस्या, श्राद्ध पक्ष का अंतिम तथा सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।

श्राद्ध अमावस्या भाद्रपद महीने के पन्द्रहवें दिन, यानि अमावस्या के दिन मनाई जाती है। श्राद्ध की 15 दिनों की अवधि में यह श्राद्ध का अंतिम तथा सबसे शुभ दिन माना जाता है। इसको सर्व पितृ अमावस्या और सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या के नामों से भी जाना जाता है। इसके बारे में अधिक विस्तार से बात करने से पहले आइये इससे जुड़े कुछ तथ्यों पर नज़र डाल लेते हैं। 


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श्राद्ध अमावस्या के दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु नीचे दी गयी स्थितियों पर हुई हो:
  • अमावस्या तिथि, चतुर्दशी तिथि, और पूर्णिमा तिथि 
  • जिनकी मरण तिथि मालूम ना हो या याद ना रहे 
  • जिनके श्राद्ध संस्कार किसी कारणवश उनके मरण तिथि पर ना किया जा सके हो 

श्राद्ध संस्कार क्यों आवश्यक हैं?


श्राद्ध अमावस्या के संस्कारों को श्रृद्धापूर्वक करने से पितरों का आशीर्वाद तथा उनकी कृपा प्राप्त होती है। उनकी कृपा से हम सारे सांसारिक सुखों का आनंद ले सकते हैं। पितरों के आशीर्वाद से जीवन में किसी भी प्रकार की कमी नहीं रहती तथा जीवन सुख और समृद्धि से भर जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन हम अपने पितरों के लिए जो भी दान करते हैं वो सीधा हमारे पितरों को प्राप्त होता है। 

जानें कि श्राद्ध अमावस्या संस्कार कैसे करें


आज श्राद्ध अमावस्या है, श्राद्ध का अंतिम तथा सबसे महत्वपूर्ण दिन। आइये इस दिन में किये जाने वाले संस्कारों के बारे में विस्तार से पढ़ें:
  1. जो भी अपने पितरों के लिए श्राद्ध करता है उसे अपने सीधे हाथ के कंधे में एक पवित्र धागा बांधना होता है। उसके बाद वो चन्दन, फूल और ज्वार पंडित को दान करता है। 
  2. पितरों की पूजा करने के लिए अगरबत्ती तथा दियों से उनकी आरती की जाती है।
  3. पंडित सुपारी, तिल तथा दुर्वा (घास) का दान पितरों के लिए देता है। इसके साथ ही श्राद्ध के संस्कार पूरे हो जाते हैं। 
  4. श्राद्धकर्ता अपने पितरों से अपने द्वारा किये गए पापों के लिए माफ़ी माँगता है तथा उसके परिवार पर अपनी कृपा बनाये रखने के लिए भी विनती करता है। 
  5. एक पानी से भरा लोटा लें जिसमे तिल तथा फूल मिला दें। इस लोटे को श्राद्ध संस्कार कर रहे पंडित के आगे रख दें। 
  6. श्राद्ध के संस्कारों को आगे बढ़ाने के लिए मन्त्रों का उच्चारण करें। 
  7. इसके बाद मृत पितरों की आत्मा की शांति के लिए उन्हें अर्घ्य अर्पण करें। 
श्राद्ध के बारे में अधिक जानकारी के लिए हमारा श्राद्ध पर लिखा गया विशेष लेख अवश्य पढ़ें: श्राद्ध करेगा पितर ऋणों से मुक्त आपको

आशा है यह छोटा सा लेख आपके काम आएगा और जीवन को पहले से भी ज़्यादा सुखमय बनाने में मदद करेगा।


आज का पर्व!


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आपका दिन मंगलमय हो! 

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