आज, यानि सितम्बर 8, 2014 के दिन श्राद्ध प्रारम्भ हो रहे हैं। यही समय है अपने पूर्वजों के प्रति अपना प्यार और सम्मान दिखाने का। इस समय आप अपनी आने वाली पीढ़ियों को, पूर्वजों द्वारा किये गए पापों के आभार से मुक्त कर सकते हैं। श्राद्ध के बारे में अधिक जानकारी के लिए ज्योतिषी ‘दीपक दूबे’ द्वारा लिखा गया यह लेख पढ़ें।
पितृ दोष के कारण होने वाली समस्याएँ
श्राद्ध क्या है ?
शिव की पवित्र नगरी वाराणसी के रहने वाले पण्डित दीपक दूबे अनन्य शिवभक्त, प्रखर ज्योतिषी
और अनुष्ठानों के मर्मज्ञ हैं। साथ ही वे कर्मकाण्ड, मन्त्र-तन्त्र और वास्तु के गहन
अध्येता भी हैं। उन्हें ज्योतिष और कर्मकाण्ड का ज्ञान अपने पिता से हासिल हुआ, जो
स्वयं प्रकाण्ड ज्योतिषी और अनन्य काली-उपासक हैं। वे विभिन्न टीवी और एफ़एम चर्चाओं
में ज्योतिषी के तौर पर प्रायः आमंत्रित किए जाते रहे हैं। मनोविज्ञान में स्नातक,
पण्डित दीपक दूबे, कई पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी कर चुके हैं।
अपने पूर्वजों के निमित्त श्रद्धा भाव से किया गया कर्म ही श्राद्ध है। हमारा जन्म ही हमारे माता-पिता की उपस्थिति के कारण हुआ है, और उनका भी जन्म उनके माता-पिता के कारण। मरणोंपरान्त हम उन्हें पितृ की संज्ञा देते हैं। हमारे धर्मावलम्बियों ने इन्हीं पितरों के लिए वर्ष में एक पक्ष निर्धारित किया जिसे हम पितृ पक्ष के नाम से जानते हैं। इस पक्ष में हम अपने स्वर्गवासी माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी और अन्य भी अपने पूर्वजों के निमित्त स्नान-ध्यान-तर्पण-दान इत्यादि करते हैं। कहा जाता है कि अपनी संतानों से अपने लिए किये गए कर्मों को स्वीकार कर पूर्वज उन्हें आयु, विद्या, यश और बल प्राप्त करने का आशीर्वाद देते हैं और यही कर्म यदि वर्तमान पीढ़ी नहीं करती है तो उनके श्राप की भागीदार होती और उसका जीवन संघर्षमय हो जाता है। पितृ दोष /प्रेत बाधा
किसी भी जातक के अपने परिवार में उसके जन्म से पूर्व यदि किसी पूर्वज की मरणोपरांत अंत्येष्टि क्रिया शास्त्र सम्मत विधि विधान से न की गयी हो या उसके परिवार में पूर्वजों के निमित्त कोई भी कार्य न किया जाता हो तो जातक की कुंडली में पितृ दोष जिसे प्रेत बाधा भी कहते हैं, अवश्य मिलता है। पितृ दोष आगे चलकर अनुवंशिक रोग की तरह से, आने वाली अगली पीढ़ी में भी आने लगता है। पितृ दोष जातक के अपने परिवार अर्थात पितृ पक्ष या ननिहाल अर्थात मातृ पक्ष दोनों में से किसी के कारण भी हो सकता है।
पितृ दोष के कारण होने वाली समस्याएँ
आपकी कुंडली में चाहे कितने भी अच्छे योग क्यों ना हों, यदि आपकी कुंडली में पितृ दोष है तो जीवन अत्यंत संघर्षमय हो जायेगा। पितृ दोष के प्रभाव के कारण धन हानि, अनावश्यक के विवाद, परिवार में क्लेश, शुभ कार्यों में विलम्ब, संतान हीनता, अचानक दुर्घटना का योग, नौकरी-व्यापार में असफलता, अर्थात जीवन के हर क्षेत्र में समस्याओं की भरमार रहती है। इसका प्रभाव धीरे-धीरे पूरे परिवार पर होने लगता है और यह परिवार को दीमक की तरह धीरे-धीरे नष्ट कर देता है।
पितृ दोष के योग
राहु-केतु और शनि को अत्यंत ही पाप ग्रह माना जाता है, और इन्ही के प्रभाव में यदि चन्द्रमा, सूर्य या गुरु आएँ तो पितृ दोष का सृजन हो जाता है। इसके साथ ही लग्न, पंचम, नवम और अष्टम के सम्बन्ध से भी पितृ दोष देखा जाता है। चन्द्रमा के कारण बनने वाला पितृ दोष माता के पक्ष के कारण, सूर्य के प्रभावित होने पर पिता के पक्ष के कारण, गुरु के पाप प्रभावित होने पर गुरु या साधु संतो के श्राप के कारण, शनि-राहु युति हो तो सर्प और अपने संतान के दोष का कारण बनता है।
साथ ही यदि आप स्वयं अपराध या कुकर्म में लिप्त हैं, जैसे यदि आपने किसी स्त्री या पुरुष को इतना परेशान किया कि वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाये तो आपकी अगली पीढ़ी में भयानक पितृ दोष /प्रेत बाधा उत्पन्न होगी। बलात्कार, भ्रूण हत्या, किसी का धन हड़प लेना या किसी को धोखे से मार देना यह सब जघन्य अपराधों की श्रेणी में आते हैं और इसी का परिणाम आपको स्वयं या आपकी अगली पीढ़ी को किसी घटना-दुर्घटना का शिकार होकर चुकाना पड़ता है। यह घटनाएँ भी बहुत हृदय विदारक होती हैं जैसे पुरे परिवार का कार समेत पानी में या खाई में गिर कर समाप्त हो जाना, आग से घर में जल जाना, कहीं भगदड़ में मारा जाना।
अर्थात यदि आपने कोई जघन्य अपराध किया हो तो कानून आपको सजा दे या ना दे, समय ज़रूर देख रहा होता है और उसका परिणाम आपको और आपकी आने वाली पीढ़ी को अवश्य भोगना पड़ता है।
आगे कुछ ग्रहों की स्थिति दे रहा हूँ जो पितृ दोष को दर्शाती हैं:
- राहु, केतु या शनि से चन्द्रमा की युति (माता या माता के पक्ष के कारण श्राप)।
- राहु, केतु या शनि से सूर्य की युति (पिता या पिता के पक्ष के कारण श्राप)।
- राहु या केतु से मंगल की युति (भाई के कारण श्राप)।
- राहु या केतु से गुरु की युति (गुरु या संत का श्राप)।
- राहु या केतु से शुक्र की युति (ब्राह्मण या किसी विद्वान पुरुष का श्राप)।
- राहु-केतु या शनि के साथ चन्द्रमा का अष्टम में बैठना भयानक प्रेत बाधा को दर्शाता है।
- अष्टमेश का लग्न में और लग्नेश का अष्टम में बैठना भी अत्यंत घातक होता है।
- राहु-केतु-शनि या मंगल का पंचम में बैठना भी पितृ दोष का परिचायक होता है।
- यदि केतु अकेला पंचम में हो और उसपर शुभ ग्रह की दृष्टि ना हो तो वह जातक/जातिका अपने संतान को गर्भ में ही मार देते हैं।
कृपया ध्यान दें: ऊपर दिए गए ग्रहों की स्थिति का होना ही केवल पूर्ण पितृ दोष या प्रेत दोष का कारक नहीं हो जाता अपितु ग्रहों का बला-बल, नक्षत्रों में उनकी स्थिति इत्यादि पर भी निर्भर होता है। साथ ही, ऊपर दिए गए पितृ दोषों में कुछ का प्रभाव कुछ कम होता है या जीवन के किसी एक क्षेत्र में होता है। परन्तु कुछ दोष बहुत ही भयानक होते हैं और उनका परिणाम भी अत्यंत ही भयानक होता है। अतः किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले किसी विद्वान से परामर्श अवश्य लें।
उपचार
पितृ दोष या प्रेत बाधा का उपचार कुछ मामलों को छोड़कर संभव है। कुछ मामलों को मैंने इसलिए कहा कि यदि जातक की जन्म कुंडली में दोष है और उस दोष के प्रभाव में आकर उसने भी कोई अपराध कर दिया तो उसका उपचार संभव नहीं है। जैसे मेरे ऊपर लिखे पंक्तियों में ९वे स्थान पर लिखी पंक्ति के अनुसार यदि किसी जातक की कुंडली में केतु पंचम भाव में है और उसके प्रभाव में आकर उसने स्वयं ही अपने भ्रूण की हत्या गर्भ में की हो तो उसका उपचार नहीं है। उसका तो सिर्फ परिणाम है जिसे उसने भुगतना ही होता है।
पितृ दोष का उपचार उसके लक्षण के आधार पर किया जाता है। जिसमे श्राद्ध, नारायण बलि, त्रिपिंडी श्राद्ध इत्यादि के अलावा यदि भयानक प्रेत बाधा हो तो वनदुर्गा का अनुष्ठान इत्यादि शामिल हैं। इसका सबसे बेहतर तरीका यह है कि किसी विद्वान से कुंडली की जाँच अच्छे से कराकर ही यथा उचित उपचार कराएँ।
पितरों के निमित्त सामान्य श्राद्ध, नारायण बलि और त्रिपिंडी श्राद्ध करने के लिए पितृ पक्ष सर्वोत्तम समय है। अज्ञात पितरों के लिए और किसी भी तरह के पितृ दोष के निवारणार्थ पूजा के लिए पितृ पक्ष की अमावस्या श्रेष्ठ मानी जाती है।
अतः, पितृ दोष /प्रेत बाधा के निवारण के लिए इस पवित्र पक्ष का लाभ उठायें। दोष न भी हो तो भी आपकी आगे की पीढ़ी में इस तरह का दोष उत्पन्न न हो और आपके पूर्वजों का आशीर्वाद आपके और आपकी आने वाली पीढ़ी पर बना रहे इसके निमित्त इस पक्ष में यथा सामर्थ्य श्राद्ध अवश्य करें। विशेष परिस्थिति तथा भयानक दोष की जानकारी और उसके निदान के लिए कौन सी विधि अपनाएँ इसके लिए किसी विद्वान से अवश्य संपर्क करें।
ॐ नमः शिवाय !
ज्योतिषविद पं. दीपक दूबे
आज के पर्व!
चतुर्दशी के बाद पूर्णिमा आती है, जो कल 10:48 IST पर आरम्भ हो रही है। कल का दिन बहुत ही ख़ास है क्योंकि कल से श्राद्ध आरम्भ हो रहे हैं।
कल पूर्णिमा का पावन दिन है, बहुत से लोग इस दिन उपवास भी करते हैं। यह इंदुला पूर्णिमा है।
साथ ही कल अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस है। इस दिन अपना ज्ञान बाँट कर देश-दुनिया को साक्षर बनाने में अपना सहयोग दें।
आपका दिन मंगलमय हो!
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Please suggest for me...
ReplyDeletePraful soni
02 March 1984
04:55 AM
Jodhpur rajasthan. .
Arpan
ReplyDelete25091983
12.42pm
Bhuj
आप जैसे विभूति को कोटि कोटि प्रणाम अद्भुत ज्ञान दिया आपने मैं आपके दर्शन का अभिलाषी हूं।
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