श्राद्ध करेगा पितर ऋणों से मुक्त आपको

आज से यानि सितम्बर 8, 2014 से श्राद्ध प्रारम्भ हो चुके हैं। क्या आप चाहते हैं कि आपका जीवन सभी सुखों से भरपूर और परेशानियों से कोसों दूर हो? तो कीजिये विधिवत तरीके से श्राद्ध और पाइए अपना मनचाहा जीवन, श्राद्ध की अधिक जानकारी के लिए ज्योतिषी ‘रेखा कल्पदेव’ द्वारा लिखा गया यह लेख पढ़ें।

श्राद्ध दिलाएगा मुक्ति सभी प्रकार के पितर ऋणों से।

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार पृथ्वी पर कुल 84 लाख योनियाँ हैं। इन 84 लाख योनियों में भटकने के बाद जीवात्मा को मनुष्य योनि प्राप्त होती है। इन सभी योनियों में केवल मनुष्य योनि को ही यह अधिकार प्राप्त है कि वह मुक्ति प्राप्ति के लिए कर्म कर सके। मनुष्य न केवल अपनी मुक्ति के लिए कर्म कर सकता है, बल्कि उसके द्वारा किये गए श्राद्ध कर्मों से उसके पूर्वजों को भी सद्गति प्राप्त होती है। मनुष्य द्वारा, भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक की अवधि का समय श्राद्ध पक्ष कहलाता है। इस पक्ष में श्रद्धापूर्वक किये गए कर्मों से केवल पूर्वज ही तृप्त नहीं होते बल्कि सभी देव और वनस्पतियाँ भी तृप्त होती हैं। सरल शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धापूर्वक दिया गया दान ‘श्राद्ध’ कहलाता है। इस प्रकार ‘श्राद्ध’ शब्द ‘श्रद्धा’ से बना है और यही कारण है कि श्रद्धा और श्राद्ध में घनिष्ठ सम्बन्ध है | 

विष्णु पुराण में एक स्थान पर लिखा गया है कि: 

“श्रद्धया दीयते यस्मात्तस्माच्छ्राद्धम् निगद्यते |” 

अर्थात: श्रद्धा सहित श्राद्ध कर्म करने वाला व्यक्ति समस्त जगत को प्रसन्न कर देता है| 

श्राद्ध के महत्त्व को समझने के लिए हमें गरुड़ पुराण की सहायता लेनी होगी। गरुड़पुराण, ग्रन्थकर्ता वेदव्यास, अध्याय १० में कहा गया है की: 

कुर्वीत समये श्राद्धं कुले कश्चिन्न सीदति। 
आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।। 
पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्। 
देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते।। 
देवताभ्यः पितृणां हि पूर्वमाप्यायनं शुभम्। 

"समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई भी दुःखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवकार्य से भी ज़्यादा पितृकार्य का विशेष महत्त्व है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।" 

यही कारण है कि शुक्ल पक्ष से पहले कृष्ण पक्ष आता है। कृष्ण पक्ष में पितरों के शांति कार्य करने के बाद, शुक्ल पक्ष में देवताओं का पूजन किया जाता है। सर्वप्रथम पितरों को प्रसन्न किया जाता है, पितरों का आशीर्वाद पाने के बाद ही देव कर्म करना अनुकूल माना गया है। एक अन्य शास्त्र में भी इस प्रकार के प्रकरण मिलते हैं कि - 

जो मनुष्य उनके प्रति उनकी तिथि पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार फलफूल, अन्न, मिष्ठान आदि से ब्राह्मण को भोजन कराते हैं। उस पर प्रसन्न होकर पितृ उसे आशीर्वाद देकर जाते हैं।” 

श्राद्ध क्यों किया जाना चाहिए? 

मृत्यु प्राप्ति की तिथि में प्रत्येक वर्ष एक ब्राह्मण को भोजन कराया जाना चाहिए तथा पितृपक्ष में जिस तिथि को पितर की मृत्यु तिथि आती है, उस दिन विशेष श्राद्ध किया जाता है। विशेष श्राद्ध में 9 ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है, किंतु शास्त्र किसी एक सात्विक एवं संध्यावंदन करने वाले ब्राह्मण को भोजन कराने की भी आज्ञा देते हैं। 

शास्त्र संगत विधि से जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से श्राद्ध करता है, उसे निम्न प्राप्तियाँ होती हैं: 
  • उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। 
  • घर-परिवार, आजीविका और संतान पक्ष से सुख प्राप्त होता है। 
  • पितरों के आशीर्वाद से घर-परिवार में धन-धान्य बना रहता है। 
  • उन्नति के मार्ग खुलते हैं। 
  • वंश वृद्धि के योग बनते हैं। 
  • सभी प्रकार के पितृ दोष दूर होते हैं। 
  • अकाल मृत्यु की संभावनाएँ दूर होती हैं। 
श्राद्ध कर्म का पालन न करने वाले व्यक्तियों को जीवन में निम्न कष्टों का सामना करना पड़ सकता है: 
  • परिवार में किसी की अकाल मृत्यु की संभावनाएँ बन सकती हैं। 
  • घर-परिवार में सुख शांति की कमी। 
  • वंश वृद्धि में रूकावट। 
  • आकस्मिक बीमारियों से शारीरिक कष्टों में वृद्धि। 
  • सुख सुविधाओं के होते हुए भी मानसिक अशांति बनी रहना। 
  • धन का व्यर्थ व्यय होना। 
  • धन का आना परन्तु संचय न हो पाना। 
  • बरकत न हो पाना। 
  • संतान का सदमार्ग से भटकना। 
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि यदि परिवार में कोई सदस्य अकाल मृत्यु प्राप्त करता है तो, उस आत्मा की शान्ति के लिए शास्त्रीय विषय से श्राद्ध कर्म अवश्य करवाने चाहिए। 

हिन्दू शास्त्रों में संस्कार कार्यों को पूर्ण करने का अधिकार पुत्र को दिया गया है। सभी श्राद्ध और पिंडदान कर्म बड़े पुत्र के द्वारा ही किये जाने चाहिए। पुत्र के न होने पर मृतक की पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई। पुत्री का पति एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध करने का अधिकार रखता है। पुत्र के न होने पर पौत्र या प्रपौत्र भी श्राद्ध कर सकते हैं। पुत्र, पौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है। गोद में लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी है। 

श्राद्ध के प्रकार 

वसु, आदित्य और रूद्र को श्राद्ध कर्म का देवता माना गया है। तथा श्राद्धों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है। 
  1. पहली श्रेणी ‘नित्य श्राद्ध कर्म’ की आती है। यह श्राद्ध मृतक की प्राण त्यागने की तिथि पर किया जाता है। 
  2. श्राद्ध की दूसरी श्रेणी ‘नैमित्तिक श्राद्ध’ है। नैमित्तिक श्राद्ध किसी खास अवसर पर पितरों को याद करने के लिए किया जाता है। जैसे परिवार में पुत्र के जन्मदिन पर नैमित्तिक श्राद्ध किया जा सकता है। 
  3. श्राद्ध की अंतिम श्रेणी ‘काम्य श्राद्ध’ कहलाती है। काम्य श्राद्ध किसी विशेष कामना के पूरी होने पर रोहिणी या कृतिका नक्षत्र में किया जाता है। जैसे पूर्वजों का मकान फिर से बनवाने के बाद रोहिणी या कृतिका नक्षत्र में काम्य श्राद्ध कर्म किया जा सकता है। 
किस दिन किसका श्राद्ध करें? 

आश्विन माह, कृष्ण पक्ष के 15 दिनों की अवधि पितृ शांति कर्म अर्थात श्राद्ध कर्म के लिए उत्तम मानी जाती है। इस अवधि विशेष में पितरों की मुक्ति का मार्ग खोलने के लिए श्राद्ध किये जाते हैं। यह पक्ष श्राद्धपक्ष के नाम से भी जाना जाता है। किसी दिन किसका श्राद्ध किया जाए इसके लिए कुछ तिथियाँ तय हैं। जिन तिथियों में ही ये कार्य करने का विधि-विधान है। 

किसका श्राद्ध कब करें? 

श्राद्धपक्ष इस वर्ष 2014 को 8 सितम्बर से लेकर 24 सितम्बर तक का रहेगा। प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध नाना-नानी का श्राद्ध करने के लिए उत्तम माना गया है। पंचमी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है, जिनकी मृत्यु विवाह से पूर्व ही हो गयी हो। नवमी तिथि को मातृ श्राद्ध किया जाता है। एकादशी तथा द्वादशी तिथि को विधिवत सन्यास जीवन व्यतीत कर चुके व्यक्तियों का श्राद्ध किया जाता है। चतुर्दशी तिथि में अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों का श्राद्ध किया जाता है। इसमें दुर्घटना, हत्या या आत्महत्या के द्वारा मृत्यु को प्राप्त करने वाले व्यक्ति भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त इस दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म भी किया जाता है, जिनकी मृत्यु अस्त्र-शास्त्र के लगने से हुई हो। 

अमावस्या तिथि में श्राद्ध करने से सभी पितृ शांत होते है। यदि श्राद्ध पक्ष में किसी का श्राद्ध करने से आप चूक गए हों, अथवा गलती से भूल गए हों तो इस दिन श्राद्ध किया जा सकता है। अमावस्या तिथि में पुण्य आत्मा प्राप्त करने वाले पूर्वजों की आत्मा के लिए श्राद्ध भी इसी तिथि में किया जाता है। 

पितर ऋण मुक्ति (श्राद्ध) की सरल विधि 

आश्विन कृष्ण पक्ष श्राद्ध पक्ष (पतृ पक्ष) कहलाता है। इस पक्ष में पूर्वजों की श्राद्ध तिथि के अनुसार, पितरों की शांति के लिए श्रद्धा भाव रखते हुए विधि-विधान से श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध कर्म की शास्त्रीय विधि की जानकारी के अभाव में नीचे दी गई सरल विधि का भी पालन किया जा सकता है। 
  • सुबह उठकर स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर लिपकर व गंगाजल से पवित्र करें। 
  • घर आंगन में रंगोली बनाएँ। 
  • महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएँ। 
  • श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण (या कुल के अधिकारी जैसे दामाद, भतीजा आदि) को न्यौता देकर बुलाएँ। 
  • ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि कराएँ। 
  • पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें। 
  • गाय, कुत्ता, कौआ व अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास निकालें। 
  • ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएँ, मुखशुद्धि, वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें। 
  • ब्राह्मण स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें एवं गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएँ व्यक्त करें। 
घर में किये गये श्राद्ध का पुण्य तीर्थ-स्थल पर किये गये श्राद्ध से आठ गुना अधिक मिलता है। आर्थिक कारण या अन्य कारणों से यदि कोई व्यक्ति कनागतों में अपने पितरों की शांति के लिए वास्तव में ही कुछ करना चाहता है, तो उसे पूर्ण श्रद्धा भाव से अपने सामर्थ्य अनुसार उपलब्ध अन्न, साग-पात-फल और जो संभव हो सके उतनी दक्षिणा किसी ब्राह्मण को आदर भाव से दे देनी चाहिए। यदि किसी परिस्थिति में यह भी संभव न हो तो 7-8 मुट्ठी तिल, जल सहित किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर देने चाहिए। इससे भी श्राद्ध का पुण्य प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म में गाय को विशेष महत्व दिया गया है। किसी गाय को भरपेट घास खिलाने से भी पितृ प्रसन्न होते हैं। अंतत: यदि उपरोक्त में से कुछ भी संभव न हो तो किसी एकांत स्थान पर मध्याह्न समय में सूर्य की ओर दोनों हाथ उठाकर अपने पूर्वजों और सूर्य देव से प्रार्थना करनी चाहिए। प्रार्थना में कहना चाहिए कि, ‘’हे प्रभु मैंने अपने हाथ आपके समक्ष फैला दिए हैं, मैं अपने पितरों की मुक्ति के लिए आपसे प्रार्थना करता हूँ, मेरे पितर मेरी श्रद्धा भक्ति से संतुष्ट हो’’। ऐसा करने से व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। 

रेखा कल्पदेव

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